4.12.10

बीरबल की कुशाग्र बुद्धि

बीरबल की कुशाग्र बुद्धि
एक बार बीरबल से द्वेष करने वाले अन्य मंत्रियों ने उसे नीचा दिखाने का षड्यंत्र रचा। सभी मंत्रियों ने जाकर अकबर से कहा कि "जहाँपनाह ! आप व्यर्थ में ही बीरबल को हम लोगों से ज्यादा मान देते हैं।"
अकबर ने कहाः "बीरबल के जैसी बुद्धि तुम लोगों की हजार जन्मों में भी नहीं हो सकती है। वह रोज मंत्रजप करता है, ध्यान करता है और अपनी कुशाग्र बुद्धि के द्वारा कई पेचिदा समस्याएँ तुरंत हल कर देता है।"
अकबर की बातें मंत्रियों को हजम नहीं हुईं। उन सबने मिलकर कहाः "आप ऐसा बोलते हैं पर पहले उसकी परीक्षा तो ले लीजिये।"
अकबर तैयार हो गया और सबने मिलकर एक योजना बनायी।
योजना के अनुसार अकबर ने घोषणा करवा दी कि "हम सभी दरबारियों से बहुत खुश है। अतः कल सभी दरबारियों को इनाम दिया जायेगा। सभी इनाम एक कमरे में रखे होंगे, जो चाहे अपनी मर्जी से मनचाही चीज ले सकता है।"
दूसरे दिन सभी दरबारी बहुत पहले पहुँच गये। सभी ने जल्दी-जल्दी इनाम उठा लिये और बीरबल के लिए मात्र एक साधारण थाली ही बचायी। बीरबल जब पहुँचे तो सभी दरबारी हँस पड़े। बीरबर कमरे में गये और थाली लेकर वापस आ गये।
पूर्व योजनानुसार अकबर व दरबारी बीरबल पर कटाक्ष कर हँसने लगे। तब बीरबल ने आज्ञाचक्र में ध्यान किया, सारस्वत्य मंत्र का थोड़ा मानिसक जप किया और वह भी हँस पड़ा। उसकी हँसी देखकर सभी स्तब्ध रह गये। अकबर ने पूछाः "बीरबल तुम क्यों हँस रहे हो ? हम तो तुम्हारी लाचारी पर हँस रहे हैं।"
"मैं भी आपकी लाचारी पर हँस रहा हूँ। आपके राज्य में इतनी कंगालियत है, मुझे पता ही न था। आज पता चल या कि आपमें कितना झूठा दंभ है। कहीं खाली थाली भी कोई ईनाम में देता है !" बीरबल ने जवाब दिया।
यह सुनकर अकबर को शर्मिंदगी महसूस हुई। उसने अपने खजांची से कहाः "इसकी थाली हीरे-जवाहरातों से भर दो।"
बीरबल की थाली हीरे-जवाहरातों से भर दी गयी। बीरबर ने अपनी बुद्धि के बल से सबसे कीमती उपहार पाया। सारे दरबारियों का मुँह लटक गया। बीरबल को नीचा दिखाने की चाल में मंत्रियों को खुद ही नीचा देखना पड़ा।
किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति को हताश-निराश नहीं होना चाहिए बल्कि विपरीत परिस्थितियों में भी हार न मानकर गुरूमंत्र व भगवदध्यान का सहारा लेना चाहिए।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, अक्तूबर 2010, पृष्ठ संख्या 12, अंक 160

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