( परम पूज्य आसाराम बापूजी के सत्संग से )
जिस के जीवन में द्वेष पूर्ण धर्म का प्रचार है वो धर्मांध औरंगजेब था..लेकिन उस का भाई दाराशिको जब हिन्दू धर्म के उपनिषदे पढ़ता है तो नत-मस्तक हो जाता है…
मरने के बाद कबर में गाड़ दिए जायेंगे, फिर जब क़यामत होगी तब मोहमद शाह जिस की शिफारिश करेंगे उस को बिश्त मिलेगा..बिश्त में शराब के जशने होंगे और हूरे होंगी—इस बात से दाराशिको का मन संतुष्ट नहीं हुआ…
औरंगजेब का भाई दाराशिको विचारवान था..एक हूर मिलती अपनी पत्नी के सिवाय तो जीवन खोकला हो जाता है..1-2 शराब की बोतल मिलती है तो आदमी बांवरा हो जाता है…शराब के जशने और हूरे मिलेगी ये प्रलोभन देकर संयम सिखाने की बात हो सकती है …वरना शराब के जशने और हूरे इंसान का क्या भला करेगी? दाराशिको उपनिषदों और गीता का अध्ययन कर के ऐसे ऊँचे आत्म- अनुभव में पहुंचा की उस ने ठान लिया की मरने के बाद कोई हमारी सिफारिश करे और हम को बिश्त में भेजे इस का इंतज़ार न करते हुए जीते जी अपना आत्मा-परमात्मा का वैभव पा लेना चाहिए…ये हिन्दू धर्म का अमृत-खजाना मुसलमान समाज को भी मिलना चाहिए…इसलिए उस ने हिन्दू उपनिषदों का अनुवाद किया..
उर्दू फारसी और संस्कृत का मिश्रण कर के उस ने कई उपनिषदे रची..
दाराशिको का रचा इल्लोह उपनिषद है ..इस इल्लोह उपनिषद का एक श्लोक :-
हेच फिकर मत कर्त्यव्यम
कर्त्यव्यम जिकरे खुदा
खुदाताला प्रसादेन
सर्व कार्यं फतेह भवेत्…
तुम संसार की -इस की – उस की फिकर न करो, अपने परमात्म स्वरुप का ज्ञान पाओ , उस का चिंतन करो..
ये बात शुकदेव जी महाराज ने 5240 वर्ष पहेले राजा परीक्षत को कहा है :-
तस्मात् सर्वो आत्मन राजन
हरि अभिधीयते श्रोतव्य किर्तिताव्यस्य
स्मृतव्यो भगवत गणम
राजा परीक्षित ने शुकदेव जी महाराज को प्रश्न किया था की मनुष्य को अपने जीवन काल में मनुष्य को क्या सिख लेना चाहिए, क्या पा लेना चाहिए..
क्यों की संसार का जो कुछ भी पायेंगे तो मृत्यु के झटके से सब छुट जाएगा…तो मनुष्य का भला करनेवाली ऐसी कौन सी चीज है ? ऐसी कौन सी विद्या है?
तो शुकदेव जी महाराज ने कहा की मनुष्य को अपने जीवन काल में अपने आत्मा-परमात्मा का ज्ञान पा लेना चाहिए..और भगवान की मधुमय कीर्ति और भगवान के मधुमय गुणों का स्मरण कर के अपने आत्मा में भगवान के मधुर स्वभाव का आस्वादन कर लेना चाहिए..दुनिया के बाते सीखोगे तो मित्र-शत्रु की बात होगी…शत्रु की बात ह्रदय में जेलसी -इर्षा पैदा करेगी..जलन पैदा करेगी..मित्र की बात ह्रदय में आसक्ति और अँधा राग पैदा करेगी..लेकिन भगवान की बात ह्रदय में भागवत रस , भगवत-ज्ञान, भगवत -शांती और भगवत माधुर्य देकर मुक्तात्मा बना देगी..निर्दुख आत्मा बना देगी..
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(Param Pujya Asaram Bapuji ke Satsang se..)
jis ke jeevan me dwesh purn dharm ka prachaar hai vo dhramaandh aurngjeb tha..lekin us ka bhai darashiko jab hindu dharm ke upnishade padhataa hai to nat-mastak ho jata hai…
marane ke baad kabar me gaad diye jayenge, phir jab kayaamat hogi tab mohmad shaah jis ki shifarish karenge us ko bisht milegaa..bisht me sharaab ke jashne honge aur hoore hongi—is baat se darashiko ka man santusht nahi huaa…
aurangajeb ka bhai darashiko vichaarwaan tha..ek hoor milati apani patni ke siwaay to jeevan khokalaa ho jata hai..1-2 sharaab ki botal milati hai to aadami baanwaraa ho jata hai…sharaab ke chasne aur hoore milegi ye pralobhan dekar thda sanyam sikhane ki baat ho sakati hai …varanaa sharaab ke chasne aur hoore insaan ka kya bhalaa karegi? darashiko upnishado aur gita ka adhyayan kar ke aise unche aatm- anubhav me pahunchaa ki us ne thaan liya ki marane ke baad koyi hamaari sifaarish kare aur ham ko bisht me bheje is ka injaar na karate huye jite jee apana aatma-paramaatma ka vaibhav paa lenaa chahiye…ye hindu dharm ka amrut-khajana musalmaan samaaj ko bhi milanaa chahiye…isliye us ne hindu upnishado ka anuwaad kiyaa..
urdu phaarsi aur sankrut ka mishran kar ke us ne kayi upnishade rachi..
darashiko ka rachaa illoh upnishad hai ..is illoh upnishad ka ek shlok :-
hech phikar mat kartyavyam
kartyavyam jikare khudaa
khudaatalaa prasaaden
sarv kaaryam phateh bhavet…
tum sansaar ki is ki us ki phikar na karo, apane paramaatm swarup ka gyan paa, us ka chintan karo..
ye baat shukdev ji maharaj ne 5240 varsh pahele raja parikshat ko kahaa hai :-
tasmaat sarvo aatman raajan
hari abhidhiyate shrotavy kirtitavyasy
smrutavyo bhagavat ganaam
raja Parikshit ne shukdev ji maharaj ko prashn kiya tha ki manushy ko apane jeevan kaal me manushy ko kya sikh lena chahiye, kya paa lena chahiye..
kyo ki sansaar ka jo kuchh bhi paayenge to murtyu ke jhatake se sab chhut jaayegaa…to manushy ka bhalaa karanewali aisi kaun si chij hai ?aisi kaun si vidya hai?
to shukdev ji maharaj ne kahaa ki manushy ko apane jeevan kaal me apane aatma-paramaatma ka gyan paa lena chahiye..aur bhagavan ki madhumay kirti aur bhagavan ke madhumay gunon ka smaran kar ke apane aatma me bhagavan ke madhur swabhaav ka aaswasadan kar lena chahiye..duniya ake baate sikhoge to mitr-shatru ki baat hogi…shatru ki baat se hruday me jelasy paida karegi..jalan paida karegi..mitr ki baat hruday me aasakti aur andha raag paida karegi..lekin bhagavan ki baat hruday me bhagavatras, bhagavat-gyan, bhagavat -shanti aur bhagavat madhury dekar muktatmaa banaa degi..nirdukh aatma banaa degi..
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31.8.10
साधू और मछवारा
( परम पूज्य आसाराम बापूजी के सत्संग से )
व्यास जी कहेते की , शुद्ध में शुद्ध है परमात्मा का प्रकाश, तो जिस से अंतकरण में परमात्मा का प्रकाश होता वो धर्म है… प्याऊ लगाते तो भी भगवान के लिए, पति परायण रहेते तो भी भगवान के लिए … तो अंतकरण शुध्द होगा और अंतकरण शुध्द होगा तो शुध्द तत्व का साक्षात्कार होगा..
जिन साधनो से अंतकरण शुध्द होता है, वे सभी साधन धर्म है…
एक मछवारा मछलियों को सता के निकाल रहा था..साधू ने देखा तो पूछा की क्यों इतनी मछालियां मार रहा है …
बोला, ‘अकेला हूँ ,.. पेट के लिए मार रहा हूँ’
साधू बोला, ‘एक का पेट भरने के लिए इतनी मछलियाँ मत मार…चलो आश्रम में रहो ,तुझे खाना मिल जाया करेगा..’
मछ्वारे का आश्रम के माहोल से मन बदला.. गया साधू के पास की मुझे भी मन्त्र दो..दीक्षा दो..
साधू बोला, ‘अभी तेरा अंतकरण शुद्ध नहीं हुआ है, अंतकरण शुध्द नहीं और दीक्षा देते तो जैसे सड़क पर बिज नहीं उगता ऐसे अभी दीक्षा से तुम्हे उतना लाभ नहीं होगा..’
तो मछवारा बोला की, ‘अंतकरण को कैसे शुध्द करू?’
साधू बोले, ‘यात्रा कर!’
मछवारा ने पूछा, ‘ठीक है.. मैं जाता हूँ यात्रा करने, लेकिन मुझे पता कैसे चले की अंतकरण शुध्द हुआ की नहीं..कब लौटना है’
साधू बाबा ने एक पेड़ का लठ्ठा दिया, बोले.. ‘ये अभी गिला है, हरा है…ये जब सुख के पिला हो जाये तो आ जाना…’
मछवारा निकला यात्रा पर…
यात्रा करते करते एक गाँव के बाहर पेड़ के निचे सोया था..नींद तो नहीं आ रही थी..मध्यरात्री को कुछ लुटेरे आये , उसी पेड़ पर बैठ के लुटेरे लोग प्लानिंग बना रहे थे…की गाँव को ऐसा लूटेंगे , गड़बड़ हुयी तो तुम इधर से आग लगाना, तुम उधर से लगाना.. गाँव वाले जल मरेंगे आग की लपेट में…
मछवारे ने सोचा.. यूँ तो मैंने पाप बहोत किया है, थोडा और सही..’
मछ्वारा ने डंडा उठाया और धाड़ धाड़ मारना शुरू कर दिया चोरों को…3-4 को गिरा दिया …बाकि भाग गए..गाँव वाले बच गए…
सुबह हुयी तो मछ्वारा सोचा डंडा तो अब बहोत ज्यादा हरा हो गया होगा….देखा तो डंडा सुख कर पिला हो गया था..
मछवारा साधू बाबा के पास वापस आया , सब बताया की ये डंडा हरा होना चाहिए था, मैंने इतनो को मारा..
साधू बाबा बोले, ‘बहोतो की रक्षा से , और दूसरो की हीत की भावना से तेरी पहेली की सारी गड़बड़ माफ हुयी है..इसलिए डंडा पिला हो गया..अब तू दीक्षा का अधिकारी हुआ है..’
24 शाम : पुज्यश्री बापूजी रजोकरी आश्रम गुरूमंदिर से
धर्म रक्षती , रक्षितः – धर्म की रक्षा की तो धर्म आप की रक्षा करता ही है..
भगवान के लिए रोने से, माला जपने से अगर आप का ह्रदय शुध्द होता तो वो करो, जो करने से आप का ह्रदय शुद्ध होता वो करना ये धर्म है.. …
कबीर जी बोलते , रोज संत का दर्शन करने से ह्रदय शुध्द होता..रोज न कर सके तो दुसरे दिन करो , दुसरे नहीं तो 3रे दिन करो , 7 दिन में करो, 7दिन में नहीं तो 15-15 दिन में करो..15 दिन में भी नहीं कर सकते तो मास मास में कर लो तो काल दगा नहीं देगा… अकाल मृत्यु नहीं होगी ….यमपुरी नहीं जाना पडेगा…किसी गर्भ में जा कर बाथरूम में नहीं बहेना पडेगा …
याग्य वल्क्य ऋषि कहेते- यज्ञ , दान, स्वाध्याय, जप, ध्यान, देश- काल -पात्र के अनुसार व्यवहार करना ही धर्म के अंतर्गत है….
मनु महाराज कहेते की धर्म वो है जिस से इस लोक और परलोक की ऊँची गति हो..मनुष्य लाभान्वित हो सके..
गाड़ी बढ़िया है लेकिन ब्रेक नहीं है या स्टेआरिंग नहीं है, तो ऐसी गाड़ी हमें सुरक्षित यात्रा नहीं करवाएगी..
ऐसे परायी वस्तु में मन न लगा के ईश्वर में मन लगे ये एक्सीलेटर है, अनुचित खाने के लिए मन को रोकने की शक्ति ये ब्रेक है..पतन से बचने की शक्ति है ये स्टेआरिंग का उपयोग करते …तो जैसे सही कंडीशन वाली गाड़ी सुरक्षित पहुंचाती , ऐसे जिस को करने से हम भगवान की तरफ पहुंचे उस का नाम है धर्म..
चोरी बे-इमानी न करना, व्यर्थ की हिंसा न करना(इस में बोर्डर वाले जवान नहीं आते), व्यभिचार न करना, दुसरे की वस्तु न छिनना, अनिष्ट संकल्प न करना, चुगली नहीं करना, कठोर न बोलना, एक का दोष दुसरे को न बताना ये आप के जीवन में आये तो आप को धर्मात्मा महात्मा बना देंगे…
जो ज़रा ज़रा बात में चोरी करते, झूठ बोलते वो आत्म हत्यारे है…
सत्य समान कोई पुण्य नहीं, झूठ समान नहीं पाप….
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vyas ji kahete ki shuddh me shudh hai paramaatma ka prakash, to jis se anakaran paramatma ka prakash hota vo dharm hai… pyaau lagaate to bhi bhagavaan ke liye, patiparaayan rahete to bhi bhagavan ke liye … to antakaran shudhd hogaa aur antakaran shudhd hoga to shudhd tatv ka sakshatakaar hogaa..
jin sadhano se antakaran shudhd hota hai, ve sabhi sadhan dharm hai…
ek machhawara machhaliyaa ko sataa ke nikaal rahaa tha..sadhu ne dekha to puchhaa ki kyu itan imachhaliyaa maar raha ahai …bola, ‘akela hu,.. pet ke liye maar rahaa hun’
sadhu bola, ‘ek ka pet bharane ke liye itani machhhliya mat maar…chalo ashram me raho ,tujhe khana mil jaaya karegaa..
machhhaware ka aashram ke mahol se man badalaa.. gayaa sadhu ke paas ki mujhe bhi mantr do..diksha do..
sadhu bola, abhi tera antakaran shudh nahi huaa hai, antakaran shudhd nahi aur diksha dete to jaise sadak par bij nahi ugataa aise abhi diksha se tumhe utana labh nahi hogaa..
to machhawara bola ki, antakaran ko kaise shudhd karu?
sadhu bole, ‘yatraa kar!’
machhhwara ne puchha thik hai mai jata hun yatra karane, lekin mujhe pataa kaise chale ki antakaran shudhd hua aki nahi..kab lautanaa hai’
sadhu baba ne ek ped ka laththaa diyaa, bole ye abhi gila hai, haraa hai…ye jab sukh ke pilaa ho jaye to aa jana…
machhawara nikalaa yatra par…yatra karate karate ek gaanv ke baahr ped ke niche soya tha..nind to nahi aa rahi thi..madhyaraatri ko kuchh lutere aaye , usi ped par baith ke lutere log planing banaa rahe the…ki aisa lutenge , gadabad huyi to tum idhar se aag lagaanaa, tum udhar se lagaanaa.. gaanv wale jal marenge aag ki lapet me…
machhawaare ne socha yun to maine paap bahot kiya hai, thoda uar sahi..’
machhwara ne dandaa uthaya aur dhad dhad maarana shuru kar diya choro ko…3-4 ko gira diyaa baki bhaag gaye..gaanv waale bach gaye… subah huyi to machhwara socha danda to ab bahot jyada haraa ho gayaa hogaa….dekhaa to dandaa sukh kar pilaa ho gayaa thaa..
machhawara sadhu baba ke paas wapas aaya , sab bataya ki ye danda haraa hona chaahiye tha, maine itano ko maaraa..
sadhu baba bole, bahoto ki rakshaa se , aur dusaro ki heet ki bhavanaa se teri paheli ki sari gadabad maaph huyi hai..isliye dandaa pila ho gayaa..ab tu diskha ka adhikari huaa hai..’
Pujyashri from Rajokari Ashram
dharm rakshati rakhsitaah- dharm ki raksha ki to dharm aap ki raksha karataa hi hai..
bhagavan ke liye rone se, mala japane se agar aap ka hruday shudhd hota to vo karo, jo karane se aap ka hruiday shudh hota vo karana ye dharm hai.. …
kabir ji bolate , roj sant ka darshan karane se hruday shudhd hota..roj na kar sake to dusare din karo , dusare nahi to 3re din karo , 7 din me karo, 7din me nahi to 15-15 din me karo..15 din me bhi nahi kar sakate to maas maas me kar lo to kaal dagaa nahi degaa… yamapuri nahi jana padegaa…kisi garbh me jaa kar bathroom me nahi bahenaa padegaa …
yaagy valky rushi kahete yagy, daan, swadhyay, jap, dhyan, desh-kal-paatr ke anusar vyavahaar karanaa hi dharm ke antargat hai.
manu maharaj kahete ki dharm vo hai jis se is lok aur parlok ki unchi gati ho..manushya labhanvit ho sake..
gadi badhiya hai lekin break nahi hai ya stayaring nahi hai, to aisi gadi hame surakshit yatra nahi karavayegi..
aise parayi vastu me man na lagaa ke ishwar me man lage ye acciletor hai, anuchit khane ke liye man ko rokane ki shakti ye break hai..patan se bachane ki shakti hai ye stearing ka upayog karate …to jaise sahi condition wali gadi surakshit pahunchate aise jo kar ke ham bhagavan ki taraf pahunche us ka naam hai dharm..
chori be-imani na karanaa, vyarth ki hinsa na karanaa(is me border wale jawan nahi aate), vyabhichaar na karanaa, dusare ki vastu chhinanaa, anisht sankalp na karanaa, chugali nahi karanaa, kathor na bolanaa, ek ka dosh dusare ko na bataanaa ye aap ke jeevan me aaye to aap ko dharmatma mahaatmaa banaa denge…
jo jaraa jaraa baat me chori karate, jhuth bolate vo aatm-hatyaare hai..
satya samaan koyi punya nahi, jhuth samaan nahi paap...
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व्यास जी कहेते की , शुद्ध में शुद्ध है परमात्मा का प्रकाश, तो जिस से अंतकरण में परमात्मा का प्रकाश होता वो धर्म है… प्याऊ लगाते तो भी भगवान के लिए, पति परायण रहेते तो भी भगवान के लिए … तो अंतकरण शुध्द होगा और अंतकरण शुध्द होगा तो शुध्द तत्व का साक्षात्कार होगा..
जिन साधनो से अंतकरण शुध्द होता है, वे सभी साधन धर्म है…
एक मछवारा मछलियों को सता के निकाल रहा था..साधू ने देखा तो पूछा की क्यों इतनी मछालियां मार रहा है …
बोला, ‘अकेला हूँ ,.. पेट के लिए मार रहा हूँ’
साधू बोला, ‘एक का पेट भरने के लिए इतनी मछलियाँ मत मार…चलो आश्रम में रहो ,तुझे खाना मिल जाया करेगा..’
मछ्वारे का आश्रम के माहोल से मन बदला.. गया साधू के पास की मुझे भी मन्त्र दो..दीक्षा दो..
साधू बोला, ‘अभी तेरा अंतकरण शुद्ध नहीं हुआ है, अंतकरण शुध्द नहीं और दीक्षा देते तो जैसे सड़क पर बिज नहीं उगता ऐसे अभी दीक्षा से तुम्हे उतना लाभ नहीं होगा..’
तो मछवारा बोला की, ‘अंतकरण को कैसे शुध्द करू?’
साधू बोले, ‘यात्रा कर!’
मछवारा ने पूछा, ‘ठीक है.. मैं जाता हूँ यात्रा करने, लेकिन मुझे पता कैसे चले की अंतकरण शुध्द हुआ की नहीं..कब लौटना है’
साधू बाबा ने एक पेड़ का लठ्ठा दिया, बोले.. ‘ये अभी गिला है, हरा है…ये जब सुख के पिला हो जाये तो आ जाना…’
मछवारा निकला यात्रा पर…
यात्रा करते करते एक गाँव के बाहर पेड़ के निचे सोया था..नींद तो नहीं आ रही थी..मध्यरात्री को कुछ लुटेरे आये , उसी पेड़ पर बैठ के लुटेरे लोग प्लानिंग बना रहे थे…की गाँव को ऐसा लूटेंगे , गड़बड़ हुयी तो तुम इधर से आग लगाना, तुम उधर से लगाना.. गाँव वाले जल मरेंगे आग की लपेट में…
मछवारे ने सोचा.. यूँ तो मैंने पाप बहोत किया है, थोडा और सही..’
मछ्वारा ने डंडा उठाया और धाड़ धाड़ मारना शुरू कर दिया चोरों को…3-4 को गिरा दिया …बाकि भाग गए..गाँव वाले बच गए…
सुबह हुयी तो मछ्वारा सोचा डंडा तो अब बहोत ज्यादा हरा हो गया होगा….देखा तो डंडा सुख कर पिला हो गया था..
मछवारा साधू बाबा के पास वापस आया , सब बताया की ये डंडा हरा होना चाहिए था, मैंने इतनो को मारा..
साधू बाबा बोले, ‘बहोतो की रक्षा से , और दूसरो की हीत की भावना से तेरी पहेली की सारी गड़बड़ माफ हुयी है..इसलिए डंडा पिला हो गया..अब तू दीक्षा का अधिकारी हुआ है..’
24 शाम : पुज्यश्री बापूजी रजोकरी आश्रम गुरूमंदिर से
धर्म रक्षती , रक्षितः – धर्म की रक्षा की तो धर्म आप की रक्षा करता ही है..
भगवान के लिए रोने से, माला जपने से अगर आप का ह्रदय शुध्द होता तो वो करो, जो करने से आप का ह्रदय शुद्ध होता वो करना ये धर्म है.. …
कबीर जी बोलते , रोज संत का दर्शन करने से ह्रदय शुध्द होता..रोज न कर सके तो दुसरे दिन करो , दुसरे नहीं तो 3रे दिन करो , 7 दिन में करो, 7दिन में नहीं तो 15-15 दिन में करो..15 दिन में भी नहीं कर सकते तो मास मास में कर लो तो काल दगा नहीं देगा… अकाल मृत्यु नहीं होगी ….यमपुरी नहीं जाना पडेगा…किसी गर्भ में जा कर बाथरूम में नहीं बहेना पडेगा …
याग्य वल्क्य ऋषि कहेते- यज्ञ , दान, स्वाध्याय, जप, ध्यान, देश- काल -पात्र के अनुसार व्यवहार करना ही धर्म के अंतर्गत है….
मनु महाराज कहेते की धर्म वो है जिस से इस लोक और परलोक की ऊँची गति हो..मनुष्य लाभान्वित हो सके..
गाड़ी बढ़िया है लेकिन ब्रेक नहीं है या स्टेआरिंग नहीं है, तो ऐसी गाड़ी हमें सुरक्षित यात्रा नहीं करवाएगी..
ऐसे परायी वस्तु में मन न लगा के ईश्वर में मन लगे ये एक्सीलेटर है, अनुचित खाने के लिए मन को रोकने की शक्ति ये ब्रेक है..पतन से बचने की शक्ति है ये स्टेआरिंग का उपयोग करते …तो जैसे सही कंडीशन वाली गाड़ी सुरक्षित पहुंचाती , ऐसे जिस को करने से हम भगवान की तरफ पहुंचे उस का नाम है धर्म..
चोरी बे-इमानी न करना, व्यर्थ की हिंसा न करना(इस में बोर्डर वाले जवान नहीं आते), व्यभिचार न करना, दुसरे की वस्तु न छिनना, अनिष्ट संकल्प न करना, चुगली नहीं करना, कठोर न बोलना, एक का दोष दुसरे को न बताना ये आप के जीवन में आये तो आप को धर्मात्मा महात्मा बना देंगे…
जो ज़रा ज़रा बात में चोरी करते, झूठ बोलते वो आत्म हत्यारे है…
सत्य समान कोई पुण्य नहीं, झूठ समान नहीं पाप….
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vyas ji kahete ki shuddh me shudh hai paramaatma ka prakash, to jis se anakaran paramatma ka prakash hota vo dharm hai… pyaau lagaate to bhi bhagavaan ke liye, patiparaayan rahete to bhi bhagavan ke liye … to antakaran shudhd hogaa aur antakaran shudhd hoga to shudhd tatv ka sakshatakaar hogaa..
jin sadhano se antakaran shudhd hota hai, ve sabhi sadhan dharm hai…
ek machhawara machhaliyaa ko sataa ke nikaal rahaa tha..sadhu ne dekha to puchhaa ki kyu itan imachhaliyaa maar raha ahai …bola, ‘akela hu,.. pet ke liye maar rahaa hun’
sadhu bola, ‘ek ka pet bharane ke liye itani machhhliya mat maar…chalo ashram me raho ,tujhe khana mil jaaya karegaa..
machhhaware ka aashram ke mahol se man badalaa.. gayaa sadhu ke paas ki mujhe bhi mantr do..diksha do..
sadhu bola, abhi tera antakaran shudh nahi huaa hai, antakaran shudhd nahi aur diksha dete to jaise sadak par bij nahi ugataa aise abhi diksha se tumhe utana labh nahi hogaa..
to machhawara bola ki, antakaran ko kaise shudhd karu?
sadhu bole, ‘yatraa kar!’
machhhwara ne puchha thik hai mai jata hun yatra karane, lekin mujhe pataa kaise chale ki antakaran shudhd hua aki nahi..kab lautanaa hai’
sadhu baba ne ek ped ka laththaa diyaa, bole ye abhi gila hai, haraa hai…ye jab sukh ke pilaa ho jaye to aa jana…
machhawara nikalaa yatra par…yatra karate karate ek gaanv ke baahr ped ke niche soya tha..nind to nahi aa rahi thi..madhyaraatri ko kuchh lutere aaye , usi ped par baith ke lutere log planing banaa rahe the…ki aisa lutenge , gadabad huyi to tum idhar se aag lagaanaa, tum udhar se lagaanaa.. gaanv wale jal marenge aag ki lapet me…
machhawaare ne socha yun to maine paap bahot kiya hai, thoda uar sahi..’
machhwara ne dandaa uthaya aur dhad dhad maarana shuru kar diya choro ko…3-4 ko gira diyaa baki bhaag gaye..gaanv waale bach gaye… subah huyi to machhwara socha danda to ab bahot jyada haraa ho gayaa hogaa….dekhaa to dandaa sukh kar pilaa ho gayaa thaa..
machhawara sadhu baba ke paas wapas aaya , sab bataya ki ye danda haraa hona chaahiye tha, maine itano ko maaraa..
sadhu baba bole, bahoto ki rakshaa se , aur dusaro ki heet ki bhavanaa se teri paheli ki sari gadabad maaph huyi hai..isliye dandaa pila ho gayaa..ab tu diskha ka adhikari huaa hai..’
Pujyashri from Rajokari Ashram
dharm rakshati rakhsitaah- dharm ki raksha ki to dharm aap ki raksha karataa hi hai..
bhagavan ke liye rone se, mala japane se agar aap ka hruday shudhd hota to vo karo, jo karane se aap ka hruiday shudh hota vo karana ye dharm hai.. …
kabir ji bolate , roj sant ka darshan karane se hruday shudhd hota..roj na kar sake to dusare din karo , dusare nahi to 3re din karo , 7 din me karo, 7din me nahi to 15-15 din me karo..15 din me bhi nahi kar sakate to maas maas me kar lo to kaal dagaa nahi degaa… yamapuri nahi jana padegaa…kisi garbh me jaa kar bathroom me nahi bahenaa padegaa …
yaagy valky rushi kahete yagy, daan, swadhyay, jap, dhyan, desh-kal-paatr ke anusar vyavahaar karanaa hi dharm ke antargat hai.
manu maharaj kahete ki dharm vo hai jis se is lok aur parlok ki unchi gati ho..manushya labhanvit ho sake..
gadi badhiya hai lekin break nahi hai ya stayaring nahi hai, to aisi gadi hame surakshit yatra nahi karavayegi..
aise parayi vastu me man na lagaa ke ishwar me man lage ye acciletor hai, anuchit khane ke liye man ko rokane ki shakti ye break hai..patan se bachane ki shakti hai ye stearing ka upayog karate …to jaise sahi condition wali gadi surakshit pahunchate aise jo kar ke ham bhagavan ki taraf pahunche us ka naam hai dharm..
chori be-imani na karanaa, vyarth ki hinsa na karanaa(is me border wale jawan nahi aate), vyabhichaar na karanaa, dusare ki vastu chhinanaa, anisht sankalp na karanaa, chugali nahi karanaa, kathor na bolanaa, ek ka dosh dusare ko na bataanaa ye aap ke jeevan me aaye to aap ko dharmatma mahaatmaa banaa denge…
jo jaraa jaraa baat me chori karate, jhuth bolate vo aatm-hatyaare hai..
satya samaan koyi punya nahi, jhuth samaan nahi paap...
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नारद जी के पूर्व जन्म की कथा
( परम पूज्य आसाराम बापूजी के सत्संग से )
नारद जी कहेते :- महा पुरुषों के आज्ञा के अनुसार कर्म करना, महापुरुषों से प्रीति रखना और महापुरुषों के संपर्क में आना ये धर्म के प्रसाद को सहज में प्रगट कर देता है …
नारद जीने बताया मैं तो एक गरीब दासी का बेटा था.. वो भी रोजाने काम में जाती, कभी काम मिले , कभी ना मिले….. चातुर्मास के दिनों में किसी संत महापुरुष की कथा में किसी सेठ ने मेरी माँ को कहा की यहाँ कथा के मैदान में झाड़ू बुहारी लगाया कर, पानी का छिटकाव किया कर..तेरे को रोजी देंगे रोज की..
मैं 5 साल का था.. मेरा बाप तो मर गया था…मैं भी अपने माँ के साथ गया..मेरी माँ तो काम काज करे…और मैं सत्संग में बैठु..संत का दर्शन करू… अब समझू तो नहीं..लेकिन संत की वाणी मेरे कान से टकराए…कान पवित्र हुए.. धीरे धीरे अच्छा लगने लगा …फिर कीर्तन में मेरे को मजा आने लगा…फिर कीर्तन करते करते , भगवान का नाम जपने से मेरे रक्त के कण पवित्र हुए…ऐसे करते करते मेरे को सत्संग में रूचि हुयी…
संत जब जा रहे थे तो मैंने हाथ जोड़े…बाबाजी मेरे को तो अब घर में अच्छा नहीं लगेगा.. मैं तो आप के साथ चलू…
बाबा ने कहा, ‘अभी तू बच्चा है.. घर में ही रहो.. घर में ही रहे के भजन करो..’
बोले, मेरी माँ टोकेगी…
बाबा बोले, ‘जो भगवान के रस्ते जाते, उन को मदद करनेवाले को पुण्य होता ..लेकिन भगवान के रस्ते जानेवाले को जो रोकते-टोकते उन को पाप लगता.. ऐसे रोकने-टोकने वालो की भगवान बुध्दी बदल देते या तो भगवान अपने चरणों में बुला लेते है…तेरी माँ की बुध्दी बदलेगी या तो तेरी माँ को भगवान अपने धाम में बुला लेंगे…’
कुछ दिनों में मेरी माँ टोकने लगी…उस को तो साप ने काटा और वो मर गयी..मेरी माँ की अंतेष्टि पंचों ने मकान बेच के कर लिया…
..मैं तो चलता बना…दिशा का तो पता नहीं था…उत्तर की तरफ चलता गया…चलते चलते कही गाव आये, कई तहेसिल आये…तालाब आये..नदिया आये..किसी से भिक्षा मांग के खा लेता..
संतो ने नाम रख दिया – ‘हरी दास’.. हरी हरी ..हे गोविन्द..हरी हरी …बोलता..कुछ और पता नहीं था…
ऐसे करते करते गंगा किनारे पहुंचा..गंगाजी में नहा धो के थोडा पीपल के पेड़ के निचे बैठा ….भगवान मैं कुछ नहीं जानता हूँ , लेकिन तुम्हारा हूँ… …हे गोविन्द ..हे गोपाल..हरी.. हरी…ऐसे बोलता..मेरे को पता ही नहीं था की हरी हरी बोलने से भगवान पाप हर लेते…’हरि ॐ ‘ बोलने से भगवान अपना ज्ञान भरते…..
मैं तो प्रभु को पुकारता …हे प्रभु …कब मिलोगे….
हरि ssssssss ओम्म्म sssssssssss
ऐसे करते करते मेरा मन शांत होने लगा… प्रकाश दिखने लगा..आनंद भी आया, और भगवान की तड़प भी जगी… आकाशवाणी हुयी की, ‘पुत्र अभी तू मेरा दर्शन नहीं कर सकता…मेरे दर्शन का प्रभाव तू नहीं झेल सकेगा…लेकिन अगले जनम में तू मेरा खास महान संत बनेगा.. ‘नारदजी’ तेरा नाम पडेगा.. ब्रम्हा के यहाँ तेरा जन्म होगा.. और देश-देशांतर में , लोक-लोकांतर में तेरी अ-बाधित गति होगी …!’
कहा तो मैं गरीब दासी का बेटा..और कहा नारदजी बना !..भगवान श्रीकृष्ण के सभा में जाऊं तो भगवान श्रीकृष्ण उठ कर मेरा स्वागत करते… ये संतों के दर्शन का और धर्म का फल नहीं तो काय का फल है?
ये किस का फल है? बी. टेक का फल है या एम् डी होने का फल है? पी एच डी का फल हा या डी .लिट. अथवा एम् बी बी एस होने का फल है?…ये तो ‘हरि ॐ’ का फल है !!!!
मेरे को भी जो फल मिला वो गुरू के प्रसाद का फल मिला है…
तो नारद जी बोलते है – की महान पुरुषों का संग, सत्संग, जप-ध्यान ये ही धर्म मनुष्य को महान बना देता है ….
नारद जी कहेते :- महा पुरुषों के आज्ञा के अनुसार कर्म करना, महापुरुषों से प्रीति रखना और महापुरुषों के संपर्क में आना ये धर्म के प्रसाद को सहज में प्रगट कर देता है …
नारद जीने बताया मैं तो एक गरीब दासी का बेटा था.. वो भी रोजाने काम में जाती, कभी काम मिले , कभी ना मिले….. चातुर्मास के दिनों में किसी संत महापुरुष की कथा में किसी सेठ ने मेरी माँ को कहा की यहाँ कथा के मैदान में झाड़ू बुहारी लगाया कर, पानी का छिटकाव किया कर..तेरे को रोजी देंगे रोज की..
मैं 5 साल का था.. मेरा बाप तो मर गया था…मैं भी अपने माँ के साथ गया..मेरी माँ तो काम काज करे…और मैं सत्संग में बैठु..संत का दर्शन करू… अब समझू तो नहीं..लेकिन संत की वाणी मेरे कान से टकराए…कान पवित्र हुए.. धीरे धीरे अच्छा लगने लगा …फिर कीर्तन में मेरे को मजा आने लगा…फिर कीर्तन करते करते , भगवान का नाम जपने से मेरे रक्त के कण पवित्र हुए…ऐसे करते करते मेरे को सत्संग में रूचि हुयी…
संत जब जा रहे थे तो मैंने हाथ जोड़े…बाबाजी मेरे को तो अब घर में अच्छा नहीं लगेगा.. मैं तो आप के साथ चलू…
बाबा ने कहा, ‘अभी तू बच्चा है.. घर में ही रहो.. घर में ही रहे के भजन करो..’
बोले, मेरी माँ टोकेगी…
बाबा बोले, ‘जो भगवान के रस्ते जाते, उन को मदद करनेवाले को पुण्य होता ..लेकिन भगवान के रस्ते जानेवाले को जो रोकते-टोकते उन को पाप लगता.. ऐसे रोकने-टोकने वालो की भगवान बुध्दी बदल देते या तो भगवान अपने चरणों में बुला लेते है…तेरी माँ की बुध्दी बदलेगी या तो तेरी माँ को भगवान अपने धाम में बुला लेंगे…’
कुछ दिनों में मेरी माँ टोकने लगी…उस को तो साप ने काटा और वो मर गयी..मेरी माँ की अंतेष्टि पंचों ने मकान बेच के कर लिया…
..मैं तो चलता बना…दिशा का तो पता नहीं था…उत्तर की तरफ चलता गया…चलते चलते कही गाव आये, कई तहेसिल आये…तालाब आये..नदिया आये..किसी से भिक्षा मांग के खा लेता..
संतो ने नाम रख दिया – ‘हरी दास’.. हरी हरी ..हे गोविन्द..हरी हरी …बोलता..कुछ और पता नहीं था…
ऐसे करते करते गंगा किनारे पहुंचा..गंगाजी में नहा धो के थोडा पीपल के पेड़ के निचे बैठा ….भगवान मैं कुछ नहीं जानता हूँ , लेकिन तुम्हारा हूँ… …हे गोविन्द ..हे गोपाल..हरी.. हरी…ऐसे बोलता..मेरे को पता ही नहीं था की हरी हरी बोलने से भगवान पाप हर लेते…’हरि ॐ ‘ बोलने से भगवान अपना ज्ञान भरते…..
मैं तो प्रभु को पुकारता …हे प्रभु …कब मिलोगे….
हरि ssssssss ओम्म्म sssssssssss
ऐसे करते करते मेरा मन शांत होने लगा… प्रकाश दिखने लगा..आनंद भी आया, और भगवान की तड़प भी जगी… आकाशवाणी हुयी की, ‘पुत्र अभी तू मेरा दर्शन नहीं कर सकता…मेरे दर्शन का प्रभाव तू नहीं झेल सकेगा…लेकिन अगले जनम में तू मेरा खास महान संत बनेगा.. ‘नारदजी’ तेरा नाम पडेगा.. ब्रम्हा के यहाँ तेरा जन्म होगा.. और देश-देशांतर में , लोक-लोकांतर में तेरी अ-बाधित गति होगी …!’
कहा तो मैं गरीब दासी का बेटा..और कहा नारदजी बना !..भगवान श्रीकृष्ण के सभा में जाऊं तो भगवान श्रीकृष्ण उठ कर मेरा स्वागत करते… ये संतों के दर्शन का और धर्म का फल नहीं तो काय का फल है?
ये किस का फल है? बी. टेक का फल है या एम् डी होने का फल है? पी एच डी का फल हा या डी .लिट. अथवा एम् बी बी एस होने का फल है?…ये तो ‘हरि ॐ’ का फल है !!!!
मेरे को भी जो फल मिला वो गुरू के प्रसाद का फल मिला है…
तो नारद जी बोलते है – की महान पुरुषों का संग, सत्संग, जप-ध्यान ये ही धर्म मनुष्य को महान बना देता है ….
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