27.9.11

अकबर को सबक सिखाने वाली किरणदेवी



ओंकार की साधना करने वाले चाहे युवक हो या युवती हो, मौत से डरते नही लेकिन मौत के घाट उतारने वाले को ठीक कर देते है.
महाराणा प्रताप का नाम तो तुम लोग जानते हो..महाराणा  प्रताप का भाई था शक्ति सिंह ..शक्ति सिंह की बेटी का नाम किरण देवी था..किरण देवी को सत्संग में ऐसा कुछ दिव्य ज्ञान  मिला था की ओंकार का गुंजन करती..ऐसा कुछ  सीखने को मिल गया की किरण बड़ी बहादुर हुई..और लोग तो किरण को देख कर बोलते थे की ये तो देवी का रूप है..क्यों की  ओंकार का जप करने से अधी भौतिक और अधी दैविक शक्तियां   विकसित हो गयी थी..
उन दिनों  अकबर बादशाह के यहा खुशरोज मेला लगता था..खुशरोज मेला में नौवे दिन सिर्फ़ महिलाओं को प्रवेश होता था.. पुरुष नही आते थे..तो सारी महिलायें  महिलायें  होती तो दिल खोल के मेले में घूमती थी…घूँघट की ज़रूरत नही..
तो अकबर जितना प्रसिध्द  राजा था उतना ही हवस का भी गुलाम था…रानियों से उस का पेट नही भरता, हवस पूरी नही होती  तो कोई भी सुंदर युवती को देखता तो उस को फसाने के लिए साजिश करता…अब मेले में नवमे दिन कोई पुरुष नही जाए..अकबर भी औरत के कपड़े पहेंन  कर जाता..और उस की रखी हुई जो बदमाश वेश्याए भी उस के साथ में रहेती उस मेले में..अकबर जिस लड़की की तरफ इशारा कर देवे वो कुलटाए उस लड़की को समझा के बुझा के उस को प्रलोभन देकर..साम दाम दंड भेद  कैसे भी कर के लड़की को ले आती..जब राजा चाहे तो उन की रखी हुई बदमाश  औरते कुछ  भी कर सकती थी राजा के लिए..
तो मेला देखने गयी शक्ति सिंह की कन्या किरण देवी.. और अकबर ने उस का रूप लावण्य प्रभाव देख कर ऐसा हो गया की जैसे दीपक के आगे  पतंगा कुर्बान हो जाता है, ऐसे किरण देवी का रूप सौंदर्य प्रभाव देख कर अकबर के साथ में जो कुलटा बदमाश औरते थी उन को बोला की कुछ  भी हो जाय बीसो उंगलियों का ज़ोर लगा कर इस को मेरे महेल में हाजिर कर दो..
अब किरण देवी तो उन के साजिश मे फंसी और उन के साथ हो गयी..किरण देवी को क्या क्या बाते कर के प्रलोभन दिखा के फ़सा के उस को अकबर मे महेल में ले गयी..कुलटायें तो चली गयी..किरण को देख कर अकबर का तो काम विकार एकदम अंधे घोड़े पर हावी हो गया…किरण देवी समझ गयी की वो औरते इन्ही की भेजी हुई कुलटायें थी और मेरे को फँसा कर यहा लाया गया है..ये हवस का शिकार है…क्षण भर के लिए चुप हुई और आज्ञा  चक्र में ओंकार स्वरूप का ध्यान किया.. हे अंतरात्मा परमात्मा तू मेरे साथ है..तू ही आद्य  शक्ति के रूप में और तू ही कृष्ण और राम जी के रूप में , तू ही संत और भगवंत के रूप सब के दिल में प्रगट होता है.. मेरी सहायता करना और मुझे सामर्थ्य देना तेरी ही कृपा है..ओम ओम… मन में जपा..कमर से कट्यार  निकाली..और जैसे शेरनी हाथी पर झपटती है ऐसे अकबर का हाथ पकड़ा एक…कट्यार  को संभालते हुए ऐसा कुछ  दाँव मारा की अकबर नीचे गिर पड़ा..किरण देवी जंप मार के अकबर के छाती  पर चढ़ बैठी और  कट्यार गर्दन  पर रख के बोली अभी तेरी मृत्यु की घड़ी है नालायक..भगवान ने तुझे राजा बनाया..बहू बेटियों की इज़्ज़त बचाने का राजा का काम होता है..और तू औरते के कपड़े पहेंन  कर सुंदर लड़कियों को फसाने के लिए मेले में ये साजिश करता है..अब तेरी मृत्यु निकट है..बोल क्या चाहिए?..
अकबर बोला, ‘मुझे प्राणो का दान दे दे देवी….’
किरण देवी बोली, ‘तू हवस का शिकार..इस खुषरोज  मेले को बंद करेगा की नही?’
अकबर बोला, ‘अल्लाह की कसम मैं  बंद कर दूँगा..’
किरण देवी ने तो गर्जना की  ’ओम ओम ओम ओम ..’
अकबर के नीचे कपड़े गीले हो गये..अकबर कापने लगा..बोला, ‘मैं  मेला बंद कर दूँगा और दुबारा तुम्हारी जैसी युवतियों को नही फसाउंगा     ..’
किरण देवी दहाडी, “हमारी जैसी नही, दूसरी कोई भोलीभाली हो तो भी..किसी भी कन्या की इज़्ज़त नही लूटेगा..बोल वचन देता है की कट्यार  गले से आरपार कर दूं?”
अकबर बोला, “नही नही!  ..”   ..क्या अकबर की दुर्दशा हुई..बच्चा भी इतना कपड़ा गीला नही करता…आगे  कपड़ा गीला होता तो पिछे  नही होता..लेकिन अकबर के तो पिछे  भी रंगीन कपड़े हो गये.. ऐसी बुरी हालत हुई..
अकबर ऐसा कापने लगा..किस से? एक कन्या से!..
कन्यायें  अपने को अबला ना समझे..महिलायें  अपने को दुर्बल ना समझे..ओम स्वरूप अंतरात्मा परमात्मा की शक्तियां  सब के अंदर छूपी है…ओम ओम ओम ओम ओम…
(बहुत सुंदर ओंकार का कीर्तन हो रहा है..)
ओंकार के गुंजन ने ऐसी शक्ति जगाई किरण देवी में…अकबर ने माफी माँगी..अकबर के मुँह पर थूकती हुई किरण देवी उस के महेल से निकल गयी..अकबर ने वो मेला बंद कर दिया..और सुंदर युवतियों को फ़सा के हवस का शिकार बनाने का दुष्कर्म छोड़ दिया की नही पता नही लेकिन कम तो ज़रूर किया होगा..
ॐ शांती 
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सदना की कथा




कर्म की ऐसी गति है की देर-सबेर कर्म का फल भोगना पड़ता है..
सदना तीर्थ यात्रा को निकला था
पहेले जमाने मे होटेल आदि नही था, तो किसी के अतिथि बनते रात गुजरने के लिएसदना भी किसी घर का अतिथि बना..पति अधेड़ उमर का, पत्नी युवती थी..मध्यरात्रि को सदना को जगाया,बोली, ‘हम ने तुझे इस लिए ठहेराया की, ये आदमी बुढड़ा है, मेरे गले लगोआदि हलकट बाते कही..
सदना बोले, ‘बहेनजी क्या कहेती है! मुझे जगन्नाथ जी के दर्शन लेना है…’
बोली, ‘साथ मे चलेंगे..भक्त-भक्तानी बनकर
सदना बोले, ‘नही, मेरा विवेक मना करता है..
बोली, ‘मैं  समझ गयी, अभी तेरा डर  मिटाती है'
वो गयी और सोते हुए पति को उसी की तलवार से गर्दन काट के सदना को ला के दिखाया..
लो!अब डर ख़तम! चले इस को गाड़ के हम भक्त-भक्तानी बन के जगन्नाथ जी के दर्शन  करेंगे..
चल री ठगनी ,मचल मचल के मुझे ना ठग ,तेरे हाथ कबीरा ना आवेऐसा कबीर जी के यहाँ  नाचनेवाली वेश्या आई तो को कबीर जी ने कहा था, ऐसे सदना उस कुलटा के कहेने में  नही आए तो स्री  को काम सताए तो स्री  का क्रोध क्या कर देता देखो..उस कुलटा ने अपना ब्लाउज  फाड़ दिया और ज़ोर से चिल्लाई.. बचाओ!हुमारी इज़्ज़त लूट रहा... मेरे आदमी का गला काट दिया..
लोगो ने पकड़ा, राजा के पास ले गये..राजा ने आदेश दिया ऐसा भक्त के रूप मैं  दैत्य हमारे  जेल  में  भी नही रहेगा..इस को हाथ काट के राज्य की सीमा के बाहर जंगल मे जगानाथ जी के रास्ते डाल दो
रोते रोते सदना जगन्नाथ जी की यात्रा करते रहे.. बोलते भगवान, मैने तो कोई कू-कर्म नही किया, फिर भी ये सज़ा .... तो कौन मानेगा धर्म को?कौन पूजेगा तुम को?भगवान को पुकारता..  फिर भी चलते जातापैरो मे काटे चुभते , हाथ कटे है.. पैर साफ नही कर सकता..जब ती हो गया तो बोला, ‘हे प्रभु अब इतनी दया करो की डोली करा दो तो तेरा दर्शन करू!
सच्चे दिल से भगवान याद आए तो प्रार्थना करते करते चुप हो गये तो पक्का भरोसा कर के चुप हो जाए तो वो घटना घटती….राजा रुद्र-प्रताप उड़ीसा के राजा थे..उन को स्वपना हुआ और उन्हो ने आदेश दिया की हाथ कटे हुआ यात्री आ रहा, उस को जगन्नाथ भगवान का दर्शन कराओ .. विशेष अतिथि का दर्जा देकरजैसे मुझे चीफ़ गेस्ट बना दिया, ऐसे बन सकते..
सदना बोले, ‘हे जगन्नाथ इतनी दया की! निर्दोष होते हुए भी हाथ कटे तब कहाँ  गये थे? ऐसा करते करते भाव में  आ गये..
भाव ग्राही जनार्दन!
संत के हृदय के भाव, माँ  बाप के अंदर संतान के शुभ होने का भाव हो तो भगवान भी ऐसे भाव की कदर करता.. वो जनार्दन है.. अनेक रूपो मे परमेश्वर है ..
सदना का वहा ही ध्यान लग गया ..तो  क्या देखा कीपिछले  जनम मे सदना साधु था, झोपड़ी के बाहर बैठा था, साधना कर रहा था ..दुबली पतली गाय को देख लिया.. गाय की हत्या करने कसाई पिछे  पड़ा उस को भी देखा..गाय सामने से गुज़री, कुछ  ही क्षण के बाद कसाई आया..उस ने दूर से आवाज़ दी, ‘ये महाराज गाय को पकडोगाय सामने से गुजर रही थी, साधु दौड़ा..दोनो पंजो से गाय को रोक लिया कसाई ने... उस को बिस्मिल्ला कर डालावो ही गाय सुंदरी और कसाई उस का पति बना इस जनम में , जैसे गाय की गर्दन कसाई ने काटी ऐसे उसी बाई ने पति की गर्दन काटी.. एक हाथ ले, एक हाथ देये नियम है.. अपने हाथो की जंजीर बना के रोका था,इस लिए तुम्हारे हाथ कटेइस में  मैं  क्या करू?भगवान ने सदना के आगे  पूरी कहानी  रख दी..
कर्म के फल भोगने के लिए ही जीव जनमता मरता है.. सुख देकर सुख भोगता और दुख देकर दुख भोगता है.. मेरे दर्शन करने आते मंदिरो में  तो मेरे दर्शन कहाँ  होते? मूर्ति के ही दर्शन होते! आर्त  भाव से प्रार्थना करते तो सदना के लिए डोली  भेज दीसदना की ध्यान से आँख खुली..
बोले,  ‘तुम धन्य  है प्रभु जगन्नाथ!तेरे दर पे  देर है, अंधेर नही बोलते..लेकिन तेरे दर पे तो देर भी नही और अंधेर भी नहीजय   हो जगन्नाथ प्रभु !माझ्या विठ्ठला ..पांडुरंगाकटे हुए हाथो से भगवान की जयजयकार करने लगा सदनातो दोनो कटे हुए हाथ भी  उभर आए!
ईश्वर का संविधान अ-काट्य  है, झुठला नही सकते.. पाप कट जाएँगे तो भी पुण्य का फल सुख समृध्दी  बनेगा.. लेकिन पाप का कुछ  ना कुछ  फल तो भोगना ही पड़ेगा.. दुख का प्रभाव कम हो जाएगा, लेकिन दुख की चोट कम होगी लेकिन दुख नष्ट नही होगाजैसा 100 आम के पेड़ लगाए, और पड़ोस के लोगो को काँटे चुबे इसलिए 50 पेड़ बबुल  के लगाए तो आम देने का सुख और काटे बोने का दुख दोनो भोगने पड़ते, ऐसा नही हो सकता की भगवान हम को 100 पेड़ आम के सुख से 50 बबुल  के काटे बोने के दुख माइनस कर दो ..भगवान बोलेंगे, ‘नही, काटो का फल और आम का फल दोनो लो!
इसलिए कोई दुष्ट कर्म ना करो.. दुख करता को उस का फल मिलता ज़रूर है..
सुख की लालच हुई तो हे नाथ! हे प्रभु!बचाओकर के पुकारोदूसरे के साथ कू-कर्म करने से बचाओप्रभु मैं  तेरा हूँ,तुम मेरे होअपने हक  का जो  नही, उस से मुझे बचाओ.. ना देखने जैसा देखने से मुझे बचाओ..हे नाथ ना खाने जैसा  खाने से बचाओवो अनाथो के नाथ आप को ज़रूर विवेक देंगे..दयालु भगवान सत्संग देंगे..

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