ओंकार की साधना करने वाले चाहे युवक हो या युवती हो, मौत से डरते नही लेकिन मौत के घाट उतारने वाले को ठीक कर देते है.
महाराणा प्रताप का नाम तो तुम लोग जानते हो..महाराणा प्रताप का भाई था शक्ति सिंह ..शक्ति सिंह की बेटी का नाम किरण देवी था..किरण देवी को सत्संग में ऐसा कुछ दिव्य ज्ञान मिला था की ओंकार का गुंजन करती..ऐसा कुछ सीखने को मिल गया की किरण बड़ी बहादुर हुई..और लोग तो किरण को देख कर बोलते थे की ये तो देवी का रूप है..क्यों की ओंकार का जप करने से अधी भौतिक और अधी दैविक शक्तियां विकसित हो गयी थी..
उन दिनों अकबर बादशाह के यहा खुशरोज मेला लगता था..खुशरोज मेला में नौवे दिन सिर्फ़ महिलाओं को प्रवेश होता था.. पुरुष नही आते थे..तो सारी महिलायें महिलायें होती तो दिल खोल के मेले में घूमती थी…घूँघट की ज़रूरत नही..
तो अकबर जितना प्रसिध्द राजा था उतना ही हवस का भी गुलाम था…रानियों से उस का पेट नही भरता, हवस पूरी नही होती तो कोई भी सुंदर युवती को देखता तो उस को फसाने के लिए साजिश करता…अब मेले में नवमे दिन कोई पुरुष नही जाए..अकबर भी औरत के कपड़े पहेंन कर जाता..और उस की रखी हुई जो बदमाश वेश्याए भी उस के साथ में रहेती उस मेले में..अकबर जिस लड़की की तरफ इशारा कर देवे वो कुलटाए उस लड़की को समझा के बुझा के उस को प्रलोभन देकर..साम दाम दंड भेद कैसे भी कर के लड़की को ले आती..जब राजा चाहे तो उन की रखी हुई बदमाश औरते कुछ भी कर सकती थी राजा के लिए..
तो मेला देखने गयी शक्ति सिंह की कन्या किरण देवी.. और अकबर ने उस का रूप लावण्य प्रभाव देख कर ऐसा हो गया की जैसे दीपक के आगे पतंगा कुर्बान हो जाता है, ऐसे किरण देवी का रूप सौंदर्य प्रभाव देख कर अकबर के साथ में जो कुलटा बदमाश औरते थी उन को बोला की कुछ भी हो जाय बीसो उंगलियों का ज़ोर लगा कर इस को मेरे महेल में हाजिर कर दो..
अब किरण देवी तो उन के साजिश मे फंसी और उन के साथ हो गयी..किरण देवी को क्या क्या बाते कर के प्रलोभन दिखा के फ़सा के उस को अकबर मे महेल में ले गयी..कुलटायें तो चली गयी..किरण को देख कर अकबर का तो काम विकार एकदम अंधे घोड़े पर हावी हो गया…किरण देवी समझ गयी की वो औरते इन्ही की भेजी हुई कुलटायें थी और मेरे को फँसा कर यहा लाया गया है..ये हवस का शिकार है…क्षण भर के लिए चुप हुई और आज्ञा चक्र में ओंकार स्वरूप का ध्यान किया.. हे अंतरात्मा परमात्मा तू मेरे साथ है..तू ही आद्य शक्ति के रूप में और तू ही कृष्ण और राम जी के रूप में , तू ही संत और भगवंत के रूप सब के दिल में प्रगट होता है.. मेरी सहायता करना और मुझे सामर्थ्य देना तेरी ही कृपा है..ओम ओम… मन में जपा..कमर से कट्यार निकाली..और जैसे शेरनी हाथी पर झपटती है ऐसे अकबर का हाथ पकड़ा एक…कट्यार को संभालते हुए ऐसा कुछ दाँव मारा की अकबर नीचे गिर पड़ा..किरण देवी जंप मार के अकबर के छाती पर चढ़ बैठी और कट्यार गर्दन पर रख के बोली अभी तेरी मृत्यु की घड़ी है नालायक..भगवान ने तुझे राजा बनाया..बहू बेटियों की इज़्ज़त बचाने का राजा का काम होता है..और तू औरते के कपड़े पहेंन कर सुंदर लड़कियों को फसाने के लिए मेले में ये साजिश करता है..अब तेरी मृत्यु निकट है..बोल क्या चाहिए?..
अकबर बोला, ‘मुझे प्राणो का दान दे दे देवी….’
किरण देवी बोली, ‘तू हवस का शिकार..इस खुषरोज मेले को बंद करेगा की नही?’
अकबर बोला, ‘अल्लाह की कसम मैं बंद कर दूँगा..’
किरण देवी ने तो गर्जना की ’ओम ओम ओम ओम ..’
अकबर के नीचे कपड़े गीले हो गये..अकबर कापने लगा..बोला, ‘मैं मेला बंद कर दूँगा और दुबारा तुम्हारी जैसी युवतियों को नही फसाउंगा ..’
किरण देवी दहाडी, “हमारी जैसी नही, दूसरी कोई भोलीभाली हो तो भी..किसी भी कन्या की इज़्ज़त नही लूटेगा..बोल वचन देता है की कट्यार गले से आरपार कर दूं?”
अकबर बोला, “नही नही! ..” ..क्या अकबर की दुर्दशा हुई..बच्चा भी इतना कपड़ा गीला नही करता…आगे कपड़ा गीला होता तो पिछे नही होता..लेकिन अकबर के तो पिछे भी रंगीन कपड़े हो गये.. ऐसी बुरी हालत हुई..
अकबर ऐसा कापने लगा..किस से? एक कन्या से!..
कन्यायें अपने को अबला ना समझे..महिलायें अपने को दुर्बल ना समझे..ओम स्वरूप अंतरात्मा परमात्मा की शक्तियां सब के अंदर छूपी है…ओम ओम ओम ओम ओम…
(बहुत सुंदर ओंकार का कीर्तन हो रहा है..)
ओंकार के गुंजन ने ऐसी शक्ति जगाई किरण देवी में…अकबर ने माफी माँगी..अकबर के मुँह पर थूकती हुई किरण देवी उस के महेल से निकल गयी..अकबर ने वो मेला बंद कर दिया..और सुंदर युवतियों को फ़सा के हवस का शिकार बनाने का दुष्कर्म छोड़ दिया की नही पता नही लेकिन कम तो ज़रूर किया होगा..
ॐ शांती
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