कर्म की ऐसी गति है की देर-सबेर कर्म का फल भोगना पड़ता है..
सदना तीर्थ यात्रा को निकला था…
पहेले जमाने मे होटेल आदि नही था, तो किसी के अतिथि
बनते रात गुजरने के लिए…सदना भी किसी घर का
अतिथि बना..पति अधेड़ उमर का, पत्नी युवती
थी..मध्यरात्रि को सदना को जगाया,बोली, ‘हम ने तुझे इस लिए ठहेराया की, ये आदमी बुढड़ा है, मेरे गले लगो’ आदि हलकट बाते कही..
सदना बोले, ‘बहेनजी क्या कहेती है! मुझे जगन्नाथ जी के दर्शन लेना
है…’
बोली, ‘साथ मे चलेंगे..भक्त-भक्तानी बनकर’
सदना बोले, ‘नही, मेरा विवेक मना
करता है..’
बोली, ‘मैं समझ गयी, अभी तेरा डर मिटाती है'
वो गयी और सोते हुए पति को उसी की तलवार से गर्दन काट के सदना को ला के
दिखाया..
‘लो!अब डर ख़तम! चले इस को गाड़ के हम भक्त-भक्तानी बन
के जगन्नाथ जी के दर्शन करेंगे..’
‘चल री ठगनी ,मचल मचल के मुझे ना
ठग ,तेरे हाथ कबीरा ना
आवे’ ऐसा कबीर जी के यहाँ
नाचनेवाली वेश्या आई तो को कबीर जी ने कहा था, ऐसे सदना उस कुलटा के कहेने में नही आए तो स्री को काम सताए तो स्री का क्रोध क्या कर देता देखो..उस कुलटा ने अपना
ब्लाउज फाड़ दिया और ज़ोर
से चिल्लाई.. ‘बचाओ!हुमारी इज़्ज़त लूट रहा... मेरे आदमी का गला काट
दिया..’
लोगो ने पकड़ा, राजा के पास ले गये..राजा ने आदेश दिया ऐसा भक्त के
रूप मैं दैत्य हमारे जेल में भी नही रहेगा..इस को हाथ काट
के राज्य की सीमा के बाहर जंगल मे जगानाथ जी के रास्ते डाल दो…
रोते रोते सदना जगन्नाथ जी की यात्रा करते रहे.. बोलते भगवान, मैने तो कोई कू-कर्म नही किया, फिर भी ये सज़ा ....
तो कौन मानेगा धर्म को?कौन पूजेगा तुम को?भगवान को पुकारता.. फिर भी चलते जाता…पैरो मे काटे चुभते , हाथ कटे है.. पैर
साफ नही कर सकता..जब ती हो गया तो बोला, ‘हे प्रभु अब इतनी
दया करो की डोली करा दो तो तेरा दर्शन करू!’
सच्चे दिल से भगवान याद आए तो प्रार्थना करते करते चुप हो गये तो पक्का भरोसा
कर के चुप हो जाए तो वो घटना घटती….राजा रुद्र-प्रताप
उड़ीसा के राजा थे..उन को स्वपना हुआ और उन्हो ने आदेश दिया की हाथ कटे हुआ यात्री
आ रहा, उस को जगन्नाथ भगवान का दर्शन कराओ .. विशेष अतिथि का
दर्जा देकर… जैसे मुझे चीफ़ गेस्ट बना दिया, ऐसे बन सकते..
सदना बोले, ‘हे जगन्नाथ इतनी दया की! निर्दोष होते हुए भी हाथ कटे
तब कहाँ गये थे? ऐसा करते करते भाव में आ गये..
भाव ग्राही जनार्दन!
संत के हृदय के भाव, माँ बाप के
अंदर संतान के शुभ होने का भाव हो तो भगवान भी ऐसे भाव की कदर करता.. वो जनार्दन
है.. अनेक रूपो मे परमेश्वर है ..
सदना का वहा ही ध्यान लग गया ..तो क्या देखा की… पिछले जनम मे सदना साधु
था, झोपड़ी के बाहर बैठा था, साधना कर रहा था ..दुबली पतली गाय को देख लिया.. गाय की हत्या करने कसाई पिछे
पड़ा उस को भी देखा..गाय सामने से गुज़री, कुछ ही क्षण के बाद
कसाई आया..उस ने दूर से आवाज़ दी, ‘ये महाराज गाय को
पकडो’ गाय सामने से गुजर रही थी, साधु दौड़ा..दोनो पंजो से गाय को रोक लिया कसाई ने... उस को बिस्मिल्ला कर
डाला… वो ही गाय सुंदरी और कसाई उस का पति बना इस जनम में , जैसे गाय की गर्दन कसाई ने काटी ऐसे उसी बाई ने पति की गर्दन काटी.. ‘एक हाथ ले, एक हाथ दे’ ये नियम है.. अपने
हाथो की जंजीर बना के रोका था,इस लिए तुम्हारे
हाथ कटे… इस में मैं क्या करू?भगवान ने सदना के आगे पूरी कहानी रख दी..
कर्म के फल भोगने के लिए ही जीव जनमता मरता है.. सुख देकर सुख भोगता और दुख
देकर दुख भोगता है.. मेरे दर्शन करने आते मंदिरो में तो मेरे दर्शन कहाँ
होते? मूर्ति के ही दर्शन होते! आर्त भाव से प्रार्थना करते तो सदना के लिए डोली भेज दी… सदना की ध्यान से आँख खुली..
बोले, ‘तुम धन्य है प्रभु जगन्नाथ!तेरे दर पे देर है, अंधेर नही बोलते..लेकिन तेरे दर पे तो देर भी नही और अंधेर भी नही… जय हो जगन्नाथ प्रभु !माझ्या विठ्ठला ..पांडुरंगा… कटे हुए हाथो से भगवान की जयजयकार करने लगा सदना…तो दोनो कटे हुए हाथ भी उभर आए!
ईश्वर का संविधान अ-काट्य है, झुठला नही सकते.. पाप कट जाएँगे तो भी पुण्य का फल सुख समृध्दी बनेगा.. लेकिन पाप का कुछ ना कुछ फल तो भोगना ही पड़ेगा.. दुख का
प्रभाव कम हो जाएगा, लेकिन दुख की चोट कम होगी लेकिन दुख नष्ट नही होगा…जैसा 100 आम के पेड़ लगाए, और पड़ोस के लोगो को काँटे चुबे इसलिए 50 पेड़ बबुल के लगाए तो आम देने का सुख और काटे बोने का दुख दोनो भोगने पड़ते, ऐसा नही हो सकता की भगवान हम को 100 पेड़ आम के सुख से 50 बबुल के काटे बोने के दुख माइनस कर दो ..भगवान बोलेंगे, ‘नही, काटो का फल और आम का फल दोनो लो!’
इसलिए कोई दुष्ट कर्म ना करो.. दुख करता को उस का फल मिलता ज़रूर है..
सुख की लालच हुई तो ‘हे नाथ! हे
प्रभु!बचाओ’ कर के पुकारो… दूसरे के साथ
कू-कर्म करने से बचाओ… प्रभु मैं
तेरा हूँ,तुम मेरे हो… अपने हक का जो नही, उस से मुझे बचाओ..
ना देखने जैसा देखने से मुझे बचाओ..हे नाथ ना खाने जैसा खाने से बचाओ… वो अनाथो के नाथ आप को ज़रूर विवेक देंगे..दयालु भगवान सत्संग देंगे..
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें