3.8.10

संत दादू दीनदयालजी महाराज और राजा मानसिंह

सत्संग से 18 लाभ , और मन्त्र दीक्षा से 33 लाभ होते …और सत्संग में एक एक डगला(कदम) चल एक आते तो एक एक यज्ञ करने का फल होता…सत्संग सुनते तो ज्ञानयोग होता…सत्संग में ताली बजाते तो भक्ति योग होता….ऐसे सब फल है!

..जो दीक्षा लेते उन को हार्ट एटेक नहीं होगा, हाई बी. पी. नहीं होगी… ऑपरेशन नहीं करना पड़ेगा ….

राजे महाराजे राजपाट छोड़कर भी सत्संग जाते थे…



राजस्थान में दादू दीनदयाल बहोत उच्च कोटि के संत थे… राजा मानसिंह का भी इतिहास में नाम है… सुमति से मानसिंग आमेर के गद्दी पे बैठे …तो अधिकारी से लेकर सभी अभिवादन करने आये…..सब ने तोहफा दिया….राजा मानसिंह का जयजयकार किया….मस्का मारने वालो ने खूब मस्का मारा…

उस समय का ज़माना और अभी का ज़माना वोही का वोही है…!! उस समय भी संतो के दैवी कार्य का फायदा लेनेवाले लोग थे…और संतो के दैवी कार्य के विरोध में भड़काने वाले लोग भी थे ..!!



..तो दादू दीनदयाल के दैवी कार्य के जो विरोधी थे ऐसे लोगो ने राजा मानसिंह को भड़काया ….की आप आये तो बापू दीनदयाल ने अभिवादन भी नहीं किया ..इतने लोग आये…लेकिन दादू दिनदयाल ने आप को अभिवादन नहीं किया तो इस से दुसरे नागरिको को असर पड़ जायेगी…दादू दीनदयाल ऐसे है..वैसे है….आदि..

.. संत के लिए दुष्ट प्रवृत्ति के लोग निंदा करते और सत-प्रवृत्ति के लोग उन के दैवी गुणों का फायदा लेते..जैसे बछडा गाय का दूध पिता और पुष्ट होता है…. दुष्ट लोग तो गाय को काटते है .. ऐसे जहां दूध पिने वाले बछड़े है तो खून पिने वाले भी होते…!

ऐसे लोग दूसरो की श्रध्दा तोड़ते …..तो ऐसे लोगों ने राजा मानसिंग को कुछ न कुछ भड़काया..की, “ दादू दीनदयाल के आश्रम में किसी की मौत हो गयी तो उस को ना जलाया, ना समाधि दी….और ना उन का कुछ वैदिक विधि से संस्कार किया….ऐसे ही जंगल में फिकवा दिया… की गीध जानवर खा जाए…. किसी साधू के लिए क्या ये अच्छी बात है ?…ये तो बहोत अनर्थ हो गया ….आप इतने अच्छे राजा है…आप पर अकबर प्रसन्न है…..लेकिन उस दादू दीनदयाल को नाराजी है…इसलिए आप का राजतिलक हुआ तो अभिवादन स्वागत करने नहीं आये..और शिष्यों को भी नहीं भेज के 2 वचन नहीं बोले….!”



..राजा मानसिंग ने देखा की कोई कुछ भी कहे…लेकिन संतो के लिए ऐसी बातो में विश्वास नहीं करना चाहिए…. अपनी बुध्दी लगना चाहिए…..राजा मानसिंग बुध्दिमान था …..सोचा की खुद ही जांच करूंगा……



..एक दिन मोका पा के एका एक राजा मानसिंह साधू जी महाराज के आश्रम में गए…प्रणाम किया …..साधू महाराज ने कुशल पूछा ……राजा मानसिंह बोले, “आप की दया है… संतो की दया है ! आप के दर्शन करने आये है….”



….दादू दीनदयाल महाराज बोले, “तुम्हारी आँखों में कुछ प्रश्न दिख रहा है…आप केवल दर्शन करने नहीं आये…. कुछ सच्चाई जानने को आये है….”

….तो राजा मानसिंह बोले, “ महाराज सच्ची बात है…

..दरबार में लोग बोलते की आप आये नहीं… राज्याभिषेक के समय भी बापूजी नहीं आये…तो आप हमारे राजा बनने से नाराज है क्या?… आप पधारे नहीं!…”

..दादूजी दीनदयाल महाराज बोले, “…प्रेरणा नहीं हुयी तो नहीं आये… आप ने हमारा क्या बिगाड़ा है की हम आप से नाराज होंगे?…हम तो दुसरे में भी अपने आत्मा को देखते ….हम आप से नाराज नहीं …..लेकिन आने की जरुरत भी नहीं लगी, इसलिए नहीं आये….”

….उन की बातो से राजा मानसिंह का चित्त शांत हुआ…तो उन्हों ने आगे पूछा की, “महाराज , आप ने आश्रम के व्यक्ति का शव जंगल में फेकवा दिया….उस को जलाया नहीं..कोई संस्कार नही किया….”



तो महाराज बोले, “जिस की मौत हुयी थी , उस की उस शरीर में कामना नहीं थी….वो त्यागी पुरुष था.. (जीते जी ही देहाध्यास छोड़ चुका था…)..इसलिए हमने उस का शव जंगल में फेकवा दिया…

कोई मर जाता है तो उस का 6 प्रकार से संस्कार किया जा सकता है….एक अग्नि संस्कार होता, दूसरा समाधि संस्कार होता है. ..तीसरा वायु संस्कार होता है….जो त्यागी होते उन का वायु संस्कार किया जाता है….जिन की मृत्यु हुयी वो संत त्यागी था…तो ऐसे त्यागी का वायु संस्कार कर दिया ….

चौथा होता है जल संस्कार …जल संस्कार होता तो उस को नदी में बहा देते ..जल को अर्पण कर दिए तो जल संस्कार ..वायु को अर्पण किये तो वायु संस्कार ….. अग्नि में जलाते तो अग्नि संस्कार….. (पूज्य बापूजी जोधपुर सत्संग में बोले की , भूमि संस्कार और विरह-अग्नि संस्कार भी होता..मीराबाई और संत तुकाराम महाराज का देह विरह-अग्नि में भगवान में समा गए…)

..जो संन्यासी होते उन की समाधि संस्कार होता… और वेदों के अनुसार करते उस को वैदिक संस्कार बोलते…

तो ऐसे शव के 6 प्रकार से संस्कार होते… वो त्यागी थे, उन का हम ने त्यागी थे इसलिए वायु संस्कार किया…उन की देह में अहंता नहीं थी.. संसार में महानता नहीं थी…. तो वायु का संस्कार कर देते……”



..राजा मानसिंह को शान्ति हुयी… उस को लगा की , चलो भाई, अच्छा हुआ मैं महाराज जी से मिला… निंदक कुछ न कुछ बकते…लेकिन धरती पे संत आये, इसलिए सुख शांति है….

..ऐसे बड़े बड़े संत जब भी इस धरती पर आये है…निंदक लोग उन के लिए कुछ न कुछ बकते है…. राम जी के गुरू के लिए क्या क्या बोलते….लेकिन संत दयालू स्वभाव के होते है की , अपने कार्य से लोगो का फायदा हो इसलिए समाज में रहेते ….अज्ञानी लोगों का सुन कर ऐसे संतो की निंदा कर के अपने 7 पीढ़ियों को नरक में क्यों डाले?



… ऐसे मानसिंह राजा को संतोष हुआ …कुछ दिन बीते तो फिर दुसरे धर्म वालो ने फिर भड़काया….. “महाराज हद हो गयी!बापू दीनदयाल महाराज ने तो 2 कुंवारी ब्राम्हण कन्याओं को आश्रम में रखा है… उन के साथ में ना शादी करते, ना घर बसाते…. साधू बाबा हो के लड़कियों कों साथ में रखना!….आप के राज्य में कैसा अधर्म हो रहा….हम को दुःख होता है ..!” ऐसी और भी गन्दी गन्दी बाते करते…



फिर गए राजा मानसिंह महाराज के आश्रम में !..

महाराज को प्रणाम किया ….बोले, “महाराज आप के दर्शन करने आये…”

..महाराज बोले, “दर्शन को भी आये और कुछ पूछने के लिए भी आये..पूछ लो…”

राजा मानसिंह बोले, “सच्ची बात है महाराज..आप के आश्रम में 2 कुमारियाँ …2 लड़कियाँ रहेती ….ब्राम्हण की कन्याएं …लोग कुछ न कुछ बोलते…"

महाराज बोले, “लोग तो बोले जो बोलना है..लेकिन वो कन्याएं क्या बोलती वो भी सुन लो…”

…महाराज ने शिष्यों को भेजा की, कन्याओं को बुलाओ… राजा मानसिंह उन से मिलना चाहते है…



..राजा मानसिंह ने कन्याओं को पूछा की “तुम्हारी इतनी उम्र हो गयी, शादी क्यों नहीं करती….बोलो तो बढ़िया वर खोज दूँ…”



..तो उन ब्राम्हण कन्याएं बोली, “महाराज हमारी शादी तो हो गयी 8 साल पहेले …!

..हमारी शादी तो 8 साल पहेले ही भगवान से हो गयी है …महाराज, शादी वो है जो शाद आबाद करे….गुरू के मार्गदर्शन से हम ने ये जान लिया की शरीर के हाडमांस में सुख खोजना व्यर्थ्य है … अमर आत्मा- परमात्मा से, भगवान से शादी हो… ऐसे वर को क्या वरू जो मर जाए!…..हमारी तो 8 साल पहेले भगवान से शादी हो गयी…ये तो आत्मा परमात्मा की शादी है…. गार्गाचार्य ऋषि की बेटी थी गार्गी… वो भी जीवन भर अ-विवाहित थी….क्यों की समझ आ गयी थी की असली विवाह आत्मा परमात्मा का है, लोग उन को प्रणाम करते…… हमारे गुरू के चरणों में रहेकर भगवान की स्मृति में रहेना..इस से अच्छी जगह कही ओर हो सकती है क्या?….गुरूजी के आश्रम में ध्यान भजन करना…उन के दैवी कार्य में भागिदार होना इस से बड़ा काम हो सकता हैं क्या?….”

..राजा मानसिंह बोला, “ ईश्वर भक्ति का इतना महत्त्व समझती हो, साधा जीवन का इतना महत्त्व समझती हो… भोगी और निंदक से फक्कड़ साधू जीवन, त्यागी साधू जीवन जी कर अपना मनुष्य जीवन धन्य कर रही है…. ऐसे त्याग से रहेने वाली कन्या साधू ही है!” मानसिंह राजा ने माफी मांगी….

“… साधू के देखकर लाचार , मोहताज नहीं कहेना चाहिए ..उन का आदर करना चाहिए ….साधू संतो की निंदा करने से , सुनने से विपदा आये, पुण्य नाश हो जाए, मति मरी जाए ऐसा नहीं हो….. संत का निंदा नहीं करे …साधू संतो को तो मान की इच्छा नहीं होती… लेकिन उन को प्रणाम करने से , उन का मान करने से करने वाले का अपार मंगल होता…मैंने आप को ऐसा प्रश्न कर के अपमान किया, मेरे को पाप लग गया” ऐसा राजा मानसिंह बोले…

ब्राम्हण कन्याएं बोली, “ आमेर नरेश .. हमारा अपमान नहीं हुआ … लेकिन गुरूजी के कार्य पर शंका हुयी इसलिए इस गलती की गुरूजी से माफी मांग लो …!”

..राजा मानसिंह बुध्दिमान थे..अकबर उन की बुध्दिमत्ता पे नाज करता था …ये ऐतिहासिक घटना है…राजा मानसिंह ने बापू दीनदयाल महाराज से माफी मांगी की, “मैं आप के बारे में गलत सोच रहा था..मैं आप का अपराधी हूँ”

महाराज जी बोले, “..लोग संतो में दोष देखते , उन की निंदा करते तो बुध्दी खराब करते ..राजन तुम्हारा कसूर नहीं…. संतो का संग है तो भगवान के भजन का रंग आता और गन्दी चीज का संग होगा तो गन्दी चीज का ही गंध आयेगा…ये संग का रंग है ! ..रामायण में लिखा है की मरुभूमि में मृग बनना अच्छा है लेकिन भगवान दुष्टो का संग ना दे..!”



कबीरा दर्शन संत के साहिब आये याद l

लेखे में वो ही घडी, बाकि के दिन बाद ll



संत का दर्शन होते वोही दिन जिंदगी के ऊँची कमाई के होते…बाकि के दिन खा-पि के गए…





…देव ऋषि नारद कलियुग के प्रभाव से बहोत दुखी हुए और ब्रम्हाजी को बोले की , “कलियुग का कु- प्रभाव इतना अधिक बढ़ गया है की अच्छे लोग भगवान की भक्ति साधन भूलकर निंदा चुगली में फसते….तीर्थो में जाते तो भी किसी साधू महाराज का दर्शन नहीं करते….कोई मिलते तो वे संतों के नाम पर कालिमा लगानेवाले होते…. “हमारे गुरूजी ये मांगे” ऐसा कर के धोखा- धडी करने वाले साधू मिलते…. इसलिए लोगो की श्रध्दा टूट गयी.. लोग बहोत दुखी है….. अच्छे साधू को कोई पूछता नहीं है…उन के दैवी कार्य का फ़ायदा नहीं लेते…. बुध्दिमान भी आटा , दाल, रोटी कमाए- खाए इसी में समय बरबाद करते …..!कुछ उपाय कीजिये भगवान!”



ब्रम्हाजी तनिक शांत हुए … …..फिर ब्रम्हाजी के आँखों में चमक और चेहरे पे प्रसन्नता आई…..बोले…नारद बहोत अच्छा प्रश्न किया… कलियुग में कलियुग का भाई अधर्म घुस गया है….एक मन्त्र है… इस मन्त्र से कलियुग के दोष दूर होंगे… अन्तर्यामी राम का कृपा प्रसाद पाके लोग दुखो से पार होंगे..!

मन्त्र है:-

हरे राम हरे राम

राम राम हर हरे

हरे कृष्ण हरे कृष्ण

कृष्ण कृष्ण हरे हरे..



तो कलियुग में भगवान का नाम का जो ये भजन करेगा उस के घर में कलियुग का प्रभाव कम हो जायेगा..

… भजन करते हाथ की ताली बजती तो हाथ पवित्र होते , बोलते तो जीभ पवित्र होती….सुनते तो मन पवित्र होता..



राम राम राम” ऐसा 3 बार कहेने से किसी भी काम में पूर्णता हो जाती…. ऐसा राम नाम का प्रभाव है….

(पूज्य बापू जी श्लोक बोले…)

ये भगवान शिव जी ने पार्वतीजी को कहा….

पार्वतीजी विष्णु सहस्त्र नाम कर के, बाद में भोजन करती ….तो शिव जी ने पूछा, “अभी तक भोजन नहीं किया?” …. पार्वतीजी बोली, “नाथ, मेरा नियम बाकी है…”

जो साधक भजन नियम नहीं करते उन को भगवान की कीमत नहीं होती…



नारायण नारायण नारायण नारायण





सत्संग में वो ही लोग आते जिन पर भगवान की विशेष कृपा होती है..जिन के पुण्य जगे है…पूर्व के पाप से दुराचारी को “हरिनाम ना सुहावे”..उस को भगवान का नाम अच्छा नहीं लगता…





भगवान कृष्ण गीता में बोलते की , “दुखद समय में मेरे को स्मरण करो… युध्द जैसा घोर काम करते हुए भी मुझे स्मरण करो”

….जो भी काम करते तो करते करते भगवान का नाम सुमिरन करो….लेकिन इस में काम का महत्त्व बना रहेगा…तो जो भी काम करते वो भगवान के लिए करे तो बेड़ा पार!सब समय में जो भी काम करते - सब मन, बुध्दी, इन्द्रियों से जो भी करते ..सब भगवान को अर्पित करे….

3 प्रकार का सुमिरन होता है….

1)क्रिया जन्य सुमिरन

2) स्मृति जन्य सुमिरन

3)बोधजन्य (ज्ञानमय) सुमिरन

क्रिया जन्य सुमिरन…मुंह से राम राम बोल रहे हाथ से ताली बजा के हील रहे…ये हो गया क्रियाजन्य सुमिरन..

स्मृति जन्य सुमिरन… “मैं भगवान का और भगवान मेरे” इस की पक्की स्मृति हो जाए….तो मेरे मेरे ऐसा बोलना नहीं पडेगा….मैं मारवाड़ी मैं इस की लुगाई ऐसा याद करना पड़ता है क्या तुम को?ऐसे ये स्मृतिजन्य सुमिरन है…

बोध जन्य सुमिरन में सब वासुदेव है..जो अंतर्यामी देव है….बीमारी आती तो शरीर में आती, सुख दुःख आता तो वृत्तियों में आता…अच्छाई -बुराई आती तो मन बुध्दी में आती….मरते तो शरीर मरता …हमारा आत्मा अमर है …ऐसा ज्ञानमय सुमिरन है….



..एक बेटा चल बसा और दुसरे बेटे को बेटा हुआ….तो बेटा मर गया इस का दुःख हुआ और पोता हुआ इस का सुख भी हुआ…लेकिन दोनों को जाननेवाला कौन है?….वो ही आत्मा-परमात्मा है..अपने अन्दर चेतन स्वरुप बन के बैठा है…

मन तू ज्योति स्वरुप अपना मूल पहेचान l



गुरू के दिखाए मार्ग पर चलते तो गुरू की कृपा है…गुरू सब संभाल लेंगे…गुरू से निभाते तो ह्रदय में भगवान प्रगट हो जाते….:-) लेकिन गुरू से छलछिद्र करते तो गुरू कृपा से वंचित हो जाते…..ऐसा व्यक्ति भगवान को नहीं भाता….


राजा मानसिंह के आस पास के नीच मति के लोगों ने फिर से संत दादू दिन दयाल के प्रति कान भर दिए .... तो मानसिंह ने सोचा अच्छा होगा की महाराज आमेर छोड़ कर कही और चले जाए ....इस विचार से राजा फिर से महाराज दिन दयाल जी के दर्शन करने आया ....बोला , "महाराज , संत फकीर तो रमते ही भले लगते ...आप यहाँ इतने सालों से रहे कर उब नहीं गए क्या ?"

दादू दिन दयाल जी महाराज उस ही रात को चेलों के साथ आश्रम छोड़ कर चले गए ....

जिस प्रांत में , राज्य में संतों के चरण पड़ते उस राज्य में संपत्ति समृध्दी लहेराती है , प्रकृति प्रसन्न रहेती है.. लेकिन जहां संतों को सताया जाता है , वहाँ प्रकृति का कोप हो जाता है ....

जिस स्थान में 5 वर्ष तक संत के चरण नहीं पड़ते वहा के लोग पिशाच के जैसे बन जाते..

संत दीनदयाल के बारे में जो कु-प्रचार हो रहा था , मानसिंग राजा उस का शिकार हुआ..राजा मानसिंह ने दादू दीनदयाल को सताया..दादू दिन दयाल वहा का आश्रम छोड़ के चले गए..प्रभात को राजा मानसिंह को सपना आया की तुम्हारे नगर का नाश होगा..प्रभात के स्वपने ने राजा को झाँकझोर दिया..सैनिको को दौड़ाया की देखो दादुजी आमेर में है की नहीं…पता चला की दादू जी स्थान छोड़ कर निकल गए…पद चिन्ह ढूंढ़ते उन का पीछा किया.. संत के चरण पकडे.. बोले, “ऐसा सपना आया प्रभात का..संत रूठ गए ..महाराज गुस्ताखी माफ हो.. कुल नाश होगा..राज्य नाश होगा… सुबह का सपना है महाराज..बचाईये ”
संत ह्रदय था..बोले, “100 साल की गद्दी रहेगी ..बाद में उजड़ेगा …”
अभी भी जयपुर के चारो ओर जयजयकार है लेकिन आमेर के तरफ उजड़ा हुआ है …जयपुर में ही है आमेर फिर भी ऐसा है..



ॐ शांती

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें