3.8.10

मथुरा की पट्टरानी की कथा

जीवात्मा सुख के लिए क्या क्या करता है , सोचता है वो सब उस ने अपने लिए बंधन बना दिया.

जैसलमेर के महाराज जानोजी महाराज खुदाई करा रहे थे तालाब की..कई लोग मजदुर वहा खुदाई का काम करते..

कुछ समझदारो ने एक महिला को भाप लिया की ये महिला किसी से बोलती नहीं.. घूँघट में मुंह छिपाए रहेती..किसी से बातचीत नहीं करती ….चुपचाप तालाब के लिए मिटटी निकालती रहेती..
जैसलमेर नरेश जानोजी के पास ये बात आई..जानोजी महाराज ने गुरुमहाराज को पूछा की ये बाई आखिर है कौन ? ये कौन घूँघट वाली चुपचाप सेवा कर रही है अपने राज्य में?
गुरुमहाराज बोले, ‘इस बाई की 3 जन्मो की बात बता दू की जो बाई मुंह छुपा के सेवा कर रही है..

आज से तीसरा जनम पहेले मथुरा के राजा की पट्ट रानी थी.. मथुरा नरेश की मृत्यु हो गयी…राजा का पद पट्ट रानी संभालने लगी…पट्ट रानी को पद मिला…मिला हुआ पद दूसरो के हीत में संभालते तो ईश्वर की सेवा हो जाती है..मिले हुए पद का दुरूपयोग करे तो पतन होता है.. संचालक हो या अधिकारी हो , अपने पद का दुरुपयोग करता है तो हटाया जाता है या तो अपने आप भाग जाता है.. जिस को जो पद मिला ठीक से उस का निर्वाह उपयोग करता नहीं तो उस को उस पद से हटाया जाता ये प्राकृतिक नियम है..
इस लोभी रानी ने अपने पद का दुरुपयोग किया अपने ऐशो आराम के लिए..
मथुरा में कुछ यात्री आये थे गुजरात से..मथुरा तीर्थधाम है.. मथुरा में यात्री आये …तो उन के पास जो भी शिधा सामान के साथ कुछ चांदी के सिक्के और सोने के अशरफियां आदि थे… स्वार्थी अधिकारीयों ने हमारे मथुरा में ये टैक्स होता वो होता कर के लुटा और रानी को खुश करने के लिए भेट किया…
लोभी रानी ने पूछा की , ‘उन के पास और है क्या?’
अधिकारी बोले, ‘हां’
तो रानी बोली, ‘लूटो!’
राजा के मृत्यु के बाद राजा का पद संभाल रही है तो मथुरा में आनेवाले तीर्थ यात्रीयों की सेवा हो ऐसा काम करना चाहिए था…यात्रियों की सेवा करनी चाहिए थी, लेकिन अधिकारियो को आदेश देकर यात्रियों को लूट कर अपने खजाने में धन भरा और उस का उपयोग अपने ऐश-आराम में करने लगी..

तो वो घूँघट वाली माई 3 जनम पहेले मथुरा की पट्ट रानी थी.. यात्रियों पे टैक्स डाल कर ऐशो आराम किया तो मरने के बाद गधी बनी… खूब डंडे मार कर प्रकृति ने वसूली की.. गधी बुढ्ढी हुयी फिर उस के पीठ पर मटके लाद के प्याऊ की सेवा की जाती थी… गधी के जनम में अनजाने में प्याऊ की खचरी की सेवा हो गयी…
अब वो ही खचरी बाई के रूप में दिख रही… अपने कर्म काट रही है..

शुभ-अशुभ कर्मो का फल मिलता ही है.. अच्छे कर्म करे और वो कर्म भगवान को अर्पण करो..बुराई से बचो.. नहीं तो नीच योनियों में दुर्गति होती रहेती….

नीच कर्म करना नहीं चाहते फिर भी हो जाते तो उन से बचने की कुछ ऐसी बातें समझ लो ….
हम से बुराई ना हो, हम बीमार न हो, हम अशांत न हो, ऐसा हम चाहते लेकिन फिर भी पूर्व के संस्कार से फिसल जाते..तो गुरु पोर्णिमा निमित्त ये सौगात समझ लो की फिसलाहट से कैसे बचे इस का उपाय समझ लो और ऐसा करो..

सुबह उठते ही थोड़ी देर शांत बैठे..नहा धोकर धरती पर कुछ बीचा देना कम्बल जैसा जिस से अर्थिंग न मिले, सूर्य किरण भले मिले..

ये वरदान है आप के लिए समझो!
जो ब्रम्हचर्य पालना चाहता, सपन दोष की बीमारी मिटने के लिए, स्वास्थ्य पाने के लिए, वायु प्रकोप.. पित्त प्रकोप.. कफ्फ़ की बीमारी है उस के लिए ये वरदान है ..
जो अपनी चिकित्सालय की सेवा में डॉक्टर वैद्य हो उन के लिए भी ये सूचना है..इस का पैमप्लेट छाप कर दे दिया करे..

इस को अश्विनी मुद्रा कहेते है..आप सीधे सो गए श्वास बाहर छोड़ा…पेट को ऊपर निचे अच्छी तरह किया….फिर घोडा जैसे लीद छोड़ते समय आकुंचन प्रसरण करता ऐसे शौच जाने की जगह को संकोचन विस्तारण 100 बार करे. चमतकारिक ढंग से फायदा होगा.

50 बार करे तो पित्त वायु कफ्फ़ में शमन होगा..सपन दोष में जादुई फायदा करेगा.सभी बीमारियों का मूल है वात पित्त आम कफ्फ़ इन से बीमारी होती …ये संतुलित रहे.

100 बार करने से आप की सुशुप्त शक्तियां जागृत होने में सुविधा होगी. आप के अन्दर बुध्दी का सुशुप्त खजाना पड़ा है उस में हिल्चल होगी… कुंडलिनी जाग्रति में सुविधा होगी…

ॐ शांती

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