रामकृष्ण परमहंस की ठहर ने की व्यवस्था उन के गोपाल नाम के भक्त ने एक आवास में की थी की जहां गुरूजी दोपहर में थोड़ी देर आराम करेंगे..रामकृष्ण परम हंस जी को उन के भक्त ठाकुर जी बुलाते थे…सेवक गोपाल ठाकुर जी को अन्दर आराम करने ले गया और स्वयं बाहर गुरूजी की सेवा में बैठा था…थोड़ी देर में अन्दर से बात करने की आवाज आने लगी..गोपाल को लगा की ठाकुर जी तो अन्दर आराम करने गए लेकिन ठाकुरजी आराम नहीं कर रहे…किसी से बात कर रहे…अन्दर तो कोई नहीं था… किस से बात करते होंगे?… इतनी देर में ठाकुरजी बाहर निकल आये..
गोपाल बोला, ‘हम सोच रहे थे की ठाकुरजी विश्राम में गए थे, लेकिन ठाकुरजी तो बात कर रहे थे..’
राम कृष्ण देव बोले, “हां!… उस कमरे में भुत है ..उन से बात कर रहा था!”
3 प्रकार के भुत होते है…जो जीते जी गन्दी तामसी आदतोवाले होते उन के भुत गन्दी जगहों में भटकते…राजसी भुत खाली मकान में रहेते…और सात्विक भुत पीपल आदि में रहेते..तो ये राजसी प्रकार के भुत है ..बोले की, तुम आये हो तो हम को बाहर धुप में परेशान होना पड़ता है…”
हम ने पूछा की तुम कौन हो?
तो बोले पास की फैक्ट्री में हमारी अकाल मृत्यु हो गयी.. इस इलाके में रहेने की रूचि थी तो इस खाली घर में रहेते थे..अब आप आ गए तो हम को बाहर धधकती धुप में रहेना पड़ता…तो हम बाहर आ गए..”
गोपाल को आश्चर्य हुआ…पूछा, “ठाकुरजी आप के दर्शन करने के बाद भी उन भूतो की सदगति नहीं हुयी?”
ठाकुरजी बोले, “अभी उन की इस इलाके में रहेने की वासना है..वासना धीरे धीरे मिटेगी तो ऊँची गति में जायेगे..”
मनुष्य शरीर तो जीव को ऊँची यात्रा करने के लिए मिला है, उस को भोग योनी मान लिया इसलिए परेशान होते..तामसी बुध्दी वाले लोगो की बुध्दी उलटा निर्णय करती…इसलिए नीची गति को जाते …
मैं स्विस एअर वेज में यात्रा कर रहा था..लम्बी सफर थी..तो हवाई जहाज में बार बार थोड़ी थोड़ी देर में यात्रियों को कुछ न कुछ खिलाते या पिलाते रहेते…और यात्री भी खाते रहेते चबर चबर….मुझे उन पर दया आती और उन को मेरे पर दया आती की मैं नहीं खाता !… परिचारिका को हुआ की 5-6 घंटे में कुछ नहीं लेंगे, इसलिए बार बार पूछे तो सोचा की कुछ मांग लो, जान छूटे! ओरेंज ज्यूस बोल दिया.. तो वो इतना बड़ा गैलन भर के लेकर आई….बोले की आप थोडा थोडा पीते रहो…मैंने थोडा लिया और बाकी वापस दे दिया …उन को लगे ये बेचारा क्या जी रहा! और मुझे लगे की ये बेचारे अपने स्वास्थ्य के साथ क्या कर रहे..एक के बाद एक चबर चबर करते जा रहे…जिस बाबा पर उन को दया आती वो तो अभी 71 साल में भी जवान है और वो बेचारे ना जाने विकलांग होकर व्हील चेअर में होंगे की भगवान के धाम पहुँच गए होंगे भगवान जाने…
कहेने का तात्पर्य है की तामसी बुध्दी के लोग पुण्य को पाप और पाप को पुण्य समझते…सही को गलत और गलत को सही मानते…
तामसी बुध्दी अनर्थकारी है …उस से अच्छी है राजसी बुध्दी…हमारा मकान ऐसा हो , हमारा लड़का ऐसा हो, ऐसी गाड़ी चाहिए..और धन चाहिए ऐसे राजसी बुध्दिवाले खप्पे खप्पे में खप जाते….ये भी अनर्थकारी बुध्दी है..
फिर भी तामसी बुध्दी से राजसी बुध्दी ठीक है..
राजसी से सात्विक बुध्दी अच्छी है.. सचाई से कमाएंगे , कमाई का 20 वा या 10 वा हिस्सा दान पुण करेंगे.. समय का कुछ हिस्सा ध्यान भजन आदि में लगायेंगे..लेकिन ये सोचेंगे की मैं तो धर्मात्मा हूँ , वो ऐसा है वैसा है..
ऐसी सात्विक व्यक्ति ईश्वर कृपा से सत्संग में पहुँच गयी, दीक्षा मिली, गुरुमंत्र का अर्थ सहित जप, थोडा साधन किया तो ऐसी थोड़ी यात्रा करने के बाद समझते की मैं धर्मात्मा हूँ ये “मैं पना” नहीं रहेगा….बुध्दी भगवत अर्थदा होने लगेगी…
ऐसी व्यक्ति मंदिर मठों में जायेगी लेकिन वहाँ उस का मन ज्यादा देर नहीं टिकेगा..
सोचेगा की : - "मेरा ऐसा दिन कब आएगा की संसार का सुख दुःख स्वप्ना लगेगा.. जिस प्रभु का ज्ञान और शांति पाने के लिए ये मनुष्य जनम मिला है वो उस अंतर्यामी भगवान का दर्शन मैं कब पाउँगा… ह्रदय मंदिर में कब पहुचुँगा … मुझे ह्रुदयेश्वर तक पहुंचा दे कोई..नहीं पूजन नमाज में फरक जहा.. मुझे ऐसी जीवन की धारा में पहुंचा दे कोई …मेरे ऐसे दिन कब आवेंगे…"
ॐ शांती
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें