3.8.10

सिन्धी और मुल्ला की कथा

2 प्रकार की माताएं होती है..
एक कहेती, ‘ये क्या मिटटी का खिलौना है, फेंको… अभी उठूंगी ना मारूंगी ‘ ..भय से बच्चा मिटटी का खिलौना निचे रख दिया.. माँ थोड़ी दूर गयी तो बच्चे की मन के लालच ने फिर उठाया और चुपचाप चाटने लगा..
दूसरी माँ क्या करती की बच्चे को समझाती , ‘ये आम नहीं बेटा! ये तो मिटटी का खिलौना है’ …सिर्फ समझाया नहीं , माँ असली आम ले आई और बच्चे को आम चखा दिया…बच्चा अपने आप आम खाने की कला सिख गया!
निषेधात्मक संस्कार देकर बच्चे कहेना नहीं मानेंगे,गलत राह पकड़ेंगे.

‘खुदा को नहीं मानोगे तो दोजख की आग में झुलसोगे…’ ऐसा निगेटिव भाषण से आतंकवादी हो जाएगा..

सब तुम्हारे तुम सभी के फासले दिलो से दूर करो..

एक मुसलमान भाई बोला, ‘इंसान नाजायज है..अल्ला-ताला को मानोगे तो बचोगे, नहीं तो दोजख की आग में झुलसोगे…’
एक पक्का सत्संगी सिन्धी था, बोला.., ‘ऐसा नहीं की इंसान नाजायज है..इंसान तो भगवान का बाप बन गया है.. गुरु बन गया ..ऐसी शक्तियां है इंसान में!’
मुसलमान भाई : …खुदा की खुदाई कोई नहीं जानता ..
सत्संगी : खुदा की खुदाई जानेगा नहीं तो मनुष्य की प्रगति कैसे होगी?
मुसलमान भाई : तू जानता है?
सिन्धी सत्संगी : हां! कल 100 रुपियो लेकर आ जाना सिन्धु नदी के किनारे!
दोनों में 100 रुपये की शर्त लगी.दुसरे दिन दोनों पहुंचे सिन्धु नदी के किनारे..
मुसलमान भाई : दिखाओ खुदा की खुदाई!
सत्संगी सिन्धी : ये देखो बहेती हुई सिन्धु नदी! ये खुदा की खुदाई ही है!
मुसलमान भाई : ये कैसी खुदाई?
सिन्धी सत्संगी: ये खुदा की खुदाई नहीं तो क्या तेरे बाप ने खुदाई है?
मुसलमान भाई : किसी के मन में क्या है कोई नहीं जान सकता!
सिन्धी सतंगी : इन्सान जान सकता है..सिपाही भी जान लेता की सामनेवाला चोर है की नहीं..मनुष्य की अनुमान शक्ति बहोत जोरदार है..
मुस्लमान भाई : क्या तू जान सकता है मेरे मन में क्या है ?
सिन्धी सत्संगी : हां! अगर मन की एकाग्रता बढ़ाये तो जान सकते है की किसी के मन में क्या चल रहा है..
मुस्लमान भाई बोले : ठीक है अगले जुम्मे मस्जिद में आना, 500 रुपियों की शर्त है!
..इन्सान के मन की बात कोई नहीं जान सकता…मुसलमान मुल्ला ने पहेले से ही सोच लिया था की ये जो भी कहेगा मैं ये ही कहूँगा ये मेरे मन में नहीं था..इस की बात मेरे मन में होगी तो भी मैं कहूँगा की ये मेरे मन में नहीं था..

अगले जुम्मे को सिन्धी सत्संगी आया मस्जिद में..
मुल्ला ने सब के सामने पूछा : मेरे मन की बात बताओ..
सिन्धी सत्संगी ने बोला : आप के मन में कभी ऐसा नहीं आता की मेरे पास जो पब्लिक आती है वो शैतान हो जाए, वो दोजख में जाये…
मुल्ला क्या बोले? नहीं तो कहे नहीं सकता था ! बोला : हां और क्या है बोल..
सिन्धी सत्संगी :आप के मन में ऐसा कभी नहीं आता की यहाँ आनेवालों के दामन में दाग आये ऐसा नहीं सोचते…आप के मन में हमेशा आता की यहाँ आनेवाले सभी नेक बने!
अब इस बात पे मुल्ला को झूठ बोलने की गुन्जायिश नहीं रखी..

मुल्ला ने पूछा : अच्छा ..ठीक है ..लेकिन आसमान के तारे कितने कोई नहीं जानता ? धरती का बिज भी कोई नहीं जनता?
सिन्धी भाई बोला : धरती तो गेंद की नाई गोल है, जहा भी उंगली रख दो वो उस का बिज है..

मुल्ला बोले : आसमान में तारे कितने है कोई नहीं गिन सकता..
सिन्धी सत्संगी बोले :गाय बुलाओ..
गाय आई..बोले जितने इस गाय माता के अन्दर बाल है उतने आसमान में तारे है!
मुल्ला : कम ज्यादा होंगे तो?
सिन्धी भाई : कम ज्यादा होंगे तो चलते है ऊपर तारे गिनने को.. :)

मुल्ला क्या बोले? बोले ठीक है अगले जुम्मे आना…
सिन्धी भाई फिर हाजिर हुआ जुम्मे को..

अगले जुम्मे मस्जिद में भाषण चल रहा था..दुनिया में ऐसी क़यामत(प्रलय) हो जाएगी..जो हमारे मजहब में आयेंगे उस की हम अल्ला ताला से सिफारिश कर देंगे…बाकि सब मरेंगे.. आग में झुलसेंगे..

सिन्धी भाई बोले : क़यामत नहीं होगी…
महिना बीत गया…6 महीने बीत गए…साल बीत गया…सिन्धी भाई पहुंचा बोला, सलाम आलेकुम! क़यामत नहीं हुयी..
मुसलमान भाई ने शर्त के 1000 रुपये दिए और बोले अब मत आना!
सिन्धी भाई बोला, मुझे ये आप के 1600 रुपये रखने नहीं है ..ये तो मैं आप को वापिस दे रहा हूँ…मैं तो बस इतना चाहता हूँ की पोजिटिव सोचने से आतंकवाद नहीं होगा…

मुस्लिम धरम में यकिन की विशेषता है… मुसलमान भाइयो को यकिन के नाम पर कही भी चला दो, चल पड़ते है…..श्रध्दा के साथ बुध्दी योग , तत्परता और एकाग्रता भी होना जरुरी है..

सत्संग से कितने लाभ होते इस की खोज तो कोई नहीं कर पाया…ब्रम्हा जी ने तराजू बनायी तो भी टूट जाएगी… :)

ॐ शांती

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