तिलाजी दादू दीनदयाल के पास धन बढाने की लालच से गया था..संत दिन दयाल बोले, “हमारे पास सोना बनाने की विद्या नहीं लेकिन वो भक्ति रसायन है की जिस से हरी रस पान करता है..इस रसायन से परमात्म शांति मिलती और आत्म सुख का संगीत सुनाई देता है..”
तिलाजी को ये बात जँची नहीं.. नकली धन पाने को आया था..
नकली धन का, नकली सत्ता का अहंकार बावरा बना देता है..
दादू दीनदयाल जी ने समझाया की, संसार का धन सत्ता ये नकली है..असली धन को असली सत्ता को पाना ही पुरुषार्थ है.. ये भक्ति का रसायन ऐसा है की अष्ट सिध्दी नवनिधि उस के आगे कोई माना नहीं रखती.. जिस ने इस असली धन को पाया बड़े से बड़ा धनवान उस के आगे कोई माना नहीं रखते..तिलाजी सावधानी से सुनने लगे…
परमात्म शांति और आत्म ज्ञान का संगीत सुनने में रूचि होने लगी..
जिस में रूचि होती मनुष्य उस में प्रगति करता है… संसार में रूचि है इसलिए भगवत प्राप्ति में देरी होती..
तिलाजी की तत्परता और दादू दीनदयाल जी की करूणा कृपा ने तिलाजी को महान बना दिया ..तिलाजी समझ गया की यहाँ का धन, सत्ता यहाँ ही ढल जाता है.. शाश्वत धन ईश्वर निष्ठा और आत्म सत्ता ही है!
इस को ही पाना ही सार है ऐसा तिलाजी की बुध्दी में विवेक जगा..
सत्संग सुनने में रूचि बढ़ी..सुनते सुनते एकाकार हो जाते…गुरूजी की तरफ आँखों की टिकटिकी लगा कर एकाग्रता से सुनते..तो गुरूजी की प्रसन्नता पायी..दादू दीनदयाल जी के अंगद सेवा करने का सौभाग्य मिला..
महा पुरुष के अंगद सेवा से सहेज में उन्नति होती…क्यों की महापुरुष के दर्शन सहेज में मिलते रहेते…उन के शरीर से जो तन्मात्राए निकलती .. महापुरुष के आँखों से रोम कुपो से निकलती जो करूणा कृपा की मंगलमयी कम्पने मिलती है, उस का लाभ मिलता.. ईश्वर की ही चर्चा होती है.. तो महापुरुष के अति निकटता से अति शीघ्र ईश्वर प्राप्ति होती है, अगर साधक बुध्दिमान है , उस की जीतनी बुध्दी शुध्द है उतना जल्दी कल्याण होता है…ऐसे साधक को अंगद सेवा मिलना बड़े भाग्य है… जल्दी से अपना कल्याण कर लेता है और उस के दर्शन कर के दुसरे भी अपना भाग्य बनाने लगते..वरना बुध्दी में दोष होंगे तो अंगद सेवक हो कर भी महापुरुष में भी दोष दर्शन करते और यात्रा लम्बी हो जायेगी….
खाकी वर्दीवाले थानेदार को देखते तो थाना याद आता है.. काले कोट वाले वकील के देख के कोर्ट की याद आती है ऐसे संत को देखते तो भगवान और उस की महिमा याद आती है..
श्वासोश्वास की साधना करे..सत्स्वभाव, चेतन स्वभाव , आनंद स्वभाव का सुमिरन करते करते भगवान की गोद में जाए और सुबह उठे तो थोड़ी देर ध्यानस्थ हुए…दिन भर में काम करते करते बिच बिच में उस ही भगवत स्वाभाव में शांत हुए तो भगवान का रस जागेगा ….
ॐ शांती
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