3.8.10

संत वेणी ब्राम्हण की कथा

गुरुग्रंथ साहिब में 15 भक्तो की वाणी संग्रहीत की गयी है…बाबा फरीद की वाणी है, संत नामदेव की वाणी है…इस प्रकार गुरू ग्रन्थ साहिब में वेणी ब्राम्हण की भी वाणी संग्रहीत है…
वेणी भट्ट ब्राम्हण थे..बिहार के असिनी गाँव में १७६० में उन का जन्म हुआ था… वेणी गरीबी में ऐसे जीते की भगवान ऐसी गरीबी किसी को ना दे..वेणी ब्राम्हण को, उस की पत्नी और बच्चो को कभी एक समय खाने को मिलता तो कभी भूखा रहेना पड़ता..तो कभी 2-2 दिन का लंघन हो जाता… भक्त वेणी की मधुर वाणी पत्नी भी अन्न धान्य के अभाव में चिडचिडे स्वभाव की हो गयी… गरीबी की पीड़ा से जीवन का अंत कर लेने की सोचा… शरीर की आत्महत्या करने के विचार में दरिद्र, लाचार , मोहताज वेणी घर से निकल पडा…
वेणी को रास्ते में संत का सत्संग मिला… गरीबी से पीड़ित लाचार मोहताज वेणी का भाग्य ऐसा बदला की गुरू ग्रन्थ साहिब में उस की वाणी संग्रहीत हो जाती है…
इसलिए कबीर जी कहेते:-
कबीरा दर्शन के साध के साहिब आवे याद!
(संत के दर्शन दिन में कई कई बार करने चाहिए..रोज न कर सके तो 2 दिन में, 4 दिन में एक बार अवश्य करे…वो भी न कर सके तो 7 दिन में कर ले…जिन को हफ्ते में एक बार भी संत दर्शन करना संभव नहीं होता वे 15 दिन में एक बार या तो महीने एक बार तो अवश्य करे…कबीर जी कहेते है ऐसे मनुष्य को काल भी दगा नहीं दे सकता…अर्थात उस की अकाल मृत्यु नहीं होगी…)
महापुरुष की वाणी से भगवत रस छलकता है..उन के पास घडी भर बैठे रहे तो भी अंतर का भगवत रस प्रगट हो जाता है!!इसलिए समझदार शिष्यों की भाषा है की…

गुरूजी तुम तसल्ली ना दो, सिर्फ बैठे ही रहो..
महेफिल का रंग बदल जायेगा ..गिरता हुआ दिल भी संभल जाएगा !

भक्त वेणी का दिल भी संत दर्शन से संभल गया…

वेणी ब्राम्हण सत्संग सुन कर वहा ही रुक गए.. दिन में 2-3 बार बाबा के दर्शन हुए.. आत्महत्या का भाव ठंडा हुआ.. बाबा से नजदीक से भेट हुयी..
बाबा ने पूछा, ‘कहा जा रहे हो?’
वेणी बोले, ‘बाबा संत से झूठ बोलना पाप है..मैं तो आत्महत्या करने को जा रहा था…’ बोलते बोलते वेणी की आँखों में आसू आये… ‘पिता कर्जा छोड़ के गए थे..कर्जा चुकाते जैसे तैसे दिन गुजार रहे थे..लेकिन अब तो संसार की गाड़ी रटते रटाते राम जी ने भी मुंह मोड़ लिया… दुशमन की भी ये दुर्दशा भगवान ना करे..इसलिए आत्महत्या करने जा रहा था..’
संत बोले, ‘बेटा पुरुषार्थ कर! मेहनत कर!’
वेणी बोले,’मेहनत तो बहोत करता हूँ फिर भी पेट भरने के लिए भी नहीं मिल रहा है बाबा’
संत बोले, ‘मेहनत 2 प्रकार की होती है..एक होती है संसारी मेहनत…धंधा करता , नोकरी करता- जैसे जॉबर (जॉब करने वाले ) लोग मेहनत करते , दुकानदार मेहनत करते .. ये हो गयी संसारी पेट पालू मेहनत…दूसरी मेहनत है वो भगवान के नाम का जप और पुकार …संसार का सर्जनहार तेरी खबर लेने के लिए मजबूर हो जाये ऐसी पुकार…बेटा ये दूसरी मेहनत है… आत्महत्या करने जा रहा , शरीर की हत्या होगी, आत्मा तो भटकेगी…भगवान को पुकारो और बोलो की, ‘मैं अपनी अहम् की हत्या करना चाहता हूँ..हे प्रभु मुझ से नहीं होती, तुम ही कर दो मेरे रब !’..ऐसा भगवान का नाम ले.. जप, ध्यान कर..श्वासोश्वास में भगवान का नाम ले तो जल्दी वो पालनहार तेरी खबर लेगा… दुनियादार 10 साल में नहीं कमा सकते इतना तू 10 दिन में कमा सकता है बेटा..!ये असली पुरुषार्थ कर..’

वेणी को संत महापुरुष ने समझाया की भगवन नाम की मेहनत कर..अपने को भगवान का और भगवान को अपना समझ तो तेरी ये सारी परेशानियाँ भगवान की चीज हो जायेगी…तुम भगवान के हो गए तो तुम्हारे बेटे बेटी की चिंता भगवान की रहेगी.. तुम्हारी रोटी की चिंता भगवान की हो जाएगी..

वेणी का तो राजा महाराज योग हो गया…रोज जंगल में जा कर भगवान को पुकारता..संत ने बतायी ऐसी साधना करता..
2-3 दिन बीते..चौथे दिन पत्नी बोली, ‘कहाँ जा रहे हो? घर में बच्चे भूके है, सुबह से शाम तक जाते हो कुछ कमा के तो लाते नहीं..’
वेणी ने सोचा भगवान का नाम लेना तो राजाधिराज की सेवा करना है..मन में भगवान को राजाधिराज समझा और पत्नी को बोला, ‘मैं राजा के यहाँ कथा पढ़ने जाता हूँ..’
पत्नी को समझाने के लिए वेणी तो बोल दिया की राजा प्रसन्न हो जायेंगे तो बहोत धन और अन्न देंगे..लेकिन पत्नी बहोत भड़क गयी..बोली, ‘बाढ़ में गयी तेरी कथा और बाढ़ में गया अन्न धन..आज अगर खाली हाथ आये तो घर में मुंह नहीं दिखाना…’
वेणी ने भी सोच लिया की अब घर नहीं जायेंगे…जंगले में ही बैठे रहेंगे.. हे महाराज राजाधिराज जो तेरी मर्जी हो मुझे मंजूर है…
भगवान ने देखा की वेणी ने तो मुझे अपना आपा दे दिया…भगवान राज पुरुष हो कर संध्या होने से पहेले वेणी के घर पहुंचे…बैलगाड़ी में सब माल लबालब लाद दिया..राजवी पुरुष बन कर पूछने लगे, ‘पंडित वेणी जी का घर कहाँ है?’
वेणी की पत्नी दौड़ती हुयी आई, बोली, ‘ये घर है वेणी जी का..’
राजवी पुरुष बोला, ‘लो.. महाराज जी ने ये भेजा है…अनाज, आटे के बोरे, शिधा सामान और कुछ रुपये पैसे कपडे है..पंडित जी कथा पूरी होने के बाद ही आयेंगे..’
पत्नी ने सोचा की अरेरे! मेरे पति तो बोल रहे थे की राजा खूब रुपये पैसे देंगे , अन्न धन खूब आयेंगे… मैं कैसी अभागी की उन को घर में मुंह नहीं दिखाना बोली..

वेणी की पत्नी राजवी पुरुष को बोली, ‘मेरे पंडित जी को बोले की, मुझे अभागिन को दर्शन देने की कृपा करे, मेरा उन के चरणों में प्रणाम कहो..’

वो ही भगवान जंगल में वेणी के पास पहुंचे, उस को समझाए…बोले.. घर जाओ, रात हो गयी..बच्चो की माँ का दिल है..बच्चे भूखे तिलमिलाते तो सुनाती है.. अब नहीं सुनाएगी…तुम जिस राजाधिराज को पुकार रहे हो उस ने तुम्हारी पुकार सुन कर घर में अन्न धन पहुंचा दिया है…जाओ , घर जाओ..’
वेणी ने पूछा,’तुम कौन हो?’
बोले, ‘.. वो ही राजाधिराज का राजवी आदमी हूँ..वो ही दे आया तुम्हारे घर अन्न धन..वेणी तुम अब घर जाओ..’
राजवी पुरुष अंतर्धान हो गया!!

वेणी ब्राम्हण 4 दिन पुकारा वो दयालु ईश्वर प्रगट हो गया….. जिस ने जनमते ही माँ के शरीर में दूध बना दिया था वो ही बैलगाडियाँ भर के बच्चो को और पत्नी को अन्न धन पहुंचा के आया ..ऐसी मजूरी तो महाराजा भी नहीं देंगे… हे प्रभु!कैसा परम पिता है तू!!
वेणी ब्राम्हण घर तो गए लेकिन घर में मन टिका नहीं.. लोग आदर करने लगे.. भगवान की भक्ति ऐसी है की भाग्य के कुअंक मिटने लगे…भगवान की भक्ति, भगवान पे भरोसा और अपना पुरुषार्थ भगवान से मिला देता है… आलसी हो के ये ना देखे की भगवान आते की नहीं ऐसी परीक्षा ना करे.. :)

वेणी ब्राम्हण की कैसी भक्ति होगी की इतना लाचार , मोहताज , भूखा था फिर भी भगवान से उस की प्रीति मांग रहा था…तो भगवान ने कुछ देने में कमी नहीं रखी…इसलिए भागवत में कहा है की जो मनुष्य कर सकता है वो सुर असुर भी नहीं कर सकते..

लुधियाना के समिति वाले चाहते थे की सत्संग स्थली शहर के मैदान में हो…लेकिन वो दयालु प्रभु जानता था की 4 ,५, ६ तीनो दिन बारिश आनेवाली है तो सत्संग स्थली आश्रम में ही बना दिया…कितना ख़याल रखता है वो सर्जनहार ! यहाँ आज सुबह ४-5 बजे ध्यान आदि कराया… काढ़ा बनवाया ….आयुर्वेदिक चाय पिलवायी… मैदान में ऐसा लाभ नहीं होता..

हम सत स्वरुप भगवान में गोता मार के बोलते तो सत्संग हो जाता .. करोडो पाप ताप निकल जाते सत्संग सुनने से..

संत के वचनों से ब्राम्हण वेणी भी समझ गए की भजनीय तो भगवान है… अब तो ह्रदय पूर्वक भगवान के रंग में रंगने लग गए…. भगवान ही सार दिखता है बाकि सब अ-सार दिखता है.. भगवान के भजन की मेहनत वेणी को फल गयी..

धीरे धीरे वेणी का मन ध्यान में विश्रांति पाने लगा ..आप का मन भगवान में शांत हो जाये और संकल्प ना फले ये संभव ही नहीं..

‘मैं परेशान हूँ’ ये बेवकूफी का नाम है! जितना बेवकुफ उतनी दुःख परेशानियाँ ज्यादा.. समझदारी है तो एक टाइम भोजन नहीं तो भी सुखी रहे सकता है… शुकदेव जी का लोग अपमान करते, तो भी संतुष्ट थे…

प्रभु को अपना मानोगे और अपने को प्रभु का मानोगे तो नासमझी छूटती जायेगी.. दुःख हटता जायेगा..

सुख सुविधा चाहोगे तो मिल जाएगी लेकिन सुख सुविधा से दुःख दबता और समय पाकर कई गुना बढ़ चढ़ के आता है…भगवान से सुख सुविधा के लिए बेईमानीवाली प्रीति कर के सुखी होना चाहते तो और दुःख पाते..

वेणी ने सुख स्वरुप भगवान का रस पाया..वेणी की वाणी गुरू ग्रन्थ साहिब में दर्ज है…वेणी बोलते है की , भक्ति के नाम पर पूजा, पाठ , जनेऊ, मंत्र , तंत्र करोगे लेकिन नजर दान दक्षिणा पर रहेती ऐसे धर्म को धंदा बना बैठे पंडितो को वेणी जी ने खूब कोसा है..पंडित वेणी का वचन है.. कहे वेणी गुरू मुख ध्ययिये… बिनु सदगुरू बाट नहीं मिलेगी.. …

वेणी जैसा लाचार मोहताज आत्महत्या करनेवाला ब्राम्हण का जीवन संत के दर्शन सत्संग से ऐसा बदल गया की गुरू ग्रन्थ साहिब में उन के वचन दर्ज हुए.. मनुष्य को कभी हौसला नहीं खोना चाहिए..

वेणी की बात तो तब की थी अभी भी ऐसा ही है!राजू भैय्या और सुरेश बापजी उदाहरण सब के सामने है… :) सत्संग कैसे मनुष्य को ऊँचा उठा देता है..
(राजू नाम का एक लड़का भावनगर से भाग कर अमदाबाद आया..कर्जे के बोज से उस को कही का नहीं रखा था.. कांकरिया तालाब में जान देने गया…पोस्टर देखा की संत का शिबिर है…सोचा की संत का दर्शन कर के मरुंगा..सत्संग में आया..अब आगरा के गुरु कुल का अध्यक्ष है… कई आश्रमों के प्रभारी है ..आगरा के आश्रम का वो ही सर्वे सर्वा है ..खाली पोस्टर देखे तो जीवन बदल गया .. आगरा में गुरुकुल शुरू किया , बी. ए. बी. एड . कोलेज शुरू किया ..100 % रिजल्ट आता है ….
27 साल पहेले सुरेश बापजी की माँ बापूजी के पास आई थी ..पति दारुबाज और सुरेश पिक्चरबाज परेशां हो कर बोली की या तो सुरेश मर जाये या मैं मर जाऊ…पूज्य बापूजी बोले ना तुम मरो ना सुरेश मरेगा…तो बोली बाबा ले जाओ अपने साथ …अब वो ही सुरेश ‘बापजी’ हो के चमचम चमक रहे!)

ऐसी पढाई को धिक्कार है जो मुसीबतो में डाल दे…एम्. बी. ए. में क्या सिखाया जाता की गंजे आदमी को कंघी बेचिए और नंगे आदमी को कपडे धोने का साबुन बेचना है.. ये एम्. बी. ए. का प्रिन्सिपल है .. दुसरे को खड्डे में डाल कर आप ऊपर चढ़ जाओ ये सिध्दांत बहोत दुःख देगा..
फिर जॉब नहीं मिलेगी तो आत्महत्या करेंगे …जॉब मिली तो भी शांति नहीं.. दारू पिते .. पान मसाला खाते..अपनी पत्नी होते हुए भी दूसरी लवरिया करते और अपनी सेहत और जिंदगी खराब करते …माँ बाप के साथ पत्नी और बच्चे के साथ जुलुम करते …धिक्कार है ऐसे पढाई को जो जिंदगी का और मानवता का गला घोट दे ..ये कैसी पढाई?..

इस से गवार अच्छा… इमानदारी से पेश आता … परिवार का पालन करता.. सच्चाई से जीता है तो आखिर संत के द्वार तो पहुँच जाता है.. जो धोकादारी कर के मजा लो करते वो ही मजा फिर सजा बन जाती ..

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