3.8.10

पृथ्वी रूक जाए ! मुनि विश्वामित्र और वशिष्ट जी महाराज की कथा

मुनि विश्वामित्र और वशिष्ट जी महाराज समकालिन ऋषि थे.. वशिष्ट महाराज का स्वागत करते समय विश्वामित्र मुनि ने अपनी 60 हजार वर्ष की तपस्या के फल से किया…कुछ समय बाद विश्वामित्र जी वशिष्ठ जी के मेहमान हुए..तो वशिष्ठ महाराज ने उन का स्वागत 2 घडी ब्रम्हज्ञान के पुण्य से किया…मुनि विश्वामित्र बोले, ‘वशिष्ठ 2 घडी ब्रम्ह ज्ञान के सत्संग का पुण्य दिया, मैंने तो 60 हजार वर्ष की तपस्या का फल दिया..’
वशिष्ठ जी महाराज बोले, ‘2 घडी ब्रम्हज्ञान का सत्संग ऊँचा है…60 हजार वर्ष कोई तपस्या करे, तपस्या अच्छी है ; लेकिन ब्रम्हज्ञान अनंत ब्रम्हांड नायक से मिलाता तो ऊँचे में ऊँचा है..’
‘क्या आप का है तो ऊँचा.. हमारी चीज नीची हो गयी..ये बात समझ में नहीं आये..’ विश्वामित्र मुनि बोल पड़े..
वशिष्ठ महाराज बोले, ‘देखो महाराज! आप का इस बात का समाधान तो होना ही चाहिए..आप के पास योग शक्ति है,मेरे पास भी है..हम दोनों भगवान ब्रम्हाजी के पास चलेंगे…इस बात के निर्णायक भगवान ब्रम्हाजी ही होंगे…हम आपस में नहीं उलझे..’
दोनों मुनिवर योगशक्ति से ब्रम्ह् लोक में आये..ब्रम्हाजी को मुख्य वचन कहे..ब्रम्हाजी को बताये की कैसे आये… 60 हजार वर्ष तपस्या का फल बड़ा है या 2 घडी निष्ठावान महापुरुष का सत्संग का पुण्य बड़ा है आप ही निर्णय दीजिये..ब्रम्हाजी से प्रार्थना किये.

विश्वामित्र जी के भाव जान कर वशिष्ठ जी के पक्ष में निर्णय देंगे तो अन्याय होगा..विश्वामित्र जी उद्विग्न हो जायेंगे..
इस से सिख मिलती की निर्णय देते तो ऐसा हो की दोनों पक्ष के हीत में और दोनों पक्ष को स्वीकार हो..
ब्रम्हाजी ने कहा, ‘मैं सृष्टि बनाने के उधेड़ बुन में लगा रहेता हूँ..जब मन शांत होगा तभी तो आप जैसे महा पुरुषों का विचार कर सकेंगे..आप ऐसा करो की आप विष्णु जी के पास चले जाओ…’
दोनों गए विष्णु भगवान के पास… आप का सवाल बहोत ऊँचा है, गंभीर है …कोई सम-वान ही इस का समाधान दे सकता है…हम तो भक्तो के पालन पोषण रक्षा में विरत हो जाते, कभी विषम हो जाते…कभी राहू केतु के कारण मोहिनी अवतार लेते तो कभी ‘हाय सीता’ कर के राम अवतार करते..तो कभी श्रीकृष्ण बन कर ‘नरो व कुंजरोवा करते-कराते.. तो हमारा निर्णय सम कैसे होगा? जो सदा समाधी में रहेते उन शिव जी के पास आप जाओ!’

शिव जी ने प्रश्न सुना ..शिव जी शांत हुए…ब्रम्ह ज्ञान तो सर्वो परी है ..वशिष्ठ जी इस अनुभूति के धनि है, लेकिन विश्वामित्र कच्चे है.. तपस्या का सामर्थ्य है.. लेकिन अधिष्ठान में एकाग्र होने का सामर्थ्य अलग होता है ..तपस्या के बल से वरदान देने की ताकद आती लेकिन ब्रम्हज्ञान की शक्ति अलग होती है..
जैसे ब्रम्हाजी ने चावल बनाए, गेंहू बनाए ऐसे विश्वामित्र ने मका बना दिया ऐसी तपस्या का सामर्थ्य है ..ऐसे विश्वामित्र जी को तपस्या से अधिक महत्त्व ब्रम्हज्ञान के सत्संग का बोलूँगा तो वे चीड़ जायेंगे… अगर विश्वामित्र के पक्ष में निर्णय देते तो ब्रम्हज्ञान की बात का अनादर करने का पाप लगता है..शिव जी बोले, ‘आप ब्रम्हा जी, विष्णु जी की कथा सुन के आये.. ऐसे ही हम तो कभी देव दानव विष पान में कभी कोई भक्त वरदान माँगते तो हम तथास्तु कहे डालते तो भस्मासुर बन के पीछे पड़ते …आप ऐसा करो की नेति नेति करते जो शेष है उस के पास जाओ..जो संकल्प मात्र से अपने सर पर पृथ्वी को धारण किये है …शेष नाग के सत्व गुण, त्रि-गुणातीत के कारण ही पृथ्वी टिकी है उस शेष नाग के पास जाओ…
..दोनों गए शेष नाग के पास …ब्रम्हा देव , विष्णु भगवान , शिव जी तीनो देवता का देवत्व जिस चैत्यन्य विभु से है उस में विश्रांति पानेवाले ब्रम्हज्ञानी के 2 घडी का सत्संग का महत्त्व शेष नाग जी जानते थे ..लेकिन विश्वामित्र जी जानते नहीं तो तपस्या के बल से मुझे श्राप दे देंगे…
बोले, ‘देखो मुनिवर हम पृथ्वी को धारण करते है तो थक गया हूँ..तपस्या के बल से पृथ्वी को रोको तो आराम से निर्णय दूंगा..’

विश्वामित्र जी बोले, ’60 वर्ष की तपस्या का फल देता हूँ , हे पृथ्वी ! तुम वैसे ही टिक जाओ!’
..पृथ्वी तो कोपायमान हो गयी …

तो शेष जी ने वशिष्ठ जी को कहा की, ‘महाराज आप कुछ कहिये’
तो वशिष्ठ जी बोले, ‘जो सतचित आनंद स्वरुप परम तत्व है , उस में मेरा चित्त विश्रांति पाता है, उस परम तत्व के ही बल से शेष आप को धारण करते है..उन्ही की सत्ता से हे पृथ्वी माँ आप टिकी हो और टिकोगी … ऐसी परम सत्ता से एकाकार होकर किये हुए ब्रम्हज्ञान के सत्संग के 2 घडी प्रभाव से हे पृथ्वी माँ आप रुक जाओ!’

और पृथ्वी रुक गयी…!!
शेष नाग जी बोले निर्णय तो पृथ्वी ने दिया…अब क्या निर्णय करेंगे?

ऐसे आप के अन्दर ज्योति स्वरुप जो सब कुछ जानता है, सब कुछ बदल जाता फिर भी शेष रहेता है वो ही आत्मा परमात्मा है..उस का ज्ञान, उस की प्रीति, उस में विश्रांति पाओ!

..ये प्रसंग किसी को छोटा बड़ा कहेलाने के लिए नहीं है…आप उस विश्वेश की सत्ता में आओ इसलिए कहा है… प्रिय से प्रिय धन, पत्नी, प्रिय से प्रिय हीरे जवारात छोड़ के आप जब नींद में जाते हो तब आराम चाहते वो कहा से मिलता? शेष में से मिलता है! नींद चाहते तो पति पत्नी को , धन जेवरात आराम नहीं है ..वो छोड़ के जिस शेष में जाते वो शेष ही सब कुछ है!!
वो ही गोविन्द है जो इन्द्रियों में विचरण करता है..गोपाल है-आप सोते तो इन्द्रियों को पुष्ट करता है गो माने इन्द्रियों का पालन करता है.. वो ही राधा रमण है…राधा शब्द को उलटा करो तो धारा – वृत्तियों की धाराओं में जो चैत्यन्य स्वरुप स्पंदन है..जिस से विचार उठते, उठ उठ के चले जाते.. फिर भी जो शेष रहेता वो है रमण है…जिव भी वो ही है!

वो कौन है जिस की सत्ता से आँखे टिकती है… जिस की सत्ता से देखा जाता वो ही तो परमात्मा है..मर जाते तो कोई आकृति नहीं रहेती..काल के गाल में समा जाते…लेकिन काल के जो काल है उस के साथ का अमर सम्बन्ध जान लो..जो बनती बिगड़ती वो तो आकृति है..बुलबुला, झाग, तरंग अगर ‘मै’ पानी हूँ ऐसा जाने तो ‘तुम’ समुद्र हो!

जिस की सत्ता से वाणी स्फुरित होती वह तुम्हारा आत्मा तुम्हारा कभी साथ नहीं छोड़ता.. वह भगवान ना दूर है, ना दुर्लभ है..

ना दुरे ना दुर्लभ! ..वह दुरगम भी नहीं!! हजीरा हाजिर है!!

आध सत, जुगात सत, नानक हो से भी सत
ऐसा पूरा प्रभु आराधिये

ज्ञान के अभाव में वि-कल्पनाओं में मारे जाते..शादी हो जाए तो सुखी हो जाऊ, बड़ी कोठी हो जाये तो सुखी हो जाऊ, मित्र मिले तो सुखी हो जाऊ, गहने मिले तो सुखी हो जाऊ ..ऐसे करते कई जिन्दगिया तबाह हो गयी… जिन के पास नोकरी, गहने, कोठिया है वो भी दुखी है…अंध कूप में खदबदा रहे है.. उस आत्म देव को जानो …ब्रम्ह ज्ञान को समझो…ब्रम्हज्ञान का सत्संग सुनो…

ॐ शांति

सदगुरुदेव जी भगवान की महा जयजयकार जय हो!!!!
गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे…

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