मानुषी सुख से 100 गुना ज्यादा सुख गन्धर्वो को है, उन के पास प्राकृतिक माया की सुविधायें हैं ….गन्धर्वो से 100 गुना ज्यादा सुख पितृलोक में है..पितृ लोक से 100 गुना ज्यादा अजानु देव को सुख है..अजानु देवो से 100 गुना ज्यादा सुख कर्मज् देवताओ को है.. कर्मज देवताओ से 100 गुना ज्यादा सुख स्वर्ग के देवो के पास है..वे जब चाहे जहा चाहे प्रगट हो सकते, अंतर्धान हो सकते, वरदान दे सकते, रूप बदल सकते …ऐसे कई सामर्थ्य होते उन के पास..उन से कई गुना ज्यादा सुख देवो के राजा इंद्र के पास है और इंद्र से कई गुना ज्यादा सुख इंद्र देव के गुरूदेव ब्रुहस्पति के पास है…ऐसे ब्रुहस्पति का बेटा कौंच अपने पिताजी को पूछता है की,
“वास्तविक अमृत क्या है?”
ब्रुहस्पति कहेते है की, “वास्तविक अमृत है : ब्रम्ह-परमात्मा का सुख है!”
“पिताश्री इस को कहा से पा सकते है?”
“धरती पर जाओ!”
ऐसी ये धरती है…और यहाँ मनुष्य वो सच्चा अमृत पाने के बजाये तुच्छ सुखो में ‘हैप्पी लाइफ’ करते करते ‘व्हील चेअर’ लाइफ कर लेता है!…
केवल धरती पर ही ब्रम्ह परमात्मा का सुख पाने की सुन्दर व्यवस्था है…जो और लोकों में नहीं है…तो ऐसी धरती पर मृत्यु लोक में ब्रुहस्पति के पुत्र कौंच आये..जहा अध्यात्मिक उन्नति होती ऐसे भारत में गुफा में रहेने लगे…श्वासोश्वास में जप और ध्यान धारणा करने लगे…2 साल बीत गए…
गुरू ब्रुह्स्पति आये…… पुत्र कौंच बोले, “पिताश्री 2 वर्ष बीते ब्रम्हानंद नहीं हुआ..”
“त्याग कर” इतने 2 वचन बोल कर गुरू जी चले गए.
कौंच तितिक्षा में रहेते…खूब ध्यान धारणा करते… और 5 वर्ष बीत गए…गुरूजी आये… अब कौंच ने गुरू के नाई पिता का स्वागत किया… ‘तुझ में तू ना रहे, द्वैत की बू ना रहे’ ऐसी स्थिति पा लिए थे… …गुरू के सामने ‘मैं’ को मिटा दिया तो ब्रम्हानंद हो गया!…
वो तो ज्यादा सुविधा में रहेते तो आदत मिटाने के लिए 7 साल लगे, नहीं तो इतने समय की भी जरुरत नहीं….
ॐ शांती
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