3.8.10

वेद सागर ऋषि और राम शर्मा, कृष्ण शर्मा

 (परमपूज्य आसाराम बापूजी के सत्संग से )



कावेरी तट में वेद सागर ऋषि के चरणों में राम शर्मा और कृष्ण शर्मा ये 2 भाई शिष्य होने के लिए आये…
वेद सागर बोले , थोड़े दिन की सम्मति देता हूँ… !’ मतलब लर्निंग लायेसेन्स देता हूँ :) … ‘परीक्षा होगी …पात्र हुए तो फिर तुम्हारा समर्पण स्वीकार करेंगे…’
कुछ दिन बीते… एकादशी का दिन आया… गुरूजी बोले, ‘आश्रम में एकादशी के दिन सब उपवास करते है … वो दूर पहाड़ी पर मंदिर दिखाई दे रहा है , वहा जाकर भगवान के दर्शन कर आओ…’

पहाड़ी तो सामने दिख रही थी , लेकिन कई मिले चले तब मंदिर आया ….मंदिर में एकांत था…. पुजारी ने कहा कुछ खा लो….राम शर्मा ने कहा , ‘एकादशी का उपवास है..’
पुजारी बोला, ‘इतना दूर पैदल चल के आये… ये प्रसाद है…खा लो…’
राम शर्मा बोला, ‘एकादशी है तो गुरू महाराज, गुरू भाई प्रसाद नहीं लेंगे तो हम भी नहीं ले सकते..’

पुजारी बोला, ‘गुरू महाराज इधर थोड़े है…तुम दोनों के सिवाय कोई गुरू भाई भी नहीं यहाँ… जवान हो , भूख लगी होगी, खा लो…’
अब तो महाराज कृष्ण शर्मा के मुंह में पानी आ गया! बोला, ‘गुरू महाराज यहाँ नहीं और गुरू भाई भी यहाँ नहीं…’
राम शर्मा बोला, ‘हम अध्यात्मिक पथिक है…हमारा अंतरात्मा देख रहा है…हमारा आत्मा और गुरू का आत्मा एक ही है..जुड़ा है.. गुरू जी नहीं देखते ऐसा नहीं सोचो…गुरू का आत्मा और हमारा आत्मा एक है..गुरू देखते नहीं,ऐसा सोचना ही ना-लायकी है..’

इतने में जंगल में आग लग गयी… अब क्या करे?

नदिया के इस पार आग है और उस पार जाते तो बच जायेंगे….एक केवट आया नाव लेकर…बोला, एक आदमी आ सकता है नाव में…
कृष्ण शर्मा बोला, ‘हम दोनों को नहीं ले सकते?’
नाविक बोला, जा सकते है, मुझे यहाँ रहेना पडेगा..मेरी जान जाये तो जाये… ये शिकारा है..नाव चलाने वाले के साथ केवल एक सहायक बैठ सकता है, 2 नहीं…

आग की पलटे नजदीक आ गयी थी…नाविक बोला जल्दी करो..
राम शर्मा बोला, ‘तुम जाओ कृष्ण… मैं यहाँ रुकता हूँ..’
कृष्ण शर्मा बोला, ‘अच्छा …केवट मुझे वहा पहुंचा के आएगा तुम को लेने…’
कृष्ण शर्मा तो गुरू भाई को छोड़ के बैठ गया नाव में…
केवट के रूप में, पुजारी के रूप में गुरू महाराज ही थे….
बोले , असली आग है स्वार्थ!…कृष्ण जो तुम्हारे मन में छुपा है…
स्वार्थ के कारन ही गुरू के आश्रम में 40 साल से रहे कर के भी उन्नत नहीं होते… अपने दुःख सहे के भी अपने गुरू भाई को ज्यादा सुविधा देते उस का आत्म वैभव जागता है…

गुरू महाराज बोले, ‘कृष्णा तू जा घर… कमा और खा, वासना चिंता रोग की दल दल में फसो.. जनमो और मरो …. राम शर्मा तू चल आश्रम में..आत्म-पिया का प्रभु रस जी भर के पी और औरों को भी पिला!!’ … राम शर्मा को प्रवेश आश्रम में प्रवेश मिला…क्यों की उस के मन में स्वार्थ नहीं, परदुख कातरता है…

आज धरती पर सव्वा 500 करोड़ है , लेकिन एक भी आदमी ऐसा दिखाए जो बोले की फलाना काम दुखी होने के लिए किया…पूरी जिंदगी सुख के पीछे भागते फिर भी सरप्लस में दुःख ही रहे जाता है… ऐसा कोई सुख नहीं जिस के गर्भ में दुःख ना छिपा हो..
दुःख उन्नति के लिए आता है, सुख बाट दो.. आत्म-आनंद प्रगट करो…

ॐ शांती

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