8.4.10

धरोहर


२१ मार्च २०१० ; इंदौर सत्संग समाचार पार्ट-१

पूज्य संतश्री आसाराम बापूजी के आश्रम में चलने वाले आयुर्वेदिक औषधियों से अब तक लाखों लोग लाभान्वित हो चुके हैं | संतश्री के मार्गदर्शन में आयुर्वेद के निष्णात वेदों द्वारा रोगियों का कुशल उपचार किया जाता हैं | अनेक बार तो प्रख्यात चिकित्सायलों में गहन चिकित्सा प्रणाली से गुजरने के बाद भी अस्वस्थता यथावत् बनी रहने के कारण रोगी को घर के लिए रवाना कर दिया जाता हैं | वे ही रोगी मरणासन्न स्थिति में भी आश्रम के उपचार एवं संतश्री के आशीर्वाद से स्वस्थ व तंदुरूस्त होकर घर लौटते हैं | साधकों द्वारा जड़ी-बूटियों की खोज करके सूरत आश्रम में विविध आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण किया जाता हैं |

  • एक ऐसा आविष्कार हाथ आया है की उस दवा को २० दिन रोज 0.25(कार्टर= १/४ = एक चौथाई)ग्राम खाना है..कार्टर ग्राम माने ग्राम का चौथा हिस्सा…एक पाकेट में 20 दिन का खुराक है..20 पुड़ियाँ है…रोज कार्टर ग्राम चुसो.. ५ ग्राम का पाकेट मिलेगा…सभी रोग बीमारियों से बचोगे…स्वास्थ्य बढ़िया रहेगा..
  • ऐसा नेत्र बिंदु आया है की चश्मा उतर जाए अढाई महीने में ऐसा ड्रॉप डालो.. चश्मा नहीं उतरा तो मैं शिमला हारा!(विनोद में!) :)

मोहब्बत जोर पकडती तो शरारत का रूप धारण करती है! :)

एक शिष्य ने पूछा की ब्रम्हस्वरूप गुरु ने शिष्य को अपना मान लिया ये कैसे पता चलेगा? बोले जैसे अपने बेटे को हाथ पैर मारते, मार पिट करे, गलती हुयी तो डांट देने में देर ना करे तो समझ लेना गुरु ने चेले को अपना मान लिया! :)

धरोहर नाम के सिन्धी ग्रन्थ का विमोचन हो रहा है…बिखरे फूल एक माला में आये इसलिए ये ग्रन्थ बनाया है..इंदौर चेटीचंड समिति को शाबास है की ९ दिन का उत्सव मनाया, ग्रन्थ छापा, लेकिन सब से बड़ा काम ये है की ब्रम्हज्ञान का 3 दिवसीय सत्संग दिलाया सभी को….कानपूर में नारायण (गुरुपुत्र श्री श्री नारायण साईं जी ) सत्संग कर रहा , वहा भी लोग सुन रहे, दुबई, अबुधाबी,कुवैत, कनाडा , अमेरिका,स्पेन, साउथ कोरिया, जर्मनी ,जापान, हांगकांग आदि १५६ देशो में ये सत्संग जा रहा है..और वि. सी. डी. के माध्यम से कितने कितने लोगो तक पहुंचेगा.. धरोहर सिन्धी ब्रम्ह ग्रन्थ का विमोचन ब्रम्ह कर रहे :) …. इंदौर में परम दिव्य साफल्य ये है की आखरी 3 दिन आरोग्य, शांति और आत्म ज्ञान का अमृत के रस पिलानेवाला सत्संग आयोजन किया है.. इस ग्रन्थ का विमोचन भारत के साथ 156 देश के लोग देख रहे ….हम गाँठ खोलते और विमोचन हो जाता है…. हम कभी रिबन काटते नहीं… :) गाँठ खोलते!

इंदौर समिति ने एक सुन्दर काम और भी किया क़ी देशभर सिन्धी बोली में भजन गाया जाएगा “जोगी रे..” झुलेलाल समिति की ये बड़ी भारी उपलब्धि है.. इस उत्सव की ख़ुशी में धरोहर का विमोचन और इस भजन की शुरुवात यही से होगी..इंदौर सत्संग की क्यासेटे, विसीडी इंटरनैशनल हो गयी..

इस धरोहर नाम के पुस्तक का विमोचन तो मैंने कर दिया… लेकिन तुम्हारे ‘धरोहर’ का विमोचन मैं नहीं कर सकता ! वो तो तुम्हे ही करना होगा…वो धरोहर कही दूर नहीं, तुम्हारे अन्दर है! आत्मा परमात्मा की धरोहर है…जैसे कायी पानी को ढकती ऐसे अज्ञान से आप की आत्मा रूपी धरोहर ढक गयी है.. कल्पना के संस्कार की कायी मिटाकर उस आत्म-धरोहर का सुख, माधुरी, नित्य नए रस के अमृत के सागर का उदघाटन तुम्हे ही करना है…

सभी भगवान की अमर संतान है… शरीर मैं हूँ, कुछ खा कर, कुछ बनकर, कुछ पाकर,कुछ छोड़कर ही सुख मिलेगा, मजा आयेगा ये भरम ने तुम्हारे धरोहर को ढक दिया है….

एक आदमी जंगल से गुजर रहा था, उस को प्यास लगी…तो साधू बाबा बैठे थे, उन को पूछा, ‘बाबा पानी कहा मिलेगा?’

बाबा बोले, ‘ये सामने सरोवर है, पानी पी लो’ … आदमी बोला, ‘यहाँ पानी तो नहीं , घास है..’

बोले अरे वो घांस नहीं, कायी है…थोड़ा आगे ४ कदम जा, कायी हटा दे, तो ऐसा पानी है की गंगाजल की खबर देगा..

आदमी गया…मधुर जल से प्यास बुझाई… वहाँ से हटा तो देखा की अब फिर कायी छा गयी पानी पर…कायी तो छा गयी, लेकिन वहाँ जल है इस का ज्ञान तो कायी का बाप भी नहीं हटा सकता उस आदमी के स्मृति से! ऐसे ही अ-ज्ञान की कायी हटाकर आत्म-साक्षात्कार कर लिया तो उस आत्म-अनुभव को आप से कोई छीन नहीं सकता… ऐसे पुरुषो को जीवन मुक्त बोलते!

स्व तरति , लोकां तारिती

गुरुकुल में पढ़ने वाली एक दिव्य आत्मा ने ठान लिया था की मैं आत्मज्ञान पाउंगी..आत्मज्ञान पा लिया.. शादी हो गयी…राजा की रानी बनकर ससुराल गयी…..बच्चा हुआ..मदालसा उस का नाम था..मदालसा ने सोचा की अगर मेरे कोख से जन्मा बच्चा ब्रम्हज्ञानी ना बने तो धिक्कार है मेरे गर्भ धारण करने का…बुध्दिमान थी… बच्चे का जनम हुआ तो दाई से बच्चे को नहेला कर पिता के गोद में दिया..पिता ने संसार की आवाज उस के काम में पड़े उस के पहेले ओमकार ध्वनि उस के कान में डाल दी..

पिता 7 बार ॐ बोलता : ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ अश्मा भव!तू चट्टान के नायी अडिग रहेना! चट्टान जैसे बहेते पानी को रोक कर अडिग रहेता ऐसा तू संसार के बहाव को रोक के ज्ञान में अडिग रहेना..

पिता ने फिर ७ बार ॐ का उच्चारण किया: ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ परशु भव !तू परशु के नायी विघ्न बाधाओं को काटनेवाला बन!

फिर ७ बार ॐ बोला : ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ हिरण्यमस्तु भव! तू सुवर्ण की नायी बनाना…तुम्हारा कर्तुत्व सुवर्ण के नायी चमके, जैसे सोने को अन्य धातु की तरह वातावरण का बहिरंग नहीं चढ़ता ऐसे तुम पर अहंकार का बहिरंग ना आये.. पिता से २१ बार ओमकार का पवित्र नाम बालक के कान में डाल दिया…. माँ बुध्दिमान थी… शहेद और घी का वि-मिश्रण माने एक ज्यादा, एक कम ..घी ज्यादा हो तो शहेद कम ,शहेद ज्यादा हो तो घी कम ..दोनों समान मात्रा में नहीं लेना है…तो ऐसे शहेद और घी के वि-मिश्रण से सुवर्ण की सलाई से बालक के जिव्हा पर ॐ लिख दिया..उस के बाद ही बालक को दूध पिलाया..मदालसा बालक को लोरी देती तो उस में गाती की ‘तू शुध्द है, बुध्द है… तू सदा रहेने वाला है.. तू दुःख से दुखी, सुख से सुखी, अहंकार से फूलने वाला नहीं…दुःख, सुख, अहंकार तो आता-जाता है..बदलता है… बचपन, जवानी, बुढापा, बिमारी तो शरीर को होते..प्रकृति बदलती… ॐ ॐ… तू अ-बदल है’ …इस प्रकार बालको को आत्म ज्ञान देती..मदालसा को 5 बेटे हुए..सभी ब्रम्ह ग्यानी हुए…देश भर में ब्रम्हज्ञानी बेटे आत्म ज्ञान की प्रसादी बाटते… मदालसा को छटा बेटा हुआ…राजा बोला, मदालसा तू इस को भी ब्रम्हज्ञान देगी तो राज काज का गाडा कौन संभालेगा? …ब्रम्हज्ञान हुआ तो संसार का, राज काज का बोझ-वाही बैल वो नहीं बनेगा…मनुष्य को जब तक आत्मज्ञान नहीं तब तक वो दीन हीन गुलाम बनात रहेता… लोग उस को पिठठु बनाते रहेते, दबाते रहेते.. 5 बेटे तो बन गए शहेंशहा…

मदालसा ने कहा, ‘ये बेटा तुम्हारा राज भी करेगा, और ब्रम्हज्ञान भी पायेगा ऐसा करुँगी…इस बेटे को पूर्ण ज्ञान नहीं सुनाउंगी…लेकिन जीवन पूरा होने से पहेले असली खजाना पा लेगा ऐसा बनाउंगी..’

मदालसा का जीवन पूरा होने को आया.. शरीर छोड़ने की घडियो में आई..ब्रम्हज्ञानी थी, वस्त्र उतारते ऐसे शरीर छोड़कर आत्म वैभव में व्याप्त होगी ऐसी स्थिति आये उस के पहेले अपने इस ६टे बेटे को बुलाई… “अलरख हेड़ाच ” (इधर आओ!) … बेटे को बुलाया…

माँ ने अलरख के गले में तावीज डाल दिया बोली, “बेटे, जब सारे दरवाजे बंद हो जाए ऐसी स्थिति आये… चुगलखोर, ईर्शालू सभी जगह होते तो राजा और सेठ चिंता मुक्त कैसे हो सकता है?..ये तावीज सन्दुक में रख दे, या गले में पहेन …राज काज में जब अन्धेरा हो जाए ….कोई सहायक ना मिले, युध्द पराकाष्ठा पे हो जाए.. तब इस तावीज को खोलना है… तेरी रक्षा होगी..”

5 -25 साल बीते…5 भाईयो ने सोचा हम लोगो को तो ब्रम्हज्ञान मिला, लेकिन छठा भाई पिठठु बना है… जितना धन संपत्ति राज्य इकठठा करना था किया..मरने से पहेले अ-मरता का उपदेश पा लो बोलेंगे तो मानेगा नहीं… क्यों की राजा के हवा में उड़ रहा है…ये भी अपना भाई है…हमारी माता ब्रम्हज्ञानी मदालसा के हम 5 बेटे ब्रम्हज्ञानी है, और ये पिठठु बन के रहे जाए ये ठीक नहीं…

पांचो भाईयों ने मिलकर प्लान बनाया…एक भाई का शिष्य काशी नरेश था, उस को बोला की सैन्य लेकर हमारे भाई अलरख पे चढ़ाई करना…ऐसे सभी भाइयों ने अपने शिष्य राजाओं को तैयार किया की हमारे भाई अलरख पे चढ़ाई करो..कैसी लीला होती है ब्रम्ह्ग्यानी की!..

..अलरख पूरी कोशिश किया, लेकिन कोई मार्ग नहीं मिला बचने का… मेरे खिलाफ काशी नरेश है..जैसे सारी मानवता मेरे खिलाफ हो गयी .. जीतने का तो सवाल ही नहीं …जैसे बुलडोझर घुमे तो कीड़े मकोड़े कुचल जाते ऐसे काशी नरेश के सैन्य के सामने हमारे सैनिको की दशा होगी…फिर उस को याद आया की माँ ने कहाँ था चारो तरफ दरवाजे बंद हो जाए तब ये तावीज खोलना… तावीज खोला..तावीज में रखी प्रसादी को खोला…उस में लिखा था, “दुःख पड़े तो संत शरण जाईये”

अपना पुरुषार्थ करो, थके तो महापुरुष से कोंटाक्ट कर के हो जाओ पार..!:)

माँ तो बड़ी संत थी, लेकिन अब माँ तो नहीं..पास में कोई महापुरुष थे, वो भी शरीर छोड़ दिए…हां! जोगी गोरखनाथ आये है इन दिनों अपने राज्य में…गए गोरखनाथ जी के चरणों में…

5 भाईयों ने दुसरे राज्य के राजाओ से मिलकर अपने ही भाई पर हावी हो रहे थे… ब्रम्हज्ञानी की लीला होती ऐसी! ..हम भी ऐसा करते जब किसी को देना होता तो ऐसे करते की तोबा पुकार जाए… फिर कुंजी लगाते तो ताले खुल जाते!… :)

सम्राट आया पसीना पसीना होकर जोगी गोरखनाथ जी के पास.. “महाराज बचाईये! सर्वोपरि काशी नरेश रातोरात हमारे खिलाफ हो गए…. कोई समझोते की बात नहीं… शरणागति स्वीकार करो तो भी राजी नहीं ….बोले युध्द करो..कैसे जिऊँगा ?”

जोगी गोरखनाथ पूछे, “इधर कैसे आया?”

बोले, “माँ ने तावीज दिया था..”

गोरखनाथ जी समझ गए… ब्रम्हज्ञानी देवी का बेटा तावीज की बात पढ़ के आया है तो जरुर कुछ रहस्य है..”

गोरखनाथ जी थोड़ी देर शांत बैठे..

“बाबा मैं बहोत दुःख में हूँ..मेरे दुःख मिटाओ बाबा… बाबा मेरा दुःख मिटाओ!”

बाबा बोले, “अभी दुःख मिटाता हूँ.. भैरव, ज़रा चिमटा लाओ तो..”

भैरव चिमटा लाया..बाबा ने जलती धुनी में चिमटा लाल लाल चमचमाया… चिमटा पकड़ा कपडे की नोक से पीछे के हिस्से से… बोले, “दिखाओ तो ज़रा कहा रहेता है तेरा दुःख?अभी मिटाता हूँ! ह्रदय में ना?” ..बाबा चिमटा लेकर उस के ह्रदय पर रखने का नाटक करने लगे…

“बाबा दुःख तो मेरे दिल में है…”

“दिल में है, निकालो दिल को बाहर..”

“बाबा दुःख दीखता नहीं है…”

“खोजो दुःख को ..मदालसा का बेटा है.. मैं अभी तेरे दुःख को मारूंगा….”

ब्रम्हज्ञानी संत के सामने अलरख अचम्बे से देख रहा है.. संत की नुरानी निगाह पड़ी तो अलरख जिस का था उस का हो गया! दुःख होता है मन में.ईश्वर कुछ करना चाहते और हम कुछ करना चाहते तो तब दुःख होता ये समझ गया..

ईश्वर राज्य लेना चाहता तभी काशी नरेश के साथ 5 राजे एकत्रित आकर तुम्हारे से युध्द की मांग कर रहे.. और तुम देना नहीं चाहता इसलिए दुःख हो रहा..ईश्वरीय सत्ता ही 5 भाइयो को प्रेरणा कर रही…तेरी मर्जी पूरण हो ईश्वरीय इच्छा में अपनी इच्छा मिला दो तो दुःख मिट गया! अहंकार मिट गया! भाइयो को सन्देश भेजा…’मैं राज्य छोड़ने को राजी हूँ…मुझे भी आत्मा-परमात्मा का दर्शन दिला दो.. मैंने बहोत भार ढोया राज्य का अब मेरे को भगवान को पाना है…’

भाई बोले, “राज्य आप को संभालने को मिला, आप ही संभालो, भगवान पाने को कहीं दूर नहीं जाना है…ज़रा सा उपदेश पाना है और आत्मा-परमात्मा को जानना है बस!”

ब्राम्ही स्थिति प्राप्त कर

कार्य रहे ना शेष

मोह कभी ना ठग सके

इच्छा नहीं लवलेश…

पूर्ण गुरु की कृपा का ज्ञान पाना है ….पा लिया भगवान को!

चीन की दीवार मशहूर है..

अमेरिका का डोलर मशहूर है..

कुवैत का पेट्रोल मशहूर है..

लेकिन आरोग्य, शांति और परमात्म प्राप्ति कराने में अभी भी सक्षम है भारत की धरती!

ॐ शांति.

सदगुरुदेव जी भगवान की जय हो!!!!!

गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे….

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