24 मार्च 2010; हरिद्वार सत्संग
श्री सुरेशमहाराज की गुरुभाक्तिमय अमृत वाणी


४ गुप्तियाँ है,साधना में आगे बढ़ने के लिए..
एक है “अर्थ गुप्ती” …जो सत्संग में जो ज्ञान सूना उस का सही अर्थ समझना बहोत जरुरी है.. जिस में काली मिर्च, बादाम, इलायची डाली और उस को ठंडाई बोलते ऐसी ना- समझियाँ पाल रखी है..काली मिर्च, बादाम और इलायची की तासीर कितनी गर्म है,तो इन चीजो से बनी चीज ठंडाई कैसे ठंडी हो सकती है?..जो ऐसा मानते, भगवान बचाए उन को…
तो वचनों का सही अर्थ जाने.. गुरु क्या कहेना चाहते वो जान कर, उस वचन का सही अर्थ जानकर फिर मानो तो कल्याण होता है..

दूसरी , “वचन गुप्ती” है.. वचन गुप्ती माना मन की शक्ति को जाने..मन के फैलाव को रोके.. तो मन के फैलाव को कैसे रोके? दीर्घ प्रणव करे ओमकार का…
सुबह धुप कर के धीमी आवाज में ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ… निरंतर तेल धार-वत … खाली श्वास लेने के लिए रुके… फिर बोलते
रहे..फालतू बाते सोचे नहीं… शांत रहे…

तीसरी है, “वाणी गुप्ती” ..वाणी ऐसा सेतु है जिसके द्वारा हम दुसरे तक पहुंचते है..
बोलते रहे तो औरो तक हम पहुंचते ; ऐसे मौन रहे तो वो भी सेतु है , मौन से ईश्वर तक हम पहुंचते..!
एक बुजुर्ग संत से किसी ने पूछा, ‘अपने देश में इतनी भाषाए है, देश विदेशो में अलग भाषायें है..भगवान कौन सी भाषा
समझते? इतनी सारी भाषायें है’
संत ने कहा, ‘भगवान मौन की भाषा समझते..’
मंदिर में जाओ तो गिड़गिडाते ही नहीं रहे, चुप भी बैठे..

चौथी है, “क्षुद्र-काय गुप्ती” ….शरीर के अध्यास को गलाते जाए..
काया की मुख्य अवस्था भुलकर दिखावटी में व्यर्थ्य का समय गवाते..
संत का समय शक्ति खर्च कर देते..
मैंने आश्रम में रहेने वाले गुरुभाईयों से कभी फालतू प्रश्न नहीं पूछे ..बस गुरुदेव का सत्संग मन लगाकर सुनता.. मन नहीं
लगता, कैसे करे? किसी से नहीं पूछा…ये तो मुझे सुन सुन कर पता चला की ‘मन नहीं लगता’ ये भी बात है… फालतू
परिस्थिति को महत्त्व देते, गुरु के वचनों को, गुरुदेव से मिले हुए भगवान के नाम को, जप को महत्त्व दे तो परिस्थति घुटने टेकते
जायेगी.. अ-लभ्य कुछ नहीं रहेगा..कोई उपलब्धि अ-लभ्य नहीं रहेगी..

मन में ४ भाव आये तो उत्साह बना रहेगा, भाव जगत में रूपांतरण हो… संशुध्दी हो भाव में… मन सम्बन्धी तप सब से उत्तम तप
है..ये ४ भाव जीवन में हो तो ह्रदय के भाव शुद्ध होते…और इन ४ भावो के विपरीत तत्व जीवन में हो तो ह्रदय के भाव अशुद्ध होते..
१) मैत्री
२) करूणा
३) प्रमोदिता और
४) कृतज्ञता
ये ४ भाव ह्रदय की शुध्दी करते ..ये भाव मन में आये तो ह्रदय की संशुध्दी सदा बनी रहेगी..फिर आप की सदा तपस्या हो रही
है.. गंगा नहाने जा रहे पैदल तो भी तपस्या जारी है..
ये ४ भावो के विपरीत तत्व कौन से है?
मैत्री के विपरीत है घ्रूणा
करूणा के विपरीत है हिंसा.
प्रमोदिता के विपरीत है विषाद, चिंता.
कृतज्ञता के विपरीत है गद्दारी.

किन बातो से भाव प्रभावित है इस का महत्त्व है..बोले, उस ने ऐसा किया तो क्रोध तो आयेगा ना..क्रोध में शक्ति खर्च होती है..
मैत्री में शक्ति विकसित होगी.
मैत्री माना फ्रेंडशिप- दोस्ती नहीं, मित्र भाव..गुजराथी में एक भजन है :
मैत्र का झरनों मुझ हैय्या में बहा करे..
शुभ थाऊ आ सकल विश्व नु…
मेरे दिल से मित्र भाव का ..पवित्र भाव का झरना सदा बहेता रहे..
महापुरुषो ने मैत्री की शक्ति की बुनियाद रखी है.. महापुरुषो ने हमेशा इसी की नीव राखी है.. शत्रुता से मानवता का बहोत
नुकसान होता है….प्रेम के झरने भीतर है, शुभ थाऊ आ सकल विश्व नु..सारे विश्व का कल्याण हो ऐसा पवित्र मैत्र भाव का
झरना मेरे अंतर में सदा बहेता रहे..
अ-शुध्द भाव बाहर से प्रभावित होते..अन्दर के भाव से जुड़े भाव शुध्द होते है…साधक के ह्रदय के भाव सामनेवाले को भक्ति
से भर दे, ऐसे भाव होने चाहिए…कोई हम से भिड़ने की कोशिश करे तो भी हम किसी से लडे नहीं..अपना समय शक्ति खर्च करे
नहीं व्यर्थ्य में…
शत्रुता बाहर है , मैत्री भीतर है..
सरोवर में कैसे भी बाल्टी डालो पानी तो आयेगा ही..हम कही भी जा रहे हो, कोई हम को गाली दे दे, और हम को क्रोध आया तो समझो
बाहर में भाव बहे रहे..आज कल लोगो का दिमाग तो जैसे इको पॉइंट की तरह काम करता है.. किसी ने कुछ सुनाया तो तुरंत उलटा
सूना देते..
एक सोसाइटी में गधा मर गया तो बदबू आ रही थी.. तो सोसाइटी वाले ने म्युनिसिपलिटी के ऑफिस में फ़ोन किया..तो वहा के आदमी ने
सुनाया की, ‘आप भी तो पंडित है, सब जानते है, तो आप ही उस गधे की अंतिम क्रिया संस्कार वही कर दो’
इसने भी तड़ाक से सूना दिया, ‘मैं तो कर दूँ, लेकिन सोचा उस के रिश्तेदारों को फ़ोन तो कर दूँ!’
‘उस ने ऐसा किया तो मैं भी ऐसा जबाब दूँ’ ऐसे प्रतिक्रया में नहीं जिए..
हम दूसरो को ठीक नहीं कर सकते, हम अपने को ठीक कर के चले..

अपने को ठीक करना है तो क्या करे?
अपने गुरुदेव के फोटो के सामने बैठ जाए दीप जलाकर.. और गुरुदेव को अपनी भक्ति का प्रेम सन्देश भेजे.. तो गुरुदेव के फोटो से
कृपा किरणे बरसेगी आप पर!… फरियाद ना करे…केवल याद करे…. खुद का जीवन सुधारों , दूसरो पे नजर है तो खुद को कैसे
देख पायेंगे….सेवा का एक भी अवसर जाने ना दो…अगर रास्ते में पथ्थर पडा हो तो किसी को ठोकर लगेगी सोच कर उस को हटाओ..
आप का क्या बिगड़ जाएगा, सेवा हो जायेगी..

जो रोज गुरु गीता पढ़ते उन को बहोत लाभ होता है..जो रोज सम्पूर्ण गुरु गीता नहीं पढ़ सकते वो कुछ भाग तो जरुर पढ़े…कम से कम रोज एक पन्ना या २ श्लोक पढ़ने ही चाहिए.. ..गुरु गीता गुरु भक्ति की गंगोत्री है….गुरुगीता पढ़ने से भक्त के ह्रदय से गुरु भक्ति की गंगा निकलती है..

ना अच्छे से जुडो, ना बुरे से जुडो.. सब को पसार होने दो…दोषों को देखे किसी को तो ये सोचे की मेरे में ये दोष ना आये..किसी में सदगुण देखे तो सोचे की इस में जो सदगुण है वो मेरे में भी आ जाए..कुछ लोग क्या करते की, गुणवान के पीछ-लग्गू हो जाते और दोषों को नफरत करते..इंदौर में किसी व्यक्ति ने भोले लोगो को प्रभावित किया और फसाकर उन से कई रुपये हड़प लिए..गुणवान को देखकर पिछलग्गू न हो और दोषी का देख कर नफ़रत ना करे..

सूर्यास्त के पहेले ही संध्या शुरू करे तो वो उत्तम संध्या कहेलाती है..
हम सभी मिलकर ओमकार का गुंजन करते हुए शांत होते जाए… घडा पूर्ण जल से भरा हो तो आवाज नहीं करेगा ऐसे ह्रदय भी गुरु ज्ञान से , भक्ति से भरा रहे तो शक का शोर नहीं होगा… शक शोक की खायी में गिराता है..

बापूजी सैर करने जाते ..खेतो के रास्ते के साइड में कुवा था..उस में पानी नहीं था… कोई भी अनजान बेचारा हो तो जरुर गिरेगा
अँधेरे में ऐसा कुवा था…गिरनेवाला सुबह तक निकले नहीं.. ना करे नारायण लेकिन किसी का हाथ पैर टूट जाए तो मुसीबत
होती…बापूजी ने दूर देखा की एक सुखा बास पडा है… बोले की उस को लाये…बास लाया, खड्डे में डाला… वो भी अन्दर चला
गया.. दूर एक कटा हुआ पेड़ था उस को भी डाल दिया अन्दर..ज़रा घांस लटका दिया की रात के अँधेरे में कोई वहा से गुजरे तो
गिरने से बचे…किसी को भी गिराने से बचाए…कोई क्यों गिरे?.. ऐसा कई बार होता है..
बापूजी ने कैसी तितिक्षा सही गुरुद्वार पर…निचे से पहाड़ी पर जल लेकर जाना, पथरीली पहाड़ की मिटटी से बर्तन मांजते तो हथेलियों से खून बहेता, किसी को दिखे और सेवा चली ना जायेगी इसलिए पट्टी बाँध लेते…किसी को बताते नहीं.. अभी भी बापूजी की तपस्या के कई साक्षी बुजुर्ग है …मैं उन से मिला हूँ…. मेरी उन से चर्चा हुयी है… बापूजी ऐसी दिलो जान से सेवा करते और गुरूजी का पूर्ण आशीर्वाद पाते हुए जिन्हों ने देखा ऐसे बुजुर्गो से मैं मिला हूँ..

जब गांधीधाम में सत्संग था तो एक रात साढ़े नौ बजे के समय मैं आदिपुर गया था… वहाँ अपने दादा गुरूजी की समाधि है… उधर पूजा करनेवाले थे..उन्हों ने बापूजी और दादा गुरूजी की तस्बीर भी दिखाई.. बोले, बहोत पुरानी ये तस्बीर यहाँ पड़ी है, आप ले जाओ… मैं अपने साथ ले आया था आदिपुर से..

सदगुरु के सिवा आत्म साक्षात्कर करना ये बात ऐसी है की कोई गंगाजी के किनारे बैठा और रेती मुठ्ठी भरकर गंगा में डाल रहा है..बोले, ‘गंगाजी पर पुल बनाना चाहता हूँ’ ऐसी बात है ..सदगुरु के बिना आत्म साक्षात्कार करना ऐसी ही बात है.. श्वासों का खजाना बहे जाएगा.. कुछ भी नहीं मिलेगा.. टालते रहेने की आदत पड गयी …जप ध्यान को टालते रहे तो सोचो की ऐसे लोग अपने शुभ को भी टालते रहेते…

बुध्द पर किसी ने थूक भी दिया..बुध्द ने मुंह साफ कर लिया… बोले, ‘मित्र कुछ कहेना चाहते हो?’ बुध्द के शिष्य हैरान हो
गए! बोले उस ने थूक दिया और आप उस को मित्र बोलते?…बुध्द बोले, ‘वो कुछ कहेना चाहता है, लेकिन बोलने में असमर्थ है..इसलिए
थूका ..’
…ऐसा अपना ह्रदय करूणा से भर जाए..हम दूसरो की तरफ आनंद की तरंगो को भेजे… ४ दिन का जीवन है…क्या पता कब जाना
पड़े? दूसरो की तरफ सुख को भेजे, और नहीं भेज सकते तो कम से कम दुखी तो ना ही करे..

कैसी भी परिस्थिति आये, मन में प्रमोदिता रहे…आनंद का अव-रोध और विषाद का भाव ना हो..सुकरात को जहर दिया जा रहा
था, और सुकरात हंस रहे थे… मीरा को जहर की प्याली दी गयी थी, और मीरा हंस रही थी..प्रल्हाद को जहर मिलाये हुए भोजन
की थाली दी गयी और प्रल्हाद हंस रहा था…
हम वो हिस्सा देखे जो प्रकाशित है… वो हिस्सा ना देखे जो अन्धकार से भरा है…
जैसे कोई बोले, मेरा मित्र बांसुरी बहोत अच्छी बजाता है…
तो दूसरा बोले, ‘वो तो अकेले में लड़की से बाते करता रहेता’..तो ये अँधेरा देखना है..
किसी के बारे में बुरा ही कहे, दोष ही देखे ये अन्धकार देखने जैसा है..
लेकिन अच्छा कहे ये उजाला देखना है…
.. दुःख और विषाद सब से बड़ा भार है…

दूकान का काम ठीक से नहीं चलता…कर्जा है या आर्थिक परेशानी है तो मंगलवार को ताम्बे की थाली में केसर से त्रिभुज बनाए..
ॐ मंगलाय नमः..ॐ ऋणहर्त्रे नमः
ये मन्त्र बोले..त्रिभुज बनाए केसर में थोडा पानी मिलाकर उस से ताम्बे के थाली में त्रिभुज बनाए…उस की पूजा करे और धुप दीप दिखाकर मन्त्र बोले..मंगलवार को बिना नमक का भोजन करे … दुःख और विषाद का भार अपने पर से उतार फेंके…


(पंडाल में सभी को आश्रम में बना गुलाब का शरबत दिया जा रहा है..)..पीनेवाले ध्यान रखे की चन्द्र स्वर( left nostril- बाया
नथुना) चलता हो तो कोई भी पेय पीना लाभ करता है ..लेकिन सूर्य स्वर( right nostril – दाया नथुना) चलता हो तो पेय पीना
नहीं चाहिए, दाहे नाक को बंद कर बाहे से २/४ श्वास ले तो चन्द्र स्वर चालू हो जाएगा…फिर पिए.. इस से स्वास्थ्य अच्छा
रहेता… शरीर मजबूत रहेता है ..



कृतज्ञता चौथी बात..
गुरुचरणों में हमें लानेवाले ईश्वर के प्रति कृतज्ञता , हमारे शरीर में ७५% जल तत्व है तो समुद्र के प्रति कृतज्ञता ..हमारे
शरीर का अग्नि तत्व है जिस से खाना हजम होता,क्रिया कलाप होते..वो सूर्य का हिस्सा है तो सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता हो..हवाए
हमारे प्राणों को चलाती इसलिए वायुदेव के प्रति कृतज्ञता हो…जिस धरती हमारा भार उठाती उस के प्रति कृतज्ञता हो..गुरुदेव
हमारी अध्यात्मिक उन्नति करते , नश्वर से आसक्ति छुडाते, शाश्वत से प्रीति बढाते, शान्ति बढाते उन के प्रति कृतज्ञता हो..
ईश्वर और गुरु के प्रति कृतज्ञता इस से भावो की शुध्दी होती है… शरीर शुध्दी सब करते..शरीर शुध्दी से भी विचार शुध्दी और भाव शुध्दी ज्यादा
महत्त्व पूर्ण है …
तो ये ४ बाते : मैत्री, करूणा, प्रमोदिता और कृतज्ञता हमारे जीवन में होनी चाहिए…इन की उपेक्षा करते कोई तो गुरु के बिना
सबेरा नहीं होगा अँधेरा घना बना रहेगा..अपने भीतर मोह का अन्धेरा बना रहेगा…. सच्चे सदगुरु होंगे जीवन में तो ही सही
अर्थ में प्रभात होगी जो चाहते मेरे जीवन में सबेरा हो….

मोह निशा सब सोवन हारा
देखत सपन अनेक प्रकारा


भक्त में ये ४ आस्रव नहीं होने चाहिए..बुध्द के शिष्य एकदान ये ४ आस्रव से रहीत थे..
१)कामास्रव..
२)भवास्रव
३)दृश्यास्रव
४)अविद्यास्रव
कामास्त्रव माने काम की वासनाए नहीं थी..
भावास्त्रव माने कुछ लोग सोचते की मरू तो स्वर्ग मिले..अच्छी जगह जाऊ ये भवास्रव नहीं था..
दृश्यास्रव अमुक वर्ण का हूँ आदि नहीं था..
अविद्यास्रव माने ‘मैं ‘ का अहम् नहीं था.. स्मृति नहीं थी..
इन ४ से रहित थे एकदान … ऐसे ऊँची साधना के धनि थे… एकदम ऊँची सोच थी.. ..ऐसे एकदान आत्म ज्ञान की बड़ी सूक्ष्म बात बताते… देवता भी सूक्ष्म रूप में उन की वाणी सुनने आते…जब आत्मज्ञानी महापुरुष सत्संग करते तो जो पंडाल में दिखाई देते उतने ही नहीं होते सुननेवाले, कई दैवी शक्तियां भी उन की वाणी सुनते है.. वशिष्ट जी की वाणी सुनने को देव भी आते थे ऐसा रामायण में वर्णन है….तो एकदान जी महाराज का सत्संग सुनाने को दैवी शक्तिया आती.. जंगल ‘साधो साधो’ की ध्वनी से गूंज उठता.. उन के यहाँ २ नौजवान साधू आये..बढ़िया जटाये , प्रभावशाली व्यक्तित्व! ..कोई दुसरे को प्रभावित करने में लगते और कोई दूसरो को प्रकाशित करने में ही मानते .. एकदान जी महाराज ने उन २ साधुओ का स्वागत किया..आईये महाराज, बिराजो.. उन को ऊँचे आसन पे बिठाया ..एकदान तो
बड़े ही विनम्र महाराज थे..बैठ गए निचे..बोले, महाराज कुछ ज्ञान अमृत दे के जाईये…यहाँ सूक्ष्म जगत के देवता भी आते है सत्संग सुनाने को..
उन २ नौजवान साधुओ ने सोचा की महाराज जंगल में रहेने से मानसिक रूप से विकृत हो गया है..यहाँ तो कोई देवता दीखता तो नहीं
है नहीं.. महाराज भी कैसी काल्पनिक खयालो में गिरे रहेते…

बड़े बुजुर्गो को देखकर जो लोग मजाक उड़ाते वो बहोत बुरा करते…बड़े
बुजुर्गो का आदर होना चाहिए.. ये व्यवहार की शालीनता है..

सत्संग में या खाने के लाइन में कोई बुजुर्ग व्यक्ति खड़े हो तो उन को जवान आदमी मदद कर दे.. ‘मेरे जगह पे आप आ जाओ
माताजी/दादा’ ..उन को पहेले मोका दे.. ‘आओ दादा’ ..बड़ो का आदर, इज्जत करना बहोत अच्छी बात है ..इस से आयु बढती, विद्या, यश और
बल बढ़ता है ..

तो एकदान जी महाराज के आश्रम में २ जवान साधुओ ने ज्ञान सुनाया…साहित्यिक शब्द थे, सूत्रात्मक ..प्राश मिलाकर बोलते थे..
पांडित्य छलक रहा था उन के बोलने से… सब ने सूना..शिष्य तो राजी हो गए की बहोत अच्छे बोलते है.. एकदान महाराज ने भी उन की
सराहना की..बोले, आप इतना अच्छा बोले लेकिन आज देवता ‘साधो साधो’ बोले नहीं, क्या बात है..विद्वान बुजुर्ग के बात पर हँसे.. यहाँ
कोई है ही नहीं तो कहाँ से आवाज आएगी..दोनों साधू बोले, ‘आप भी कुछ सुनाओ’ दोनों साधू सोचे की देखे इन के बोलने के बाद कोई
‘साधो साधो’ की आवाज आती है क्या?…एकदान महाराज तो बड़े ही वीत रागी तपस्वी थे..सार गर्भित वाणी, अनुभूति प्रचुर वाणी
बोले..जैसे ही उन का सत्संग पूरा हुआ, सभी देवता लोग साधो साधो बोल पड़े! देवताओ की आवाज गूंज पड़ी जंगल में… उन बुजुर्ग संतो के सत्संग में देवता भी सूक्ष्म रूप से आते थे..
वो २ नौजवान साधू फिर भी बोल रहे थे, लगता है ये ही नहीं केवल , देवता भी पागल है जो इन की बाते समझ में आये, हमारी नहीं आती…’ इन को अपनी विद्वत्ता का कितना घमंड है! ..शिक्षित व्यक्ति दीक्षित ना हो तो उस का ऐसा ही हाल होता है..सूझ बुझ उलटी हो जाती है..नेत्र होते हुए भी ऐसे लोग नेत्र हीन है..
ब्रम्हज्ञानी की सेवा अनुष्टान में सही अर्थ से दृष्टी मिलती है, लेकिन सदगुरु के बिना नेत्रहीनपना बहोत गहरा होगा… केवल ज्ञान नहीं, तप में तपना, तितिक्षा सहेन करना भी जरुरी है…जैसे सोना आग में तप कर सोने के दोष जल जाते… ऐसे गुरु भक्ति से सभी आस्रव क्षीण हो जाते…

अब मध्यान्ह के ठीक १२ बजे है.. भगवान श्रीराम जी के अवतरण की बेला है..

श्री रामचंद्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणं,
नवकंज लोचन, कंज मुख कर, कंज पद कन्ज्जरुनाम,
कंद्रप अगणित अमित छवि, नवनील नीरद सुन्दरम ,
पटपीत मानहु तर्हित रूचि सूचि नौमी जनक सुता वरं.
श्री रामचंद्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणं,
भज दीनबंधु दिनेश दानव, दैत्य वंश निकन्दनम,
रघुनंद आनंदकंद कौशल्चंद्र दशरथ नंदनम.
श्री रामचंद्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणं
सर मुकुट कुंडल तिलक करू उदार अंग विभूषणम ,
आजानुभुज शर चाप धर संग्रामजित खर्दुशणम .
श्री रामचंद्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणं,
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं,
मम हृदय कंज निवास कुरु कामादि खल दल गंजनं.
श्री रामचंद्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणं,
हरण भव भय दारुणं, श्री राम.

श्रीराम जी का मुख और चरण कमल जैसा है..कमल कोमल और अ-संगता का प्रतिक है..कमल पित्त शामक भी होता है ..
कमल की तरह दूसरो का ताप दूर कर दे और अ-संग रहेना सीखे.

ॐ शान्ति

सदगुरुदेव जी भगवान की जय हो !!!!!

गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे….