8.4.10

सत्य की जीत- श्री सुरेशानंदजी


19 मार्च 2010; इंदौर चेटीचंड शिबिर सत्संग
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श्री सुरेश महाराजजी की गुरूभाक्तिमय अमृतवाणी

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सदगुरुदेव के बारे में चैनल वालो ने और कु-प्रचार वालो ने कितनी अफवाएं उडाई, लेकिन जीत सदा सत्य की होती है… सत्य मेव जयते..सत्संगियो की भीड़ बढाती ही जा रही है…बापूजी बोलते की हम अपनी बुध्दी को ऐसी बनाए की अनुकूल और प्रतिकूल स्थिति में बिगड़े नहीं..
चाहे कैसी भी परिस्थिति आये, बुध्दी अपना सौन्दर्य ना खोये..
बुध्दी में समता, धीरता की लक्ष्मी है अपनी बुध्दी में, वो खोये नहीं..

आज कई टीवी चनेलो पर बाबा रामदेव जी का इंटरव्यू दिखा रहे थे, किसी ने मुझे बताया…तो उन से पूछा गया की बापूजी के बारे में ऐसा ऐसा बोला जाता है..तो बाबा रामदेव जी ने प्रश्नकर्ता को सुनाया की, पहेले तो आप पूज्य आसाराम जी बापू का नाम आदर से लेना सीखो.. पूज्य बापूजी की जीवनी देखो.. बढती प्रतिष्ठा , लोकप्रियता के कारण कुप्रचार हो रहा है..लेकिन तुम न्यायाधीश कैसे बन गए…बाबा रामदेवजी ने ये ही उत्तर दिया…प्रणाम है ऐसे रूशी को…सत्य की जीत होती ही है…कितनी भीड़ है सत्संगियों की…कल्पना और द्वेष के आधार पर लगे आरोप कभी सिध्द नहीं होते..आरोप लगानेवालो के बुध्दी में द्वेष भरा होता है..थोड़ा तो इंसानियत रखो..मनुष्य को बोलना पड़ता है मनुष्य बनने के लिए, कुत्ते को नहीं..

..एक मनुष्य को बहोत प्यास लगी तो एक सेठ के पास पानी मांग रहा था…..
सेठ बोला, ‘आदमी आयेगा वो पिला देगा..’
थोड़ी देर इंतज़ार किया..आदमी नहीं आया तो उस आदमी को बहोत प्यास लगी थी ..वो बोला,
‘सेठ जी थोड़ी देर के लिए आप ही आदमी बन जाओ ना..’
रावण सीताजी का अपहरण कर के जा रहा था तो जटायु ने कितनी कोशिश की सीता मैय्या की रक्षा करने की..इस देश का मनुष्य कम से कम जटायु जैसी समझ रखनेवाला तो होना ही चाहिए..संतो का आदर ना कर सको तो कोई बात नहीं, लेकिन अनादर तो ना करे…


….सतत, रोज, सदा जप करे.. सो कर उठते ही जप करे..जागरूक हो कर करे..संसार और शरीर से सम्बन्ध मान कर जप ना करे..जाग कर करे..
खाना छोड़ते है क्या कभी? एकादशी को भी फलाहार की नयी नयी आईटेम खोज लेते लोग.. :) खाना नहीं छोड़ते ऐसे जप भी ना छोड़े..
भीष्म पितामह ने युधिष्टिर को कहा है की नाम जप करना ये सब से श्रेष्ठ धर्म है ..जो हमारे कानो को गलत सुनने से रोके, वो श्रेष्ठ धर्म है… जो हम को धारण करे, वो श्रेष्ठ धर्म है….जो हमारे आँखों को गलत देखने से रोके वो श्रेष्ठ धर्म है.. जो हमारे हाथो को गलत काम करने से रोके वो श्रेष्ठ धर्म है…इस धर्म का पालन करेंगे, ऐसी आतंरिक स्थिति होगी…. तभी ये होगा..बाहर से थोपा हुआ प्रतिबन्ध स्थायी नहीं होता…भीतर से आना चाहिए… ये सब से श्रेष्ठ धर्म है..ऐसी आतंरिक स्थिति कब होगी? नाम जप से होगी और गुरू का सत्संग सुनने से होगी..
उपदेश देनेवाले कई होंगे अ-ग्यानी गुरू तो…लेकिन उन का संग संकीर्णता में उलझाए रखेगा…. ब्रम्ह-वेत्ता गुरु साधक को आकाश का खुला पंछी बनाता है…. संकीर्णता के दायरे से छुड़ाता है..सच्ची स्वतंत्र-ता और सफल-ता दिलाते है…
पूज्य बापूजी का ज्ञान हमें समता की सिख देता है..गीता में बार बार आता है की समता रूपी धरम का थोडासा भी पालन करो तो महान भय से छुट जायेंगे..
आज कल पढ़े लिखे मनुष्य पक्षी बन जाते.. सुख के पक्षपाती , अनुकूलता के पक्षपाती बनना ही पक्षी बनना है… तुम मनुष्य हो; पक्षी क्यों बनते हो?.. जो जो अपने अनुकूल है, वो वो अछे लगना ही पक्षी बनना है…
किसी ने अप-शब्द कहे अपमान कर दिया और बदले में हम ने भी उस को अप-शब्द बोल दिया तो समझो समझदारी ने आप का साथ छोड़ दिया..
सदगुरुदेव के बारे में चैनल वालो ने और कु-प्रचार वालो ने कितनी अफवाए उडाई.. लेकिन जीत सदा सत्य की होती है… सत्य मेव जयते..सत्संगियो की भीड़ बढाती ही जा रही है….बापूजी बोलते की हम अपनी बुध्दी को ऐसी बनाए की अनुकूल और प्रतिकूल स्थिति में बिगड़े नहीं..
चाहे कैसी भी परिस्थिति आये, बुध्दी अपना सौन्दर्य ना खोये..
बुध्दी में समता, धीरता की लक्ष्मी है अपनी बुध्दी में, वो खोये नहीं..
अधिक धन, अधिक वासना ये कला नहीं जीवन की…. जीवन की सच्ची कला भक्ति में है..नाम जप में है..
अंतर्मुख रहे..बहिर्मुख उतना ही ठीक की दूकान गए, स्कूल गए, कॉलेज में गए…जा के आये फिर अंतर्मुख में जाए…क्यों की वो ही सच्चा साथ देगा….

साधक जितना शान्ति का सम्पादन करेगा, उतना सामर्थ्य आयेगा..उतना साधन उंचा होगा..और साधन भक्ति ऊँची होगी तो पूरण गुरू की पूरण कृपा भी पा सकते है..

जो बापू के सत्संग में आते है वो तो गाते है …
दिल में गुरू के ज्ञान को लेकर ले चले
हम आज अपनी मुक्ति का आधार ले चले
…मुक्ति मरने के बाद की नहीं..जो मर गए वो तो कुछ सन्देश भेजते नहीं की हम मुक्त हो गए या नरक में है..बापूजी के साधको को जीते जी मुक्ति मिलती है…
एक होती है मौत और एक होती है मुक्ति …. शरीर में प्राणों के रहेते हुए वासना/इच्छा निकल जाए तो इस का नाम मुक्ति है..और इच्छाएं मिटी नहीं है लेकिन प्राण चले जाए तो इस का नाम मृत्यु है..
अभी चैत्र नवरात्रियाँ चल रही है…नवरात्री के दिनों में सत्संग मिलना बड़ा पुण्यदायी है..कोई भी जीव जनम लेता तो केवल अपना पेट नहीं लाता अपना हाथ और पैर और दिमाग भी साथ लेकर आता है..लेकिन कुछ लोग गर्भपात कराते ..माता कैसे राजी होगी? गर्भ की कन्या को तो मार देते और नवरात्री में कन्याओं को खाना खिलाते..कैसे अन्नपूर्णा माँ, दुर्गा माँ राजी होगी बताओ…
एक सज्जन को ७ बेटियाँ थी..एक की भी शादी नहीं हुयी थी..लेकिन हिम्मत नहीं हारा..
हिम्मत ना हारिये प्रभु ना बिसारिये..
हसते मुस्कुराते हुए जिंदगी बिताइये
हिम्मत ना हार, हिम्मत ना हार
बापू तेरे साथ प्यारे हिम्मत ना हार…
सत्संग से अच्छी बाते सुनने को मिलती है..इसलिए कई विद्यार्थी सत्संग सुनते..सारस्वत्य मन्त्र लेते और जप करते है..व्यक्ति अगर ठान ले ना की मुझे शास्र और गुरू की दिशा में ही आगे चलना है तो उस को ईश्वर खूब मदद करते है..
कुछ लोग पड़ोस में रहेते लेकिन सत्संग में नहीं आते..बोलते हम तो बिझी है…तू बड़ा बिझी है तो भगवान तेरे लिए कैसे होंगे इझी ?
बोलते हम बड़े व्यस्त है… ऐसे व्यस्त तो तनाव-ग्रस्त भी बहोत होते.

ये तन ना साथ देगा
ये धन ना साथ देगा
सद् गुरू बिन जहां में
कोई ना साथ देगा
धन माल खूब जोड़ा
दिया दान ना कभी भी
ना ही पुण्य ही कमाया
ना समय संपत्ति अच्छे काम में लगाया, ना समझ और सामर्थ्य का सदुपयोग किया ..बचपन खेलकूद में और जवानी अभिमान में खोयी…
बस खेल में बिताया
बचपन वो प्यारा प्यारा
यौवन के मद में खोकर
सारा समय गवाया
जिस तन को तू सवारा
सब देखते रहेंगे
अग्नि में वो जलेगा
ना रूप साथ देगा
ना रंग साथ देगा
सद् गुरू बिन जहां में
कोई ना साथ देगा
क्लास में बच्चे पढ़ते..सब बच्चे फर्स्ट आयेंगे संभव नहीं… लेकिन गुरू की क्लास ऐसी है की सब साक्षात्कार कर सकते है..सब फर्स्ट आ सकते है!


वासना की अ-दृश्य जंजीरो से बंधा हुआ आदमी कभी स्वतंत्र नहीं होगा..गुरु की दीक्षा शिक्षा पाकर, पूरण गुरू की पूरण कृपा पाकर उन जंजीरो को मनुष्य तोड़ सकता है..
दृढ़ साधना से वासना की अ-दृश्य जंजीरो को भक्त तोड़ डालता है..
क्यों? ..क्यों की..
एक तुम ही आधार सद् गुरू
एक तुम ही आधार
भगवान राम विश्वामित्र जी के साथ गए ताड़का आई यग्य का विध्वंस करने के लिए… विध्वंस के पहेले ही भगवान राम ने एक ही तीर से ताडका के प्राण हर लिए..राम जी ने सिख दी है की गुरू का एक ही इशारा पाकर साधक सभी जगह से अपनी आसक्ति यान तोड़ सकते हो..
जब तक मिलो ना तुम जीवन में
शान्ति कहा मिल सकती मन में
खोज फिरे संसार सदगुरू
एक तुम ही आधार सदगुरू
एक तुम ही आधार…

हम आये है शरण तुम्हारी
अब उध्दार करो दुःख हारी
सुन लो मेरी पुकार सदगुरू
एक तुम ही आधार सदगुरू
एक तुम ही आधार…

रहेंगे गुरुशरण में सजदा करेंगे…
गुरू जो कहे हम वो करते रहेंगे..
हे प्रभो तुम ही विविध रूपों से – २
हमें बचाते दुःख कुपो से
ऐसे परम उदार सदगुरू
एक तुम ही आधार सदगुरू
एक तुम ही आधार….

तू तो जीकर कर सदगुरू का!!.. तेरी फिकर ईश्वर करेगा..!!
सदगुरू ओ मेरे सदगुरूजी
तारण हारे सब के वो
मेरे सदगुरूजी …
बाई मीरा जैसी हम को गुरुभक्ति देना
शबरी जैसी सेवा निष्ठा देना
चरणों में रखना गुरूवर दूर नहीं करना
चरणों में रखना माने,चरण पकड़ना नहीं.. सच्चा भक्त वो है जो दिए की शिखा की तरह जीवन में उंचा उठता है, भगवान और गुरू की कृपा का पात्र बन जाता है वो सच्चा भक्त है….सच्ची उन्नति वो ही है जो सत्संगी सत्संग से प्राप्त कर लेते है..सत्संग में कुछ भी ना करो ना तो भी उन्नति होती है और कु-संग में कुछ भी ना करो तो भी पतन होता है..


एक साधे सब सधे … एक में निष्ठा रखे…सच्चे साथी ईश्वर है, ईश्वर प्राप्त गुरु है..बाकी तो कहेनेभर को कहे ले ये मेरा दोस्त ..ये मेरा फलाना..आज कल तो दोस्त को दोस्त भी कहेना कठिन है, कैसी कैसी सलाह देते है…एक आदमी को सर्दी थी, कितनी दवाई लिया लेकिन सर्दी ठीक नहीं हो रही थी..तो एक दोस्त ने कहा की, ‘तू सुबह शाम २-२ घूंट शराब लो तेरी सर्दी चली जायेगी!’
‘शराब पिने से सर्दी चली जायेगी?’
‘मेरा दूकान चला गया, मकान चला गया, प्रोपर्टी चली गयी.. तो तेरी सर्दी नहीं चली जायेगी क्या?’ :)

भक्त का ह्रदय तो भगवान का मंदिर है.. बाहर से मंदिर में ना भी जाए… झूठी आस्तिक-ता से सच्ची नास्तिकता अच्छी है..
एक आदमी १२ साल से पूजा करता था..एक दिन घर में कोई नहीं था.कन्या भी स्कूल में गयी थी..कुत्ता आया और रसोई घर में घुसाने लगा.. तो उस आदमी ने पूजा से उठ तो नहीं सकता था इसलिए १२ साल से जो शालिग्राम पूजा में रखा था वो ही शालिग्राम उठा के कुत्ते को दे मारा!और बोलता है, ‘आज काम आया तू!’ ..ऐसी पूजा करनेवाले आदमी को आप क्या कहोगे? आस्तिक या नास्तिक?
कुछ लोग भगवान को तो मानते लेकिन शिकायते सुनाने के लिए… गहेरी श्रध्दा होती तो परिणाम पीछे पीछे आता है..
गिरी हुयी मानसिकता का शिकार ना हो..
एक युवक संत के पास गया..बोला, ‘मैं गरीब हूँ, मेरा कोई नहीं..’
संत बोले, ‘मुझे तो तेरे भीतर छिपा खजाना दिखाई दे रहा है!’
युवक बोला, ‘लेकिन मेरे पास कोई खजाना नहीं है..
‘है.. चल राजा के पास..राजा खरीद लेगा..बहोत कुछ मिलेगा तुझे..’
युवक समझा नहीं..बोला, ‘क्या कहेना चाहते है?’
संत बोले, पहेले तू बता की जो तुम्हारे पास है, वो तुम बेचना चाहता या नहीं ये बोल..’
युवक बोला, ‘क्या है मेरे पास?’
‘२ आँखे है.. ५० हजार एक का तो २ आँखों का एक लाख रुपिया …ह्रदय है, इस का १ लाख रुपिया..किडनी, लीवर ये सब का राजा लाख लाख दे देगा…’ संत बोले..
युवक को लगा संत पागल है..
संत बोले, ‘पागल मैं नहीं, तुम पागल है…जब तुम्हे तुम्हारे पास जो है वो इतना अनमोल लगता है की लाखों में भी नहीं बेचना चाहते …तो झूठ में निर्धन क्यों बने फिरते हो?.. जो खजाना तुम्हारे अन्दर भरा हुआ है, वो काम में नहीं आता तो ऐसा खजाना खाली है..ईश्वर के दिए हुए इस खजानों का सत-उपयोग कर.. तू इन आँखों से सदगुरू के दर्शन कर… कान से सत्संग की अमृतवाणी सुन.. मानसिकता को ऊँची कर…अन्दर की ऊँचाई को छू ले.. बाहर का छिछरापन दूर कर दे…अन्दर की गहेरायियों को पाओ.. .. गुरू की दीक्षा से उन गहेरायियों में गोता लगाओ… फिर जीवन कैसा होता है देख!!’

हर व्यक्ति में ईश्वर का खजाना भरा है, लेकिन उस खजाने को खोजना और खोदना तो पडेगा…. हर व्यक्ति का अंत कैसे हो ये उस व्यक्ति के ही हाथ में है..मृत्यु और मुक्ति दोनों जीवन का अंत हो सकता है…आप को सोचना है की आप को क्या पाना है..
अ-भाव का भास् ही सब बड़ा नशा है… महत्वाकांक्षा ही सब से मादक नशा है… उस का नशा सत्संग से उतर जाता है… हीनता नहीं रहेती और महत्वाकांक्षा का भाव उतर जाए..ये बापूजी के सत्संग का प्रभाव है..क्यों की बापूजी ने ऐसी तपस्या की है ..

  • दक्षिण में सीर कर के सोने से घर में लक्ष्मी आती है, आयु बढती है, स्वास्थ्य अच्छा रहेता है ऐसा विष्णु पुराण में लिखा है…
  • पूरब दिशा में सीर कर के सोने से विद्या प्राप्ति के क्षेत्र में अपार सफलता मिलती है.
  • जिन के घर अ-काल मृत्यु बार बार होती है तो एक बड़ा कटोरा ले …शिव मंदिर में जैसे नंदी के आगे कछुआ होता ऐसा एक छोटा मेटल का कछुआ कटोरे में पानी भर के उस में रख दे..

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम

उर्वारु कमिव बन्धनात मृत्योर मोक्षीय मामृतात
ये महामृत्युन्जय मन्त्र बोलकर उत्तर दिशा में वो कटोरा रख दे..
हो सके तो ये मन्त्र भी रोज बोले :

मृत्युंजय महादेव त्राहि माम शरणा गतम
जन्म मृत्यु ज़रा व्याधि पीड़ित कर्म बंधने

हे मृत्युंजय महादेव हमारे घर के अ-काल मृत्यु की पीड़ा तू हर ले…

७ या ११ अमावस्या तक ऐसा करे..एक लोटा भर के सामने रखे, भगवत गीता के 7 वे अध्याय का पाठ करे..फिर वो लोटा सूर्य भगवान के सामने ले जाए, सूर्य भगवान को खुली आँख नहीं देखे…बस सामने जाए… प्रार्थना करे की, ‘हे सूर्यदेव यमराज आप के बेटे है..हमारे कुटुंब में पहेले जो कोई गुजर गए उस को शान्ति मिले.. इस के लिए गीता पाठ का पुण्य अर्पण करते है…अब हमारे घर में ऐसी अ-काल मृत्यु ना हो… सब की आयु लम्बी हो’ ..ऐसी प्रार्थना कर के जल चढ़ा दे…

तो किसी की अ-काल मृत्यु नहीं होगी उस परिवार में…


ॐ शांति।

सदगुरुदेव जी भगवान की जय हो !!!!!

गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे....

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