17मार्च 2010; चेटीचंड अहमदाबाद सत्संग समाचार
चेटीचंड के शुभ पर्व पर अहमदाबाद आश्रम के पावन भूमि पर सदगुरुदेव जी भगवान के दर्शन और सत्संग का लाभ लेने दूर दूर से कई समितियाँ और भक्त-गण पहुंचे थे… टोपी पहेन के , चेटीचंड का स्वांग बना के सिन्धी भक्तो ने झूम झूम के भजन गाये……सदगुरुदेव जी भगवान ने ऐसा रूप बनाया की मानो साक्षात झुलेलाल भगवान ही अवतरित हुए है …
नन्ही मुन्नी निरागस कन्याओं ने सिन्धी भजनों पर नृत्य किया… परम कारुण्य मूर्ति पूज्य बापूजी बोले,
“युवतियों को सब के सामने नृत्य करना हितकारी नहीं लेकिन ये नन्ही मुन्नी निर्दोष बच्चियां है इसलिए सम्मति दी.. रामकृष्ण परमहंस के सामने कोई कन्या ले आये नृत्य दिखाने …बड़ी कन्या अथवा युवतियों को सब के सामने नृत्य कराने से निर्लज्जता का, विकारों का दोष आता है..”
गुरुपुत्र श्री नारायण साईंजी की उपस्थिति में आज इंदौर में भव्य कीर्तन यात्रा का आयोजन हुआ था..19 मार्च 2010 से 3 दिन की चेटीचंड शिबिर इंदौर में है..
अहमदाबाद आश्रम चेटीचंड का उत्सव मनाया जा रहा है..
झूले झूले झूले झुलेलाल…
आयो लाल झुलेलाल…
लाल उदेरो रत्नाणी करी भलायूं भाल….
आयो लाल झुलेलाल. …
असीं निमाणा ऐब न आणा ..
दूला तूहेंजे दर तें वेकाणा करीं भलायूं भाल…
आयो लाल झुलेलाल….
झूले झूले झूले झुलेलाल
चेटी चंड जू लाख लाख वधियु !!!!!
सभी को नूतन वर्ष की बधाई!
आरोग्य कुंजियाँ
इन दिनों में गुड और शहेद की बनी हुयी गोलियां चूसने से स्वास्थ्य सम्बन्धी बहोत फायदे होते है… हरड फांक लो अथवा..
हरड और गुड का मिश्रण .. हरड और शहेद अथवा हरड और गुड की गोलियां बना ले.. २०० ग्राम गुड की एक तार वाली चासनी बना ले..उस में २०० ग्राम हरड पावडर मिक्स कर दे…एक-एक ग्राम की गोलियां बना दो..घर का हर कोई मेम्बर ये गोली चूस सकता है… शरीर में पड़े हुए रोग के कण , पुराना जहर निकलता है… इस कण से आगे चल के बीमारियाँ होती है….तो ये रोग के कण निकल जाते..
ये तो हो गया शरीर ठीक करने के लिए… …मेरा मकान ठीक हो जाए….मेरी नोकरी ठीक हो जाए…मेरा कर्जा ठीक हो जाए..मेरा दूकान ठीक हो जाए..मेरा बेटा ठीक हो जाए…ये ठीक हो जाए,वो ठीक हो जायेवालो ये भी समझ लो की रावण की लंका, हिरण्यकश्यपू का हिरण्यपुर ठीक नहीं रहा… तो ये पक्का समझ लो की ठीक करना ही सबकुछ नहीं …जो कभी बे-ठीक नहीं होता उस आत्मा में टिकना, उस को आत्म-स्वरुप मानना…तो सब कुछ अपने आप ही ठीक हो जाता है…
अमृत वचन
आप सब शिव जी के वचन बोलना… जो शिव जी के जिव्हा से उच्चारण हुआ है वो तुम्हारी जिव्हा से उच्चारित हो…
धन्यो माता पिता धन्यो
गोत्रं धन्योम कुलोदभव l
धन्याच वसुधा देवी
यत्र स्यात गुरु भक्तता ll
शिव जी कहेते उस की माता धन्य है, पिता धन्य है, कुल और गोत्र धन्य है, उस के गोत्र में उत्पन्न होनेवाले भी धन्य है,वो जहां रहेते वो धरती भी धन्यता का अनुभव करती
है जिन के ह्रदय में गुरुभक्ति है..
जीत तीत वसित तू..
भगवान अंतर्यामी है… वो ही अंतर्यामी झुलेलाल बन के प्रगट होते …एकनाथ के घर शिखंडी होकर वो ही १२ साल सेवा करते…
त्रिलोक दास सेठ के घर में धन सामग्री तो थी… साधू संतो का आना जाना स्वागत भी होता..लेकिन नोकर नहीं मिल रहा था..तो एक दिन पूजा करते करते त्रिलोक सेठ अन्तर्यामी भगवान को बोला की मुझे एक नोकर मिल जाए ..तो साधू संतो का अच्छी तरह से स्वागत करूंगा….
तो सच में एक नोकर आ गया..त्रिलोक दास सेठ बोला, ‘कौन हो तुम?क्या नाम है तुम्हारा?’
बोला, ‘अन्तर्यामी है’
‘क्या काम करोगे?’
बोला, ‘जो भी काम बोलोगे अच्छी तरह से करूंगा… भरपेट भोजन बना के सब को खिलाउंगा…’
’सेवा का दाम कितना लोगे?’
बोला, ‘मै सब को खिलाउंगा लेकिन अपने लिए मैं कभी नहीं भोजन लेता…मेरे लिए तो लोग करते है..त्रिलोक सेठ मुझे भोजन तो आप के घर के लोग देंगे… मै कितना भी खावु, कभी ये मन में भी नहीं लाये की इतना खा रहा है…ऐसा आप में से किसी ने सोचा तो मै उसी समय चला जाउंगा….
त्रिलोक दास सेठ बोला, ‘भगवान का दिया हुआ बहोत है..हम ऐसा नहीं सोचेंगे..’
भगवान मन ही मन मंद मंद मुस्कुरा रहे.. मेरे ही नाम की डंका मेरे ही सामने सूना रहा है…
बोला, ‘मेरे लिए मै ऐसा हूँ, वैसा हूँ ऐसा नहीं बोले..मै तो प्रीति से बंधता हूँ …’
त्रिलोक दास बोले, ‘नहीं बोलेंगे..’
अन्तर्यामी नोकर हो के त्रिलोक दास के घर में काम करते है… जो भी आते बड़े खुश होकर जाते…साधू संत भी प्रसन्न होते…एक दुसरे को बोलते की त्रिलोचन के यहाँ कैसा नोकर आया हम को क्या किस समय चाहिए वो देता है… गरम पानी की जरुरत है तो ला देता…खाना चाहिए..फल चाहिए..जो भी सोचते तुरंत लेकर हाजीर हो जाता है..नाम अन्तर्यामी है , लेकिन सचमुच में अन्तर्यामी लगता है..
..अंतर्यामी साधुओ को बहोत आनंद से खिलाता पिलाता …२०० की जगह और ५०० साधू आ गए तो उस को क्या जोर पड़े?
सब को उत्साह से खिलाता..
अन्तर्यामी के लिए तो सब एकाकाश… सूर्य के यहाँ से देखो तो सब एक जगह दिखेगा..कितना बड़ा सूरज है , लेकिन यहाँ से देखो तो इतना सा दिखता है..
विभु में बैठ के देखते तो जगत छोटा दीखता है….
ऐसे विभु व्याप्त अन्तर्यामी के लिए तो सबकुछ संभव था..
एक दिन सेठानी ने कही बोला की ये नोकर तो बहोत खाता… ऐसा बोलते ही अन्तर्यामी ने जान लिया और अंतर-धान हो गए…
सेठानी घर आई …सब घर छान मारा..अन्तर्यामी नोकर कही नहीं दिखाई नहीं दिया…सेवक अंतर्यामी कहा गए…. त्रिलोक दास जी आये ..बोले ये नोकर तो कभी कही जाता नहीं….
कहा गया… दिखता नहीं… अरे प्यारे… कहाँ गए? ओ मेरे आँखों के तारे..मेरे नोकर रूपी परमेश्वर कहा गए? लेकिन वो नहीं आया..
एक दिन बिता..दूसरा दिन हो गया… कोई खाए नहीं…त्रिलोक दास जी झटपटा रहा है…
तीसरे दिन की सुबह हुयी…त्रिलोक दास जी भगवान के सामने बैठ के रो रहे.. कैसे जिऊँगा तुम्हारे बिना… साधू लोग आयेंगे उन को कैसे प्रसन्न करूंगा…हे अन्तर्यामी…
इतने में आकाश-वाणी हुयी… ‘त्रिलोक दास …विव्हल मत हो…’
‘कौन बोल रहे?,
बोले, ‘मै अन्तर्यामी…सर्व व्याप्त ब्रम्ह बोल रहा हूँ.. जो सेवक के रूप में हूँ, स्वामी के ह्रदय में हूँ, यार के दिल में और दिलदारो के अन्दर भी मै ही हूँ…त्रिलोक दास अब दुःख ना करो…तुम प्रार्थना किया… ‘सदा तुम्हारे पूजा करते..कोई नोकर मिल जाए…तो तुम्हारे अन्दर जो अंतर-आत्मा का रूप है वो ही प्रगट हो गया… अब तुम आलंदी में ब्रम्हज्ञानी संत ज्ञानेश्वर है ..पूना के पास आलंदी है वहा जाओ और सत्संग सुनो..’
मै सब का अंतर-आत्मा हूँ.. सिन्धी भाई समुन्दर के किनारे एक टक निहारते तो झुलेलाल रूप में प्रगट हो जाते… वो ही हिरण्य कश्यपू के आगे नरसिंह रूप में प्रगट हो जाते…द्रौपदी के साडी में प्रवेश अवतार में प्रगट हो जाते…अभी बापू के रूप में बोल रहे और बेटो के रूप में सुन रहे है..!”
चलो तो चले राह तू, राहिब भी तू जीत तीत वसित तू..
आकाश में तारे चाँद भी तू जीत तीत वसित तू…
उस सर्व व्याप्त को जान लेना ही सार है…।ॐ शान्ति
सदगुरुदेव जी भगवान की जय हो !!!!!
गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे...
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