8.4.10

गुडी पाडवा -महा मुहूर्त सत्संग समाचार


Aayo laal Jhulelaal

सत्संग समाचार

परम पूज्य बापूजी आज सुबह (16March 2010 ) हरिद्वार में थे, शाम को अहमदाबाद के आश्रम में सत्संग अमृत वाणी से भक्तो निहाल कर रहे है…

चेटीचंड का ध्यान योग शिबिर इन्दोर में होगा …होली के बाद पटना (बिहार) , भागलपुर, बोकारो(झारखंड) , रांची में पूज्य बापूजी के पावन दर्शन और सत्संग अमृत से लाखो लाखो भक्त लाभान्वित हुए है..

२४ मार्च से ३० मार्च हरिद्वार में ७ दिन का ध्यान योग शिबिर है..

इस परम पुण्यदायी सत्संग में बापूजी कहेते है की निंदा,द्वेष, काम, क्रोध आदि विकारों से आदमी का मानसिक संतुलन और स्वास्थ्य बिगड़ता है ..विकारों के आवेगों से कैसे बचने का मार्गदर्शन आज के सत्संग अमृत में आप पायेंगे…


गीता वचन

गीता वचन

भगवत गीता का एक एक श्लोक रत्न है…एक रत्न भी जीवन में उतार ले तो मंगल हो जाए जीवन का..
Bhagavad Gita Shaloka in Sanskrit

भगवत गीता का ५ वे अध्याय का २३ वा श्लोक है….

“जिस साधक ने मनुष्य शरीर में शरीर का नाश होने से पहेले काम, क्रोध, लोभ , मोह आदि विकारी रोगों को मिटा दिया वो सफल जीवन जी लिया.. काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि वेगो को सहन करने में समर्थ हो जाता, इन से खींचा नहीं जाता, उस ने जीवन का फल पा लिया..वो ही योगी है..उस का आदर करना चाहिए.. जिस के जीवन का लक्ष ब्राम्ही स्थिति की तरफ ले जाना है..वो ही योगी है और वो ही सुखी है..”

अमृत वाणी

अमृत वाणी

उत्पन्न होने वाले विकारों के वेगो को कैसे झेले…जैसे समुद्र की लहेरो में खड़े है.. लहेरे आते , उतर जाते…आप डट के, संभल के खड़े रहेते.. ऐसे वेग आता, उतर जाता..आप सावधान है तो बच जाते…वेग आ कर चला जाता है…लेकिन जो वेगो में अपने भी लगते और अपने मंगल चाहनेवाले को भी अपने द्वेष के अनुसार चलाने लग जाते तो बड़ी भारी हानि हो जाती है..विकृति करते , जीवन गन्दा करते..मनुष्य को नीच योनी में ले जाते..

वेग स्वयं में कुछ महत्त्व नहीं रखते..लेकिन वेग को महत्त्व देते तब वेग तुम्हारा बहोत नुकसान करते.. जो वेग के समय शांत रहेते, सावधान रहेते, वो सुखी हो जाते..

पंडित नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू ने मदन मोहन मालवीय को कहा कि आप मुझे 100 गाली दो, मुझे क्रोध नहीं आयेगा..

मालवीय जी बोले, ‘मैं 100 गाली दूँ, तुम को वेग नहीं आये..लेकिन मैं अपना रक्त क्यों खराब करू?’

कैसा सुन्दर उत्तर दिया..

काम, क्रोध, भय, मोह, लोभ ये वेग है… वेग आते है… वेग के अनुसार कौनसा काम करे, कौन सा ना करे इस में तुम्हारी पुण्याई चाहिए..इच्छा हुयी, इच्छा के अनुसार कर्म करे की बुध्दी से सोच के कर्म करे? ..इच्छा के अनुसार मन करना चाहता है तो बुध्दी डूब जायेगी..गुरु भक्ति से बुध्दी को बलवान करे ..समता बढाने वाला जो काम करेंगे तो समता बढ़ेगी… अपना चाहा हुआ काम करेंगे तो बुध्दी और समता दब्बू हो जायेगी… धीरे धीरे दुर्बुध्दी होकर नीच योनी में चले जायेंगे… ४ दिन की जिंदगी को सम्भाला नहीं तो ८४ लाख योनी में ले जायेंगे..

प्रारब्ध वेग में जो होगा वो देर सबेर जरुर मिलेगा..बुध्दी को शास्त्र के अनुरूप बलवान बनाए.. वेग को सहन करे..अ-निति का भोग त्याग करे..अनुचित-उचित समझ लो…

इच्छा बोलेगी करो, बुध्दी बोलती उचित नहीं तो धीरे धीरे थोड़ा समय निकाल दो.. अपने को दुसरे काम में लगा दो तो वासना और द्वेष का वेग शांत होगा..

बुध्दी बोलती है करो, करने का वेग भी है, औचित्य भी है तो करो… लेकिन झटका मारोगे तो मस्तक को धक्का लगेगा..एक तरफ इच्छा खिंचती, बुध्दी नहीं साथ देती तो ऐसा कर्म अनुचित है… आवेग के समय धैर्य रखे..तो आवेग निकल जाएगा…आवेग में आदमी अंधा हो जाता..साधक को सावधान रहेना चाहिए..

दिव्य कथा

दिव्य कथा

एक राजा महाराज के पास गया..बोला, महाराज सब से बढ़िया समय कौन सा है?सब से बढ़िया आदमी कौन सा है?….महाराज बागबानी कर रहे थे.. बोले, ‘राजा तुम भी खुरपा लेके लग जाओ..फिर बताउंगा..’

..इतने में एक दौड़ता हुआ युवक आया.. उस को चोट लगी थी..महात्मा के चरणों में गिरा… महात्मा ने कहा राजा इस की मलमपट्टी करो..सेवा करो…राजा की सेवा देख कर युवक फुट फुट के रोया…
बोला, ‘इतने दयालु राजा मेरी सेवा कर रहे.. महात्मा की सेवा कर रहे…मैं तो ये सोचकर निकला था की मेरा भाई मर गया, राजे लोग को कोई दुःख नहीं है..मैं तो राजा को मारने के लिए कोशिश कर रहा था… किसी चीज से टकराकर गीर गया और चोट आई…राजा सब आप ने तो मेरी इतनी सेवा की… मैं अपराधी हूँ..मुझे दंड दो..’

राजा बोला, ‘तुम इतना अच्छा आदमी…तुम को दंड क्यों दूंगा..तुम को तो मैं तुम्हारे भाई की जगह अच्छी पोस्ट दूंगा…’

महात्मा बोले, ‘उत्तम काम वो ही है जो तुम कर रहे हो.. उत्तम समय वो ही है जो वर्तमान समय है… उत्तम व्यक्ति वो ही है जो तुम्हारे सामने है…

कौनसा काम उत्तम है? जो काम करते हो, वो ही उत्तम है समझते..उस को भगवान् का काम समझ के करते, कोई काम छोटा नहीं मानते तो करम योग हो गया!

कौनसा समय उत्तम है? जो समय है वो उत्तम है…जो बीत गया वो समय हाथ में नहीं, उस के बारे में सोचना व्यर्थ्य है… जो आयेगा उस का भरोसा नहीं…इसलिए वर्तमान का समय ही उत्तम समय मानो..

उत्तम आदमी कौसा है?कोई गरीब हो चाहे आमिर हो.. जो सामने है वो ही आदमी उत्तम है…

भगवान में श्रध्दा और जगत के प्रति तो विचार चाहिए..हम क्या करते की भगवान का विचार करते और जगत के प्रति श्रध्दा करते..भगवान ऐसे होंगे वैसे होंगे…भगवान तो अनंत है.. अगर भगवान् तुम्हारे विचार में आ जायेंगे तो अनंत कैसे होंगे?..भगवान में श्रध्दा और विश्वास करे तो भगवान का स्वभाव जान सकते..

उमा राम स्वभाव जेहि जाना

ताहि भजन बिन भाव ना आना

भगवान परम उदार, सुहुर्द, प्राणी मात्र के हितेषी है..वो ही तो हितेशी है इसलिए तो सत्संग में पहुंचे है..सत्संग से मनुष्य तनाव मुक्त हो जाता है… अ-संग से तनाव बढ़ता..

भगवान के प्रति श्रध्द्दा, बुध्दियोग, भगवान का सुमिरन और ध्यान हो, और भगवान को पाने का उत्साह चाहिए तो साधक पार हो जाता है ….कठिन नहीं है..

सयुक्त सा सुखी नर

पहेले कर्म उचित है की अनुचित ये जानने की इच्छा करे फिर कर्म करे..

गुरु प्रसाद

काज हम्हारा और हीत तासु होई..

काम तो हमारा हो लेकिन हीत तो आप का हो..भगवान में श्रध्दा सर्व समर्थता है, भगवान अन्तर्यामी है…आर्त भाव से प्रार्थना करे… ‘हम आप के रस में नहीं रहेते ..भगवान आप ही हमें आप के रस में फ़ेंक दे..डूबा दे..’

सुबह ऐसे विचार में शांत बैठना है…

मेरे में ये दोष-गुण है..मै ऐसा बनू.. ऐसा होगा तो भजन करूंगा ..ऐसा नहीं सोचे..राग-द्वेष छोड़ के भगवान को प्रीति करो..अपने आप सब होगा..हर परिस्थिति में सब का मंगल की भावना कर के करम करे..जो काम कर रहे है वो ही सब से सुन्दर, जो समय है वो ही सब से अछा समय है..जो सामने व्यक्ति है वो ही सच्चा व्यक्ति है..किसी की बाट ना देखो..जो समय है परम मंगलमय समय है…

जो धरम अनुसारी करम नहीं करेगा वो करम ले डूबेगा…

वे चाहते सब झोली भर ले..

उचित वासना करो.. सत -कर्म की वासना , ध्यान की वासना, सब के मंगल की वासना करो..राग-मय वासना, लोभ-मय वासना को बुध्दी के द्वारा मोड़ दो .. बेड़ा
पार हो जाएगा..

दिन विशेष

दिन विशेष

साल में साड़े ३ मुहूर्त महा – मुहूर्त माने जाते है॥आज गुडी पाडवा है…।आज के दिन साड़े ३ मुहूर्तो में से एक है..आज बिना मुहूर्त देखे कोई भी शुभ काम कर सकते….दुसरा मुहूर्त है अक्षय्य तृतीया १६ मे २०१० , तीसरा मुहूर्त है विजया दशमी – १७ ओक्ट २०१० और आधा मुहूर्त है बलि प्रतिपदा ७ नोवेम्बर २०१० को…ये साड़े ३ महा मुहूर्त होते है..

ॐ शान्ति

सदगुरुदेव जी भगवान की जय हो!!!!!

गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे...

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