8.4.10

जन्म कर्म से दिव्य


इंदौर सत्संग समाचार
19 मार्च 2010; इंदौर चेटीचंड शिबिर सत्संग

किसी भी देश की सच्ची संपत्ति संतजन ही होते है | ये जिस समय आविर्भूत होते हैं, उस समय के जन-समुदाय के लिए उनका जीवन ही सच्चा पथ-प्रदर्शक होता है | विश्व के कल्याण के लिए जिस समय जिस धर्म की आवश्यकता होती है, उसका आदर्श उपस्थित करने के लिए भगवान ही तत्कालीन संतों के रूप में नित्य-अवतार लेकर आविर्भूत होते है | वर्तमान युग में यह दैवी कार्य जिन संतों द्वारा हो रहा है, उनमें एक लोकलाडीले संत हैं अमदावाद के श्रोत्रिय, ब्रह्मनिष्ठ योगीराज पूज्यपाद संत श्री आसारामजी महाराज |

महाराजश्री इतनी ऊँचायी पर अवस्थित हैं कि शब्द उन्हें बाँध नहीं सकते | जैसे विश्वरूपदर्शन मानव-चक्षु से नहीं हो सकता, उसके लिए दिव्य-द्रष्टि चाहिये…..

परम कृपालु दया के सागर सदगुरुदेव जी के चरण स्पर्श पाकर इंदौर की धरती परम धन्यता का अनुभव कर रही है…बापूजी के श्रीमुख से बरसता सत्संग अमृत पीकर जगत के सभी सत्संगियो ने मनुष्य जनम का परम लाभ पा लिया है… बापूजी के साधकोकी निर्भयता, सादगी देख के सभी चकित हो जाते… बापूजी के साधको में संस्कारों की सु-सम्पन्नता और परोपकारिता देखते तो हर कोई बोलते गुरूजी तो सच्चे है ही, शिष्य भी सच्चे है!
बापूजी
बोले,
हां
! :)
जैसा
बाप ऐसा बेटा
जैसा
बड़ ऐसा टेटा !
जोगी
रे क्या जादू है तेरे सत्संग में….!!!!! :)

Bhagavad Gita Shaloka in Sanskrit

भगवान बोलते मैं दिव्यता से जन्म लेता हूँ… जो मनुष्य मुझे कर्म दिव्य, जन्म दिव्य ऐसा जानेगा वो मेरा भक्त है…तो जिस के जन्म कर्म दिव्य है ऐसे परमात्मा की मैं संतान हूँ ऐसा खुद को जानेगा उस का जन्म कर्म दिव्य हो जाएगा..

आत्मा को वास्तविक रूप में जो जानता उस के कर्म और जन्म दिव्य है..

भगवान कहेते की जो मुझे जन्म और कर्म से दिव्य जानेगा वो मुझे ही आत्मा परमात्मा को पाकर मुक्तामा हो जाता है..

ब्रम्हा का नहीं , द्वैतमय का नहीं ऐसा विलक्षण लक्षण आये ऐसे दिव्य बनते..

मेरे जन्म कर्म दिव्य है …ऐसा तत्व से जो जानते वो मनुष्य जीवन में परम फल पा लेता है.. सामान्य व्यक्ति के जन्म और कर्म सामान्य होते… जीवन मुक्त व्यक्ति क्रिया करते.. भगवान लीला करते… सामान्य जीव कर्म करते तो बंधन में बंधते … सामान्य मनुष्य का कर्तुत्व कर्म के अनुसार अनुकूल-प्रतिकूल होता , उस के अनुसार कर्ता दुःख सुख बनाता है… सुगंध लेते तो कर्तापन होता है , लेकिन श्वास लेते तो कर्तापन नहीं होता, भोजन करते तो कर्तापन है लेकिन उस से खून बनता तो कर्तापन नहीं होता…मुख्य कर्म बिना कर्ता से होते है..सामान्य मनुष्य अहंकार से कर्म गंदा कर देते… ऐसे विकारो की दुर्गंधी वाले कर्म बंधन नहीं बनाए… इन से बचे….नहीं बचे तो आर्त भाव से भगवान को प्रार्थना करे…

‘हे दिन बंधो ! …मेरे जो कर्म दिव्य बने है तो आप की कृपा है; लेकिन नीच कर्मो से बचाने की आप ही कृपा करो.. हे दिव्य प्रभु, नित्य देव तुम ही मेरे अंतरात्मा, अन्तर्यामी हो.. समर्थ हो.. दयालु हो..मुझ पर कृपा करे….’ ऐसे भगवान को पुकारते पुकारते श्वासों-श्वास में भगवन नाम की गिनती करे…तो आप के कर्म दिव्य होने लगेंगे …. मन की दुष्टता, बुध्दी का रागद्वेष, कर्म का बंधन मिटाकर परमात्मा का रस पाने में साधक सफल होने लगता है…..

…सभी कर्म और जन्म दिव्य हो जाए..दिव्य माने क्या?जो चमचम चमकता है वो?नहीं, वो तो लाइटिंग है..

जो लौकिक तराजू में ना तुले, माप तोल में ना आये.. लेकिन निराकार ब्रम्ह में भी नहीं ऐसे समझ से परे ….ऐसे विलक्षण लक्षण आ जाए उस को बोलते दिव्य!

साधारण आदमी धरती पर पर हीत के लिए नहीं आते…

आत्मा को वास्तविक रूप में जो जानता उस के कर्म और जन्म दिव्य है..

सत्संग के द्वारा ये समझ बढाए की शरीर की बिमारी मुझ में नहीं है, शरीर में बिमारी है, ये जानेगा..मुझ में बिमारी ऐसा मानेगा तो बिमारी तुम को ओर दबोचेगी… दुःख मुझ में नहीं, मन में दुःख आया.. टेंशन है तो मन में है, तनाव है तो मन में है; मुझ में नहीं….ऐसा जो जानता उस का जन्म और कर्म दिव्य होते..जो सामान्य मनुष्य जगत को सच्चा मानता तो उस की आत्मा की दिव्यता के ऊपर अ-ज्ञान का पर्दा पडा है…

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय..

ना हम वसामि वैकुंठे

योगिनाम ह्रुदएंवयी

मद भक्ता यत्र गायंत्री

तत प्रतिष्ठामी नारदा

किसी का बुरा ना करो..किसी का बुरा ना सोचो… जनमने मरने के बाद भी मैं रहेता हूँ ऐसा सोचो .. आप के कर्म में अ-शुध्दी ना हो…आप के भाव में अ-शुध्दी नहीं हो.. आप की बुध्दी में ब्रम्हज्ञानी का ज्ञान हो… आप का जन्म दिव्य हो जाएगा….भगवान बोलते मैं ऐसे योगियों के ह्रदय में जरुर मिलता हूँ जिन के ह्रदय में दिव्यता मधुरता और प्रसन्नता होती…वहा मेरी पूर्ण पूजा होती है..

हरी सम जग कछु वस्तु नहीं प्रेम सम पंथ

सदगुरू सम सज्जन नहीं गीता सम नहीं ग्रन्थ ll

मानव अपनी सत स्वभाव आनंद स्वभाव चैत्यन्य स्वभाव की प्राप्ति करे..ये उद्देश्य से इंदौर चेटीचंड समिति ने सत्संग आयोजन कर दिखाया इसलिए उन को शाबास है..

सदैव प्रसन्न रहेना ईश्वर की सर्वोपरि भक्ति है.. दुःख मन में है, बिमारी शरीर की मैं इन सब को देखनेवाला हूँ..सारे बदल को देखनेवाला मैं अ-बदल आत्मा हूँ… जो बदलता ये माया का खिलवाड़ है… मेरे अंतरात्मा में दिव्यता तो ज्यूं की त्यूं चमकती है…. उस सत्ता को जागृत करने के लिए सिन्धु नदी के किनारे साधक बैठे थे … म्रुख बादशाह का अत्याचार पराकाष्ठा पर है..ऐसे समय साधको ने उसी दिव्य सत्ता को साकार किया… मत्छ के रूप में…फिर वरुण रूप में साकार हुए…..अंतर्धान हुए फिर प्रगट हुए… उस सत्ता ने ३ रूप दिखाए …उस का नाम चेटीचंड उत्सव है..

सब उच्चारण करे:

उद्यमं, साहसं, धैर्यं, बुध्दी, शक्ति, पराक्रम

षड्यते यत्र वर्तन्ते तत्र देव सहायकृत ll

उद्यम, साहस, धैर्य, बुध्दी, शक्ति और पराक्रम से वो परम सत्ता की दिव्यता झुलेलाल के अवतार के रूप में प्रगट हुयी थी, द्रोपदी के साडी में प्रवेश अवतार के रूप में प्रगट हुयी थी…प्रल्हाद के लिए नरसिंह अवतार में वो सत्ता प्रगट होती है…कैसी दिव्यता है मनुष्य में…

राग द्वेष से भरी बुध्दी तू नहीं, हाड मांस से उलझा तन तू नहीं.. तू तो झुलेलाल अमर लाल की संतान है ! तुम भी अमर हो!! तुम तो अमर थे, है और रहोगे…. बचपन मर गया, दुःख मर गए, सुख मरे, प्रशंसक मरे …लेकिन तुम मरे क्या?

शरीर मरने के बाद भी तुम नहीं मरते.. तुम सत्स्वरूप परमात्मा के वंशज हो..

झुलेलाल भगवान ने जोगी गोरखनाथ से दीक्षा ली थी..परम्परा चलाने के लिए वरुण देवता ने भी दीक्षा ली थी.. तो जो निगुरे है किसी अच्छे गुरू से जरुर दीक्षा ले…निगुरो का नहीं कोई ठिकाना..निगुरा मनुष्य अपने और दूसरो के लिए मुसीबत होता है.. सत्संग और दीक्षा-शिक्षा से मनुष्य जीवन हीतकारी हो जाता है..

  • कटु रस की कमी होने के कारण शरीर में रोग के कण जमा हो जाते है…इसलिए १० ग्राम नीम का रस और १० ग्राम शहेद पिए तो पीलिया गायब हो जाएगा… बीमारियाँ भाग जायेगी…
  • इन दिनों नीम को फूल आते है..निम् के फूल १० ग्राम और मिश्री पिस के पियो तो छोटे छोटे दाने पीठ में निकलते जिस को घमोरिया बोलते वो ठीक हो जायेगी….
  • तुलसी के ६ पत्ते रोज खाने से पुराना बुखार सदा के लिए भाग जाएगा
  • रीठे का छिलका घिस के वो चेहरे पर लगाने से चेहरे पर जो साईं या काले दाग होंगे वो ठीक होंगे…
  • जितना दूध उतना पानी और १ चम्मच घी डाल के वो दूध पिए …मानो १०० ग्राम दूध है तो १०० ग्राम पानी उबाले और उस में १ चम्मच शुध्द घी डाल के माँ होनेवाली देवी पीया करे तो बच्चा ऐसा बुध्दिमान होगा की कईयों को रोजीरोटी देनेवाला हो जाएगा..
  • भोजन के बिच ३० – ३५ ग्राम आवले का रस २१ दिन लेने से बड़ा भारी फायदा होता है ..
  • गर्भवती को सौफ और मिश्री चबाने को दे दो तो बच्चा रूप रंग में तेजस्वी होगा..
  • नवमा महीना शुरू हो जाए तो बादाम का रोगन(१०-१२ बूंद) दूध में डाल कर पिए तो उस देवी का बेटा दिव्य होगा..
  • कईयों की खून की कमी है, हिमोग्लोबिन की कमी है तो मुंग में पालक खाया करो.. ३० -३५ ग्राम खाए…
  • अथर्व वेद में लिखा है की उदित सूर्य माने सूर्य देव की हलकि लाल किरणे जीवनी शक्ति में अपने आप में संजोये हुए है…इस से खून की कमी दूर होगी..
  • …उदित सूर्य की हलकि लाल किरणे ह्रदय को बल देनेवाली है ..सुबह लाल किरण ह्रदय पे पड़े तो ह्रदय रोग दूर होगा… हाथ की हथेलिया एक दुसरे पर रगड़े ॐ ॐ भानवे नमः,ॐ ॐ आदित्याय नमः बोल के हथेलियाँ ह्रदय पर रखे…हार्ट एटैक भाग जाएगा ….हार्ट की बिमारी नहीं है तो भी ऐसा करेंगे तो ह्रदय की बिमारी कभी आएगी नहीं…. भारत में सव्वा ४ लाख लोग ह्रदय रोगी है…उन सभी तक ये सन्देश पहुंचा दो…
  • सूर्य उदित होता तो शुरू के १०-१५ मिनट लाल कोमल किरणे होती, फिर थोड़े तेज मध्यम किरण होते… सूरज उगने के आधा पौने घंटे में तीव्र किरण होते….सूर्य उगने से आधा पौना घंटे के समय में इतनी शक्ति है की शरीर की २१ प्रकार की बीमारियाँ , और छोटे मोटे सभी रोग मिटाए जा सकते है..
  • चैत्र महीने में बिना नमक के भोजन से कफ़ जनित बीमारियाँ दूर होंगी और मायियो को प्रदर की पानी और रक्त नाश होने की बिमारी ठीक हो जायेगी…
  • इस सीजन में २ ग्राम हरड रोज चुसना चाहिए… खानपान में अंग्रेजी खाद से शरीर में जो जहर आता उस को भगाने की शक्ति आती है … हरड और गुड अथवा हरड और शहेद मिलाकर गोलियां बना ले और रोज चुसो…
  • गिले हाथपैर से शयन नहीं करना चाहिए… शरीर पर गिला कपड़ा रख कर नहीं सोना चाहिए…

एक घडी आधी घडी आधी में पुनि आध

तुलसी संगत साधू की हरे कोटि अपराध ll

४० दिन तक रोज १० मिनट भगवान को एक टक देखे तो ४ चंचलता दूर हो जायेगी(वाणी की, हाथो की, नेत्रों की और पैरो की चंचलता दूर होगी) …हरी….. ओम्म्म्म्म्म्म्म् इस प्रकार भगवान के नाम का लंबा उच्चारण करे तो ज्ञान तंतु पुष्ट होंगे भगवत सत्ता का संचार आप के ७२ करोड़ ७२ लाख १० हजार २०१ नाड़ियों में होगा..

किसी के घर में मृत्यु हुयी तो उन्हें मंगलमय जीवन मृत्यु ये पुस्तक पढ़ाना.. मृतक की याद में रोते तो आँख-नाक से जो गन्दगी निकलती वो उन को पिलाया जाता जो मृतको के लिए रोते है.. ऐसा शास्त्रों में लिखा है..

दिव्य प्रेरणा प्रकाश और जीवन विकास ये पुस्तके जरुर पढ़े..

हरी ओम्म्म्म्म्म्म्


ॐ तम नमामि हरिम परम

ॐ तम नमामि हरिम परम

ॐ तम नमामि हरिम परम



आरती हुयी…ॐ जय जगदीश हरे…

ॐ शांति

सदगुरुदेव जी भगवान की जय हो!!!!!

गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करें…

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