29.10.10

सोचो फिर बोलो......

एक बूढ़ा व्यक्ति अपने पड़ोस में रहने वाले एक युवक को पसंद नहीं करता था।
एक दिन गांव में चोरी हो गई। बूढ़े व्यक्ति ने कहना शुरू किया कि उसी युवक ने
चोरी की होगी। धीरे-धीरे बात पूरे गांव में फैल गई। यहां तक कि गांव वालों ने
उसे राजा के सिपाही से गिरफ्तार भी करवा दिया।
 परंतु जांच होने पर असली चोर कोई और निकला और वह युवक पूरी तरह निर्दोष पाया गया। लेकिन युवक जेल से छूट कर जब वापस आया,तब भी गांव के अनेक लोगों का दृष्टिकोण नहीं बदला। वे उससे कतराने
लगे। इससे आहत हो कर युवक ने एक दिन उस बूढ़े आदमी को मार डालने की धमकी दे
डाली। बूढ़ा इसकी शिकायत लेकर पंचायत में पहुंचा। सरपंच ने दोनों को बुलाकर
पूरी बात सुनी। फिर बूढ़े से कहा, पहली गलती तो आपसे ही हुई है, दूसरी गलती
युवक ने धमकी दे कर की। दोनों एक-दूसरे से क्षमा मांगें। युवक ने तो क्षमा मांग
ली, परंतु बुजुर्ग झगड़ने लगा और बोला, पूरे गांव में इसके चोर होने की बात
मैंने तो नहीं फैलाई। इस पर सरपंच ने कहा कि वह एक कागज पर शब्दश: वह बात लिख
दे जो उसने युवक के बारे में अपने पड़ोसियों से कही थी। बुजुर्ग ने वैसा ही
किया। उसके बाद सरपंच ने उस कागज के कई टुकड़े कर दिए और बुजुर्ग से जाते समय
राह में वे टुकड़े गिरा देने को कहा। फिर अगली सुबह सरपंच ने उनसे सारे टुकड़ों
को वापस बटोर लाने को कहा। बुजुर्ग ने वही किया, परंतु टुकड़े काफी कम रह गए
थे। कुछ टुकड़ों को हवा पता नहीं कहां उड़ा ले गई। तब सरपंच ने कहा, तुम्हारे
मुंह से निकले हुए शब्द भी इसी प्रकार कहां से कहां तक जा सकते हैं, इसका
अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
 इसीलिए असत्य या फिर जिस विषय में पूर्ण जानकारी न
हो, उसके बारे में गलत राय देना भी सही नहीं है। बुजुर्ग को अपनी गलती का अहसास
हो गया।...


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