मध्य प्रदेश की राजधानी पन्ना थी पहेले…पन्ना में खदाने थी.. जहा हीरे मोती निकलते वो पन्ने की खदाने थी… वहाँ  से 3 कोस अर्थात 16 कि. मी.  दुरी पर एक भक्त रहेते थे..पन्ना छत्तरपुर और सदना के बिच में पड़ता है..पन्ना से बराया गाँव में हिम्मत दास  जी नाम के भक्त रहेते थे…
उन्हों ने मन में ठान  लिया की रोज पन्ना के बांके बिहारी जी के  दर्शन करने है.. रोज १६ कि. मी.  चल के आते..हाथ में  खड़ताल बजाते बजाते आते….. दर्शन करते ..और फिर अपने गाँव बराय में वापस जाते…5 कोस दुरी पर…कीर्तन करते करते आते…ठाकुर जी के दर्शन करते ..ये उन का नियम हो गया…एक दिन रास्ते में 4 चोर मिले… खडताल के सिवाय कुछ नहीं था…खड़ताल छीन ली ..
बोले,  ‘बताओ और क्या है?’
हिम्मत दास  बोले, ‘हरी का नाम है… लेना है तो ले लो!’
चोरो ने देखा की भगत के पास कुछ नहीं तो खडताल छीन के चले गए…
हिम्मत दास  जी बोले, ‘हरी तेरी मर्जी! ये क्या लीला दिखा रहे तुम जानो महाराज!’
इतने में देखा की 4 चोर अंधे हो गए..पीछे से आवाज देने लगे की महाराज रुको… हमें माफ करो ..
हिम्मत दास  जी पीछे गए..पूछा की,  ‘क्या हो गया?’
चोर बोले ,  ‘..हम देख नहीं रहे …आँखे फटी है, लेकिन दिखता कुछ  नहीं…हम को माफ कर दो महाराज..’
हिम्मत दास जी ने प्रार्थना की ठाकुर जी को ..  चोरन से दिलवाओ खडताल…चोरन से ना मुख मोड़ीयो  ओ नंदलाल…चोरन को भी करो निहाल ! ऐसे मध्य प्रदेश के   हिम्मत दास  जी भक्त हुए… चोरो की दृष्टी वापस आई ! हिम्मत दास  जी का अन्दर का ज्ञान बढ़ा..
चोरो से निपटने में हिम्मत दास  जी को देर हो गयी… पन्ना के  मंदिर पहुंचे तो सांध्य की आरती हो गयी थी.. पट बंद हुए थे..मंगला आरती हो गयी….हिम्मत दास  जी वहाँ  ही बैठ गए..इतने दिन का नियम था..अब दर्शन के बिना कैसे खाउंगा … कैसे जाउंगा…
वो प्रेमी भक्त बंद कपाट को देख कर ही ऐसा भाव से निहारने लगा…ऐसा गाने लगा की झटके से बंद कपाट खुल गए!… भगवान  मूर्ति में से प्रत्यक्ष प्रगट हो गए…दर्शन से गदगद होने पर बांके बिहारी जी अंतर्धान हो गए…भगवान मंदिर के महंत प्रतिदिन कि तरह प्रभात को आये..सभी बात पता चली …मंदिर के महंत ने  हिम्मत दास  जी को दंडवत  प्रणाम करते हुए बोला की,  ‘बाबा आप रोज 5 कोस चल कर आते … कठिनाई  होती होगी.. यही निवास करो….मंदिर की आय से अभ्यागत साधुओ की सेवा होगी……सेवा स्वीकार करो…’
हिम्मत दास जी अब पन्ना में निवास करते.. प्रीति  पूर्वक साधुओ की सेवा होती… साधू मंडली आने से आवक से जावक ज्यादा थी.. एक बड़ी मंडली आई.. हिम्मत दास  जी गए शिधा सामान  लेने  को बनिया के पास …  ‘मंडली आई भैय्या’ …. भैय्या ने बिठाया तो सही, लेकिन बही- खाता  देखो बोला…ज्यादा नहीं दे सकता… पहेले पैसे चुकते करो तो अभी का ले जाओ बोला…
हिम्मत दास  जी घर वापस लौटे… पत्नी को कहा, साधुओ की जमात आई है… बनिया शिधा नहीं देता…
पत्नी ने बोला,  “संत की सेवा है..ये नथनी है!” … चटाक से उतार दी…
हिम्मत दास जी बनिया के पास गए, पत्नी की नथनी देकर बोले ,  ‘ये तू गिरवी रख ले… आज के लिए शिधा दे दे….’
बनिया से शिधा लेकर आये, पत्नी ने साधू मंडली को भोजन कराया…
इधर बांके बिहारी सोचे की जो मेरे भक्त है उन भक्तो की नथनी भी नहीं रहे तो मैं  ईश्वर किस प्रकार का ?
..ठाकुर जी भक्त हिम्मत दास  जी  का रूप लेकर बनिया के पास पहुंचे ..कितने पैसे है..ले लो… नथनी लाओ… बनिया से भगवान भक्त के पत्नी की नथनी वापिस ले आये…हिम्मत दास  जी के पत्नी को नथनी दिए.. पत्नी बोली, ‘ये कैसे लाये?’
बोले,  ‘जैसे भी लाया,  पहेर  ले!’
भक्त की पत्नी बोली, ‘मेरे तो गोबर वाले  हाथ है! आप ही पहेरा दीजिये!!’ अंतरयामी भगवान  नथनी पहेरा के अंतर्धान हो गए..
हिम्मत दास  जी आये , पत्नी को देखा की नाक में नथनी पहेनी है…पत्नी ने बताया की आप ने ही ला कर दी, पहेरा दी…
हिम्मत दास  जी समझ गए की मैं  तो नहीं आया!… भक्तो के भगवन ही आये होंगे… भागे भागे गए बनिया के पास! ….पूछे की मेरा जैसा दूसरा आदमी आया था क्या? …
बनिया बोला, ‘आप को क्या हो गया? अभी सारे  बहीखाता का हिसाब कर दिए… साइन  भी है आप के…!’
हिम्मत दास को पता चला की भगवान ही आ कर नथनी देकर गए है..
जो भगवान् का हो के जीता है , उस को कदम कदम पर भगवान सहायता करते है!…
हिम्मत दास  जी की श्रध्दा ऐसी उच्च कोटि की थी की स्व  तरति , लोकां तारिती …ऐसे भाग्य को प्राप्त होते है .
उन का ह्रदय ऐसा  पवित्र हुआ..जहा ऐसे पवित्र शुध्द ह्रदय वाले संतो का निवास होता , उन के चरण पड़ते …उस भूमि पर भगवतिय आनंद, भगवतिय  प्रीति , भगवत माधुर्य  चमचम चमकने लगता है…
अपने जीवन में भक्त राज हिम्मत दास  जी को कई अनुभव हुए… ठाकुर जी के सामने एक टक  देखते..प्रीति पूर्वक प्रभु के गीत गाते… ठाकुर जी प्रगट हो के बोलते… ब्रिन्दावन में दर्शन होंगे.. ठाकुरजी अन्तरधान  हुए…. हिम्मत दास  जी ब्रिन्दावन चल दिए… पन्ना  से चलते  चलते  7 वे दिन ब्रिन्दावन के  बांके बिहारी के मंदिर में पहुंचे…पंडो को तो  मूर्ति दिखती..लेकिन भक्त राज हिम्मत दास  को प्रत्यक्ष भगवान दिखते! … ठाकुरजी    सर्व व्याप्त है, उन्ही की चेतना सभी में है..सभी ठाकुर जी का रूप है ….मन एकाग्र हुआ.. ज्ञान उभरने लगा… भगवान चेतन रूप, ज्ञान रूप,  आनंद रूप है… भगवान प्राणी मात्र के सुहुर्द है …
जो भगवान की कथा सुनता  , भगवान उस की व्यथा मिटाता है ….जो भगवान की कथा सुनते नहीं, वो ही व्यथा में है… जिस के जीवन में भगवान की कथा है, वो व्यथित नहीं होता…
ॐ शांती
 
 
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