20 मार्च 2010 – भाग – 2;इंदौर चेटीचंड सत्संग समाचार

आज के अशांत युग में ईश्वर का नाम, उनका सुमिरन, भजन, कीर्तन व सत्संग ही तो एकमात्र ऐसा साधन है जो मानवता को जिन्दा रखे बैठा है और यदि आत्मा-परमात्मा को छूकर आती हुई वाणी में सत्संग मिले तो सोने पे सुहागा ही मानना चाहिये | संतश्री के सुप्रवचनों का आयोजन कर लाखों की संख्या में आने वाले श्रोताओं को आत्मरस का पान करवाती हैं |

इंदौर के चेटीचंड उत्सव समिति ने एक नया इतिहास रच दिया ये सत्संग आयोजन कर के.. मनोरंजन ही भगवान के अवतरण का उद्देश नहीं, मनुष्य जीवन में भगवत सत्ता का अवतरण हो ये मुख्य उद्देश है..
ये कार्यक्रम असीम लोगो को मिला है.. सिर्फ इंदौर के पंडाल में बैठे सत्संगियों को ही नही, बल्कि सम्पूर्ण भारत और देश विदेशो के कई भागवत प्रेमी इस सत्संग अमृत का पान कर रहे है. … यह अमृत असीमेश्वर ईश्वर को मिलानेवाला है..


शांति मन्त्र का उच्चारण हो रहा है..

दुर्जनों सज्जनों बुर्ह्यात..

सज्जनों शान्ति माप्नुयात
शान्तोत मुस्च्येत बन्ध्येभ्यो
मुक्तास्च आत्म्यात ब्रुहेत….
हरी……… ओम्म्म्म्म्म्म्म्………..
…. ‘स्व तरति..लोकां तारिती’ … आप भी अपनी मान्यताओ से, संकीर्णता से बाहर आये… तर जाए….
हम सर्वत्र भगवान की सत्ता का स्वीकार करे..
हम सभी को सत बुध्दी प्राप्त हो..सब एक दुसरे को सहयोग करे ..अध्यात्मिक उन्नति में, परमात्मा के रास्ते में सहयोग करे…

दुर्जन को ‘दुर्जन’ मानकर नफरत कर के स्वयं दुर्जन ना बनो…
दुर्जन सज्जन हो जाए…लेकिन सज्जनता बनी रहे ऐसा आग्रह ना करो ..सज्जन को भी शांति हो जाए… शान्तात्मा भी आत्मा-परमात्मा की विश्रांति पाकर मुक्त हो इसलिए समझे की अन्तकरण बदलता, शरीर बदलता, मन बदलता, बुध्दी बदलती है, उस बदल को जाननेवाले आत्मा तुम हो इस प्रकार अ-बदल आत्मा में ज्ञानवान हो जाए…

आप ध्यान से सुन रहे इसलिए उंचा तात्विक सत्संग अपने को मिल रहा है ..

ईश्वर को पूछो की आप ने कृपा की भगवान …भगवान बोलेंगे , ‘ये तुम्हारा पुरुषार्थ और भाव है’ , भगवान बोलेंगे ‘मैं कृपालु हूँ’ तो अहंता आएगी…. भगवान भी कृपालु-पने का भाव अपने में नहीं थोपते….. ऐसा करेगा तो कर्ता-पन उस का भी नहीं मिटता…. साधक पुरुषार्थ करता और गुरु की कृपा मानता… भक्त ऐसा बोले तो गुरूजी तुरंत बोलते, ‘भगवान की कृपा है’…. साधन का बल का अहंकार साधक में ना रहे तो हो जाती है विश्रांति योग….. बुध्दी जितना परमात्मा में विश्रांति पाएगी उतनी बुध्दी शुध्द होगी और आत्मा का सामर्थ्य पाएगी…

एक होता है ऐहिक सुख – देखने का, सुनने का, चखने का मजा ये है संसारी सुख ….संसारी सुख – माने जो सरकता जाए…ऐसे सुख जो भोगनेवाले का आयु, बल, बुध्दी, तेज क्षीण करता जाए उस को बोलते…दूसरा सुख है भगवत भाव का सुख और तीसरा सुख है ईश्वर का स्वभाव – ईश्वर तत्व सुख….
भोजन करना मना नहीं , लेकिन स्वाद के लिए खा लिया तो संसारी सुख हो गया..बालक को जन्म दिया , अच्छा किया लेकिन पति – पत्नी शरीर को नोचने के चक्कर में अ-काल मृत्यु के खायी में जा गिरते…
गुरु दीक्षा, शास्रो का ज्ञान का आदर करते, गुरु वचन और साधन ध्यान नियम करते तो मन बुध्दी के पक्ष में काम करता है, इन्द्रियों के पक्ष में नहीं… मन अगर इन्द्रियों के पक्ष में काम करता तो पतन का मार्ग है….बुध्दी को दीक्षा शिक्षा ज्ञान के अनुसार चलने में मन का साथ ना हो तो मन को मोड़े, इन्द्रियों को मोड़े…. उन्नति होगी….

.. स्वाद इन्द्रिया कहेती है पकोड़े खाए.. इन्द्रिया अनुगामी मन है तो सोचेगा फलानी दूकान के अच्छे होते, वहा से गुजर भी रहे.. इन्द्रिया अनुगामी मन नहीं, तो सोचेंगे की बाद में देखेंगे… बुध्दी कहेती, अभी दूध पीया है, नमक वाला कुछ नहीं खाना चाहिए….बुध्दी अनुगामी मन है तो मान लेगा…लेकिन मन इन्द्रिया के अनुसार चलेगा तो कहेता अभी हो गए २ घंटे, चलता है…खा लिए पकोड़े..बुध्दी दब गयी… इन्द्रियों की इच्छा अनुगामी मन, मन अनुगामी बुध्दी हो गयी…. ज्ञान का, समझ का अनादर होता जाएगा…. बुध्दी दुर्बल होती जायेगी…इन्द्रिया मन बुध्दी पर हावी होता जाएगा…

भूख लगी है, रोटी के बदले पकोड़े है.. आवश्यकता भी है तो ले लो… बुध्दी , मन सहेमत है तो हरकत नहीं… लेकिन आवश्यकता नहीं, केवल इन्द्रियों का लालच है..खाम -खा आकर्षण हुआ तो इन्द्रियों के आकर्षण में ज्ञान कमजोर हो गया…. बुध्दी शुद्ध ज्ञान में परमात्मा के पक्ष में रहे तो बुध्दी में ८ शक्तियां आती है….और बुध्दी विपरीत गयी तो ८ अवगुण आते है…

बुध्दी मन के कहेने में चली तो भ्रष्ट हो जाती.. फिर विषयो का चिंतन मन करेगा …विषयो के चिंतन का संग किया तो कामना होगी..कामना से पाप कर्म होगा…अधिक कामना से अधिक मजा का लोभ होगा और मजा का विघ्न किया तो क्रोध आयेगा, मजा के अनुकूल हुआ तो सम्मोह आयेगा, सम्मोह से बुध्दी भ्रम होता और जीव का विनाश हो जाता…..

मरने के बाद नृग किरकिट हो गए… रावण की योग्यता थी लेकिन अभी ज़रा नाच देख ले सुंदरी का ऐसी नीच ईच्छाओ से ज्ञान स्वभाव के तरफ मुंह मोड़ा तो बुराई में ऐसे गिरे की मरते समय लक्ष्मण को कहेते, ‘अच्छे विचार में तुरंत लग जाना चाहिए… जहां उदास होना था वहा देर की, इस से मैं सब कुछ जीता हुआ दुनिया से हार के जा रहा हूँ….’

अच्छे में अच्छा है परमात्म शांति, परमात्म ज्ञान, परमात्मा की प्रीति ….उधर समय नहीं दिया तो निंदा, चुगली, इर्षा में जीवन खराब हो जाएगा….

ईश्वर की चीजो का महत्त्व बुध्दी में हो तो बाकी की कई चीजे आप के लिए हाजिर हो जाती…. सभी भोग योग में सफल हो जाते…. भगवत सत्ता, भगवत प्रीति का और मिली हुयी जानकारी का आदर करो… ज़रा सिगारेट पिए, ज़रा सा पति-पत्नी का व्यवहार, पनीर तो सभी खाते अपन भी थोड़ा खा ले..क्या होता है…क्या होता है तो मर गया… ये ही हाल है…..इसलिए मिली हुयी जानकारी का आदर करो तो महापुरुष हो जाओगे!

श्री रामचंद्र जी ने लक्ष्मण को कहा, ‘लक्ष्मण तुम्हारे स्वभाव में विपरीत परिवर्तन देखा….. तुम्हे नींद नहीं आती, तुम्हारे साथ चौकी करने वाले की नींद भी दूर हो जाती ऐसे तुम निद्रा -जीत थे..लेकिन आज तुम ऐसे सोये की मैं तुम्हे पुकारते पुकारते रो रहा था की भाई लक्ष्मण जागो… उठो… जो तुम दूसरो को जगानेवाले थे.. मैं पुकार पुकार के थक गया… मेरी पुकार, मेरी वाणी रुदन का रूप लेने लगी…. ऐसा तुम्हारे अन्दर विचित्र परिवर्तन देखा ऐसे सोये की उठे नहीं..’

लक्ष्मण ने बहोत सुन्दर तात्विक उत्तर दिया है…ध्यान देना… बहोत लाभ होगा…

लक्ष्मण ने कहा, ‘प्रभु , जागते रहेने पर भी, सजाग रहा फिर भी फिसलाहट हो ही जाती है…दुर्गुणों से बचे इसलिए सजाग रहेते, फिर भी कही ना कही फिसलाहट हो ही जाती है… सजाग होते हुए भी सजाग नहीं रहे पाते…आप के चरणों में विश्रांति पा लिया तो आप ने मुझे ऐसा जगाया की मैं नहीं रहा, केवल जागना रहे गया! ‘मैं’ चला गया!!’

‘मैं ’ चला गया तो वास्तविक जगना ही रहे गया….. इस तात्विक बात को सुनने से सब कुछ दान करने का, सभी तीर्थ करने का, सभी यज्ञ करने का फल हो जाता है ऐसा ये ज्ञान है…ब्रम्ह परमात्मा के ज्ञान में जिस ने मन को विश्रांति दिलाई, उस ने सब दान पुण्य व्रत तप कर लिया…जब तक ये ज्ञान नहीं पाया तब तक कितने भी मठ मंदिर , तीरथ घुमो फिरो जीवन में विश्रांति , निश्चिंतता, पूर्णता नहीं आती…

जैसे लक्ष्मण जी मूर्छित होने के बाद उठते है… तो भगवान राम बोलते की, ‘मेघनाद के बाण से तुम ऐसे विचित्र सोये की मेरे पुकारने पर नहीं उठे’ … लक्ष्मण बोले, ‘प्रभु जीव कितना भी सजाग हो, फिर भी फिसल जाता… तो किसी ना किसी निमित्त से आप की शान्ति में सो जाता तो आप उस को अपने स्वभाव में जगा देते है’ ..ऐसे आप विश्रांति योग से परमात्मा में जग जाओ..


पने जीवन में कुछ ना कुछ नियम हो….. स्वाध्याय हो….. जप माला का नियम हो… सप्ताह में एक दिन एकांत कमरे में शांत….ईश्वर प्रीति में हंसना , गाना, पढ़ना और बार बार सत्संग हो जीवन में..ऐसा हो तो थोड़े ही दिन में भाग्य के कु-अंक बदल जायेंगे….

मन विषय विकारों का गुलाम ना बने… इसलिए नियम, दीक्षा का महत्त्व है… सात्विक निष्ठां का नियम, उपवास व्यर्थ्य की मांगो पर नियंत्रण दिलाएगा…कोई ना कोई ऐसा व्रत रखो…. जैसे की रोज एक- आध घंटा परोपकार में गुजारुंगा.. उपवास ना कर सको तो ऐसा कोई नियम ले लो…जैसे चैत्री शुद्ध बिज के बाद नीम के २०-२५ पत्ते और काली मिर्च चबाने से गंदे जहरीले पदार्थ शरीर से निकल जाए ये मैंने नियम ले लिया…. इस सीजन में 20 -25 दिन बिना नमक का भोजन करने से हड्डिया मजबूत होंगी.. बिना नमक का भोजन ना करे तो कम से कम नमक खाए… एक चौथाई बास!….स्वाद की लोलुपता मिटाए..इस से काम विकार में भी संयत हो सकते है….काम विकार में पड़े तो वीर्य, तेज, धातु, मज्जा , ओज नाश हुआ….
मन खींचा, तो बुध्दी भ्रमित हुयी और जीवन इसी में पूरा हो जाता…. तो आप कोई ना कोई नियम ले लो…. ‘ॐ अर्यमाय नमः’ ये मन्त्र जपने से ब्रम्हचर्य पालने में मदत मिलती है..

…आप मिली हुयी जानकारियों का पक्ष लेते या संसारी सुख का पक्ष लेते?….आप किस को बल देते इस की समज जरुरी है… ‘ज़रा मजा’ लेने के चक्कर में बुध्दी और ज्ञान दुर्बल हो जाएगा …. बुध्दी के ज्ञान की तरफ और इन्द्रिय सुखो की तरफ दोनों के बिच में मन है…इसलिए इष्ट-अनिष्ट दोनों साथ रहेते… सुख की लालच और तत्व ज्ञान का आदर दोनों साथ है….कभी ये खींचते, कभी वो खींचते! सहयोग उन को दे की जिस से आप के जीवन में भगवान का सुमिरन, नियम, निष्ठा हो….

‘ईश्वर की ओर’ पुस्तक भगवत प्राप्ति के लिए पढ़े…..(पढ़ने लिए क्लिक करे)

अपने घर में स्वर्गीय सुख लाओ..
रामायण में लिखा है : ‘पर निंदा सम अघन न गरीसा’
आज कल विज्ञानी बोलते निंदा इर्षा से शरीर में एल डी एल नाम का द्रव्य बनता है..
हे प्रभु आनंद दाता पढ़ना और घर में से बिमारियोको अलविदा कर देना..
निंदा करने से त्रिदोष कम्पित होते, बहोत सारे बीमारी बनानेवाले रस और विजातीय द्रव्य तैयार होते.
घर में प्रार्थना , पठन आदि से निंदा झूठ बोलने की आदत छूटेगी ..एक दुसरे के लिए झूठ बोलते तो वैर करते…इस से पाचन तंत्र खराब होता , बुध्दी कमजोर होते, पुण्य नाश होता, बरकत चली जायेगी..

अपने शास्रो में ये बात हजारो वर्षो से आती है की निंदा जैसा कोई पाप नहीं है…

“हे प्रभो आनंद दाता ज्ञान हम को दीजिये”

रोज ये प्रार्थना करे…(प्रार्थना पढ़ने के लिए ऊपर की लिंक पर क्लिक करे )

घर में झगड़े मिटाना है तो ये प्रार्थना का उच्चारण करेंगे..रोज घर में गायेंगे ..

घर में निंदा, इर्षा ना हो….

मनुष्यो के लिए वेद , शास्त्र और महापुरुषो ने उपाय ढूंढ़ लिए है उस का फ़ायदा उठाये..

कई बार मैं बोलता हूँ फिर भी पैन किलर खाते..पैन किलर आप के कोशिकाओं मारता है, दर्द को नहीं मारता…. पैन किलर खाते तो आप दर्द की खबर देनेवाले कोशिकाओं को मारते..

  • ३० ३५ ग्राम आवले का रस भोजन के बिच में पिए २१ दिन तो स्वास्थ्य बढ़िया रहेगा..
  • माँ बननेवाली देविया गर्मियों के दिन में आधा दूध आधा पानी उबालकर उस में १ चम्मच घी मिलाकर पिए…बच्चा बुध्दिमान होगा..
  • इतवार को छोड़ के तुलसी के पत्ते रोज ५ – ७ खाए , रोग दूर रहेंगे, याद शक्ति अच्छी होगी..सूर्य के किरण में २० मिनट बैठे…मुझे बहोत लाभ है , आप को भी होगा….सूर्य के कोमल, माध्यम और तीव्र किरण एक घंटे के अन्दर ले तो बहोत सारी बीमारिया मिट जायेंगी ..दुनिया के सारे हाकिम डॉक्टर आप की मदद नहीं कर सकते जितना सूर्य के किरण कर सकते है..
  • हार्ट के रोगी उदित सूर्य के लाल किरणों में बैठे और आरोग्य मन्त्र बोले…हाथेलियो को रगड़ के ह्रदय पर रखे….
  • थाइरोइड की तकलीफ है तो होमिओपथि की दवा से नियंत्रित होती है….और दिन में २ बार ऐसा करो : श्वास अन्दर भरो, आरोग्य मन्त्र बोलो और कंठ में ओमकार का गुंजन करते हुए गर्दन आगे पीछे करना है..

ॐ शांति.

सदगुरुदेव जी भगवान की जय हो!!!!!

गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे…