14.3.11

मोती पश्चाताप के



सर्दियों का मौसम था। हाथ को हाथ नहीं सूझे ऐसा घना कोहरा छाया हुआ था। एक गरीब किसान का बेटा शीत-लहर की चपेट में आ गया। इलाज के लिए गाँव के कुछ हमदर्द लोगों ने पैसे इकट्ठे करके उसको शहर के एक नामी डॉक्टर के पास भेजा। डॉक्टर ने पहले तो उस व्यक्ति को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर बोलाः "तुम्हारे बच्चे की हालत गम्भीर है, इसके इलाज में पाँच हजार रूपये लगेंगे। इतने पैसे लाये हो ?"
उस गरीब आदमी की आँखों में आँसू भर आये। वह गिड़गिड़ाते हुए बोलाः "साहब ! मेरे पास अभी चार सौ रूपये हैं। आप इन्हें लेकर मेरे बेटे का इलाज कर दीजिये। मेरी इकलौती संतान है। मैं कैसे भी करके कुछ ही दिनों में आपकी पाई-पाई चुका दूँगा। साहब ! गरीब पर रहम कीजिए।" – ऐसा कहकर उसने अपनी पगड़ी उतारकर डॉक्टर के कदमों में रख दी और हाथ जोड़ लिये। डॉक्टर पढ़ा होगा किसी कॉन्वेंट स्कूल में। उसने दुत्कारते हुए उस गरीब को बाहर निकलवा दिया। हाड़क कँपा देने वाली ठंड में वह व्यक्ति अपने बच्चे को गोद में लिए रात भर बाहर बैठा रहा कि शायद डॉक्टर का दिल पसीज जाय, पर पत्थर पिघल सकता उस डॉक्टर का हृदय नहीं ! आखिर सुबह होते-होते उस मासूम ने दम तोड़ दिया।
समय बीता, एक बार डॉक्टर अपने परिवार के साथ गाँव के अपने फार्म हाउस में छुट्टियाँ मनाने गया। वहाँ उसके बेटे को साँप ने डँस लिया। दवाइयों, इंजेक्शनों से जहर नहीं उतरा। बच्चे की हालत बिगड़ने लगी। उसके हाथ-पैर नीले पड़ने लगे, तब फार्म हाउस का चौकीदार पास के गाँव से जहर उतारने वाले व्यक्ति को बुला लाया।
संयोगवश वह वही व्यक्ति था जिसके बेटे का इलाज करने से डॉक्टर ने मना कर दिया था। डॉक्टर को पहचानने में उस व्यक्ति को देर न लगी। वह सारा दृश्य उसकी आँखों के सामने से घूम गया। अपने आँसू छिपाते हुए उसने कोई जड़ी निकाली और पीसकर दंश के स्थान पर लेप कर दिया। धीरे-धीरे विष का प्रभाव दूर हुआ और कुछ ही देर में बच्चा उठकर बैठ गया। यह देखकर डॉक्टर की खुशी का ठिकाना न रहा। खुशी-खुशी में डॉक्टर ने सौ-सौ के नोटों का एक पूरा बंडल ही उस गरीब के हाथ में थमा दिया। पर वह व्यक्ति धन का गरीब था दिल का नहीं। उसने वे रूपये डॉक्टर को वापस करते हुए कहाः "साहब ! ये रूपये मेरी तरफ से आप रख लीजिये। और जब कोई गरीब मासूम आपके पास आये तो इन पैसों से उसका इलाज कर देना, जिससे लाचारी के कारण किसी और को अपने प्राण न गँवाने पड़ें।"
ये शब्द डॉक्टर को तीर की नाईं लगे। एकाएक वह उस गरीब के चेहरे को बड़े गौर से देखने लगा। उसके चेहरे का रंग उतर गया। शर्म से सिर झुक गया और आँखों से पश्चाताप के मोती बरस पड़े। गरीब ने अपनी झोली उठायी और चल दिया। आज डॉक्टर को जीवन का सबसे बड़ा पाठ मिल चुका था। उसका हृदय बदल गया। उसकी शोषण की वृत्ति पोषण में बदल गयी।
जिसका हृदय किसी का कष्ट देखकर नहीं पिघलता उससे तो वह जड़ पेड़ कहीं ज्यादा अच्छा है जो थके-हारे राही को अपनी छाया तो देता है ! मानवीय संवेदनाविहीनि मानव भले ही कितने बड़े ओहदे पर हो, कितनी ही धन-सम्पदा का मालिक हो पर वह सच्चा कंगाल है और जिसका हृदय दूसरे का दुःख देखकर उमड़ आता है, किसी की पीड़ा में पिघल जाता है, वह बाहर से भले गरीब दिखता हो पर वह सच्चा धनवान है। पूज्य बापू जी कहते हैं-
अपने दुःख में रोने वाले मुस्कराना सीख ले।
औरों के दुःख-दर्द में काम आना सीख ले।।
जो खिलाने में मजा, वो आप खाने में नहीं।
जिंदगी है चार दिन की, तू किसी के काम आना सीख ले।।
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, दिसम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 14,15 अंक 162
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