

 संगीततज्ञ     हरिदास   महाराज  के  बैजू  बावरा  और  तानसेन  शिष्य  थे…
संगीततज्ञ     हरिदास   महाराज  के  बैजू  बावरा  और  तानसेन  शिष्य  थे…  ऐसे  ऊँचे  गुरु  से  ज्ञान  पाकर   शिष्य  भी  ऊँचे  ज्ञान  के  धनि
 ऐसे  ऊँचे  गुरु  से  ज्ञान  पाकर   शिष्य  भी  ऊँचे  ज्ञान  के  धनि
थे..बैजू बावरा का गोपाल नायक नाम का शिष्य  ऊँची साधना  करने  के  बाद,   ऊँची  अवस्था  पाने  के  बाद  , बहोत सारे लौकिक लाभ
पाने  के  बाद  भी  वि-कर्म के खायी में जा गिरा और शिष्य का वि-कर्म   रोकने  के  लिए  गुरु  को  आना  पडा..कितनी  परेशानी कष्ट झेलने पड़े   ये   इस  कहानी  के  द्वारा
समझा  दूंगा…
बैजू  का  कुल  खानदान  उंचा  था..सतशिष्य बैजू का व्यवहार ऐसा  सुखद  था,   ऐसा  सुखद  था  की  वो  हरिदास  महाराज  के
आशीर्वाद  को  हजम  कर  गया…
१५९९  में  ग्वालियर  में  आश्विन  महीने  में  शरद  पूनम  को  बैजू  का   जनम   हुआ  था..गुरु हरिदास महाराज  से सिख कर एकांत में साधू जीवन
जीने  वाला  बैजू  संगीत  विद्या  में  ऐसा  तदाकार  हुआ  की  कई  लोग   संगीत   सिख ने    वाले  उस की  चरण चम्पी  कर  के  बड़े  बड़े  संगीतज्ञ    बन  गए…
बैजू  बावरा  का  एक  शिष्य  था  गोपाल  नायक  नाम  का..बड़ा प्रतिभा   संपन्न  था..शिष्य ऐसा था की उस ने गुरु बैजू की प्रसन्नता
पा लीया ..महीने सप्ताह बीते..वर्षो की यात्रा बीत गयी..गोपाल संगीत   विद्या  में  निपुण  हो  गया ….   विदाय  लेनेवाला  गोपाल  गुरु  बैजू
महाराज  को  प्रणाम  करता  है…गुरु  बैजू का ह्रदय भर आया.. ये  शिष्य   कैसे  मेरी  छाया  की  तरह  था,  मेरी  विद्या  को  पचाने
में  सफल  हुआ…गुरु बोले, ‘तुम मेरे पुत्र की तरह हो…तुम ने जो विद्या   पायी  उस  विद्या  से  मनुष्यो  का  दुःख,  शोक  हरने  के  लिए  उन  के
जीवन  में  प्रसन्नता  भरने  के  लिए  उपयोग   करना..अपने में मोह,   लोभ,अहंकार भरने के लिए ना करे..’       भरे  कंठ  से..भरी  आँखों  से
शिष्य  गोपाल  को  बैजू  महाराज  ने  विदाई  दी..   ..
..तो  बैजू  महाराज  का   शिष्य  गोपाल  ऐसी  कविता  करता  की  उस  के     प्रभाव  से  कश्मीर  नरेश   का  ख़ास  राज कवी  बन  गया..ईश्वर  प्राप्ति   का
उद्देश्य  नहीं  होता  तो  लालसा  बढती  गयी…मनुष्य सत्ता,  धन,   पद,  सुख   की   लालसा  में  रास्ता  चुक  जाता  तो  ना  करने  जैसे  कर्म   कर
डालता  है….
इसलिए  भगवान  श्रीकृष्ण  कहेते  की  मनुष्य  को   कर्म,  वि-कर्म को जान   लेना  चाहिए…  अ-कर्म को जान लेना चाहिए… बड़ा काम  का
श्लोक  है  ये  :-
कर्मणो ह्यपि बोध्दव्यं   बोध्दव्यं च  विकर्मणा:  l
अकर्मणश्च बोध्दव्यं  गहना कर्मणो  गति:  ll 
गोपाल  का यश अहंकार ऐसा   फुला  की  जो  कोई  कवी  हो  उस  को  ललकारता…  मुझे   हरा  दे  तो  सीर    कटवा  दूंगा  और  मुझ  से  हार  गए
तो  गला  काट   दूंगा..   कई  कवी  बेचारे  उस  की  ललकार  से  सीर    कटाते…कई  कवी  पत्निया  , उन  के  बच्चे  लाचार  मोहताज  हो
गए…गोपाल को उन को देख कर  मजा आता की मुझे चैलेन्ज    करनेवाला  मृत्यु   को  प्राप्त  होता  है…
 अंतरयामी  ईश्वर  जानता   की  ..  ‘किस  की  सत्ता  से  ये  विद्या  आई   है…ये सत्ता कहाँ   से  आई   ये जो   जानेगा  तो  उस  का  कल्याण  करता   हूँ…’
ईश्वर  किस  किस  तरीके  से  कर्म  गति  की  नालियों  से  उठाने   की   व्यवस्था   करते..गुरु चरणों में पहुंचाते..तब कही कोई सत  शिष्य
होता…
लेकिन  ये   सतशिष्य  गोपाल अहंकार  में  कु-शिष्य बन गया…
गोपाल  के  चैलेन्ज   से   कई  अबलाये  विधवा  हो  गयी..   कई  बच्चे    दर-दर के ठोकरे खाते फिरने  लगे…ये बात बैजू महाराज के
कान  में  पड़ी   तो  उन  को  बड़ा  दुःख  हुआ…  मैंने  कहा  था  ये  संगीत   की  विद्या का     खजाना  इसलिए  नहीं  है  की अपना अहम् पोस कर वि  -कर्म  की खायी में  गिरे… ..
बैजू महाराज ऐसी उच्च विद्या जानते की भीम पलासी राग गाते तो पथ्थर पिघला देते थे… पिघले हुए पथ्थर में कोई चीज डाल देते तो वो चीज पथ्थर के अन्दर सचमुच जम जाती की पथ्थर तोड़े बिना निकले नहीं… मानो जैसे शक्कर को पिघलाया और उस में रुपया का सिक्का डाल दिया , ठन्डे होने के बाद शक्कर जम गयी , तो शक्कर तोड़े बिना रुपया निकले नहीं… ऐसी ही बैजू महाराज की विद्या भी थी .. उन का नाम ‘बावरा’ क्यों पडा तो घाटवाले बाबा ने इस का रहस्य बताया था की गायक गायिका सदाचारी नहीं हो सकते ..किसी नर्तकी के दीवाने थे..इसलिए लोग बावरा कहेते..
……तो  कश्मीर  नरेश  के   ख़ास  संगीत  कवी  गोपाल  के  चैलेन्ज   के   कारण   संगीत  सम्मेलनों में  कईयों  के  सीर  कटे…  अबलाओ के सुहाग छीने  गए…बच्चे अनाथ हुए ये सुनकर  बैजू महाराज के  आंसू  बरसे  … शिष्य   को   समझाने  के  लिए
चलते  चलते  वहाँ   पहुंचे..    राज -कवी  बन के  गोपाल  नायक  बड़े  ताम   झाम  से  रहेता   था..ख़ास सन्देश भेजा की गुरु  मिलने को आये.. गोपाल नायक  ने
इस को  अपमान  समझा  ….किसी  भी  बहाने   बैठा    रहा   अपने  ताम  झाम  से   ….गुरु   आये तो   उठ  के  खड़े   रहेना  भी जरुरी  नहीं समझा….
‘क्या है ?’ बुढ्ढा क्यों सताने आया इस भाव से बोला…
बैजू महाराज बोले, ‘ बेटे  भरे  ह्रदय  से तुम   को विदाय  दी
थी  …भूल  गया?…  अहंकार  में ये क्या कर रहे हो  बेटे?..   मैं तुम्हारी  भलाई  चाहता  हूँ  इसलिए इतनी दूर आया हूँ पुत्र ‘
‘पागल  कही  के…   क्या   बकता  है… ‘    सेवको को   आदेश  देकर   धक्के  मार  के  निकलवा
दिया…जाते जाते कहा, ‘अगर तू मेरा गुरु है तो  राजदरबार  में  दिखा   देना   कविता  गायन अपनी विद्या…हार गया तो   सीर   कटवा  के  जाना…  बड़ा  आया   गुरु  बनने  को!’
कैसा  अहंकार  !  लेकिन  गुरु   एक  दांव  अपने  पास  भी रखते….   बुढ्डा   लाचार   दिखनेवाला  बैजू   महाराज कश्मीर के नरेश को बोला,  ‘राज दरबार    में  कल  हम  राज-कवी के  साथ संगीत का  शाश्रार्थ
करेंगे …हम हारे तो सीर कटवाएँगे  और  वो   हारा  तो  राजासाब  उस   का   कटवाए  की  नहीं  स्वतंत्र  है’
..कैसा  उदार होता है गुरु  का दिल!
…  ..दुसरे  दिन  गोपाल   नायक  अपने   ताम  झाम  से,  विजय  की  पताका  फड़काने   वाले  रुबाब  में   दरबार  में   आया…गोपाल नायक के
सामने बुढ्ढा    गुरु  बेचारा  ऐसा  लगे  की   जैसे  मखमल  के  आगे   पुरानी   लिरिया…    बाहर से लिरिया दिखने वाले बैजू  महाराज ने    भीतर   हरिदास  गुरु  की  कृपा  संभाल  रखी
थी…  गुरु से  गद्दारी  नहीं  किया  था…
दुसरे  दिन  इस प्रकार दरबार में आये…  गोपाल   नायक  ने  अपना  कवित्व   ऐसी  शक्ति  से   आलापा..   की  महेलो  की   रानियाँ   स्तब्ध  हो   गयी…कश्मीर नरेश मन्त्र
मुग्ध  होकर  सुन  रहा   था..   जंगल  से  हीरन  दौड़  कर  आये…गोपाल  नायक   ने  उन  के  गले  में   हार  डाल  दिया…  उस  का  गाना  पूरा  हुआ  तो
हिरन  वापस  चले   गए..गोपाल नायक ने बुढ्ढे गुरु को ललकारा….     ‘ये   मुर्ख  कवी  ….क्या   है  अब  कुछ  अपने दम  तो  हीरन के गले में डाली हुयी  मालाएं अपने   हाथ   से  उतार  के  दे  तो
मानु…नहीं  तो अपना सीर कटवा के जाना!’
 बैजू  महाराज ने गुरु  हरिदास का स्मरण किया… ‘मन्त्र  मुलं  गुरुर  वाक्यं’  …गुरु से  मिली   हुयी  विद्या  का  उपयोग  अहंकार  सजाने  के  लिए  नहीं,   किसी को  नीचा   दिखाने  के  लिए  नहीं  , धर्म  की  रक्षा  करने  के   लिए  गुरु   की   सम्मति  है…  बैजू  महाराज  ने  राग  आलापा….जो रानिया  झरोखों से  झाँक   रही   थी  वो  ऐसी स्तब्ध  हो  गयी की  जैसे बैजू महाराज  के वाणी में माँ  सरस्वती देवी साक्षात प्रगट हुयी है..…कश्मीर का नरेश  जो  अभी तक गोपाल   नायक  के  कवित्व  और  गायन  से  झूमता  था  उस  के  लिए  तो   वो  अनुभव    भी  नगण्य  हो  गया  ऐसा  स्तंभित  हो  गया  की उस की समाधि  लग गयी बैजू   महाराज  की  रागिनी   सुनकर…भागे हुए जंगली हीरन वापस आये..  ऐसे खड़े रहे  की सुध  बुध  ना  रही…हीरन तो मनुष्य से भागता..लेकिन कैसी  विद्या होगी   की   जंगल  से  हीरन  दौड़  के  चले  आये!  बैजू  महाराज  ने   हीरनो  के   गले  में गोपाल नायक ने डाली हुयी मालाये उतार के रख लिया..वो   ऐसे  राग   गाते  चले  गए  की  हिरन  मंत्रमुग्ध  होकर  खड़े  थे…गले की   मालाये  उतार   कर  रख  दिया  तो  भी  हीरन  स्तब्ध  ऐसे  राग   आलापे..बैजू  महाराज  गाते गए.. गाते गए..और देखते देखते एक  पथ्थर  पर  दृष्टी  डाली   तो  वो   पथ्थर  पिघल  गया!!  ऐसा की जैसे मोम पिघले  ….पथ्थर   द्रवीभूत   हो   गया!बैजू महाराज ने उस में अपने हाथो का साज  तान  पूरा जो  बजा  रहे    थे..उस को डाल दिया…. गाना बंद हो  गया….सब की  समाधि टूट गयी..हीरन  जंगलो में भाग  गए…
अब  गुरु  बोले  की  , गोपाल  देख  मैंने  हीरन  की   गले  से  मालाये   उतार  दी   है…अब तू इस पथ्थर पर दृष्टी डाल के  द्रवीभूत  कर  के  मैंने   डाला   हुआ  साज निकाल के  दिखाओ….
बैजू   महाराज  ने   पथ्थर  पर  दृष्टी  डाली  तो  पथ्थर  पिघल  गया   और   उस   में  अपना तान  पूरा  डाल   दिया…गाना बंद कर दिया तो साज उस में जम    गया..बोले  ‘अब दम है तो मेरा साज निकाल के दिखा!’
जिन्होंने  कईयों   की  जाने  लेकर  रखी  थी  उस  के  राग  में  इतना  दम    कहाँ ?…    उस  ने   बहोत  कोशिशे  की..पानी के घूंट पी  पी  के राग  आलापे…  लेकिन  ये  समझ   नहीं  पाया  था  की  ‘मेरी  दारुदवा  तुम्हारा   दीदार   था’  गुरु  की   कृपा  को  समझ  नहीं  पाया  था..   गाते  गाते    थक   गया….   ना   पथ्थर    पिघला,  ना  साज  निकला….   राजा  की  आँखे   क्रोध   से  लाल  हो  गयी…
फकीर  बैजू  ने  कहा,   ‘इस  को  मृत्यु  दंड  ना  दे  तो   अच्छा   है….’
गोपाल  नायक बोला,  ‘ हां, इस को ही मृत्यु दंड देना चाहिए….ये  मेरा    गुरु  बना  था  और  ये  विद्या  छुपा  के  रखी  थी  …इस  ने   सिखाई  होती    तो  आज  मै  हारता  नहीं…’
बैजू  बावरा  कहे,  ‘मुझे  ही  सजा दो  जो   ऐसे  कु-पात्र को विद्या  सिखाई…   जिस  से  कितनो   की  जाने  गयी,   कितनी  अबलाओ  के  सुहाग  छीन   गए..    बच्चे  अनाथ  हो  गए…इस ने अपना  अहंकार पोसने में तुम्हारा    राज-धन भी व्यर्थ्य   में  लग  गया…’
कश्मीर का  नरेश बोला, ‘कविराज  तुम्हारी  वाणी  से  पथ्थर  पिघल  सकता    है…  लेकिन  इस  कठोर   न्यायासन   का  ह्रदय  नहीं  पिघल  सकता..   इस    के  अहंकार  ने  कितनो  के   सीर  कटाए..  इस  को  भी  वो  ही  दंड  होना    चाहिए….’   चमचमाती   तलवारे  पकडे  उग्र  सिपाहियों  को  इशारा  किया    …गोपाल  का  शिरोच्छेद    हुआ…
बैजू  बावरा  गोपाल  के  लिए  शोक  करे…   ‘आप   मेरा  शिष्य  नहीं  छीन    सकते’  …जैसे  माता  पिता  को  पुत्र   कु-पुत्र हो तो भी उस के मर जाने से   दुःख  होता  ऐसे  बैजू  महाराज  को   दुःख  हुआ…
बैजू  महाराज  अपने  शिष्य  का  अहंकार  नहीं  निकाल  पाया   और  गोपाल    गुरु  का  पथ्थर  में  जम  गया  तानपुरा   ना  निकाल  पाया…
कही  आप  ऐसी  गलती  तो  नहीं  कर  रहे?
इसलिए  श्रीकृष्ण  कहेते  की   कर्म  करने  में  सावधान  रहे…कर्मो को जान   ले…
श्लोक :
कर्मणो ह्यपि बोध्दव्यं   बोध्दव्यं च विकर्मणा:  l
अकर्मणश्च बोध्दव्यं  गहना कर्मणो  गति:  ll
..ऐसे ही हम संसार में धोका खा लेते… ईश्वर के सिवाय कही भी मन लगाए तो धोखा ही खायेंगे…कर्मो का ज्ञान पाए और
ऐसे कर्म करे की अंतरयामी परमात्म संतुष्ट हो…किसी से द्वेष ना बढे.. चिंता ना बढे ऐसे कर्म करो..
 
 
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें