17.12.08

12 दिसम्बर . 2008, रोहिणी(देल्ही) सत्संग , सुबह का सत्र
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संत शिरोमणि परम पूज्य श्री आसारामजी बापू के अमृत वचन :-
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कृपया ये सत्संग सुनाने के लिए यहाँ पधारे :-

http://hariomgroup.googlepages.com/latestsatsang (12th Dec पार्ट 1 & 2 )

..इस पूनम से सुपात्र संतान की प्राप्ति की इच्छा वाली महिलाये आज से पूर्णिमा का फायदा उठाया करती है...
आज के दिन सफेद तिल से स्नान करनेवालों की मनोकामना पूर्ण होती है..
पन्च्यगव्य से स्नान करने से वायुसम्बन्धी बीमारियाँ दूर होती और मनोरथ फलते, ये तो कभी भी कर सकते है...
दही मलकर स्नान करने से लक्ष्मी की वृध्दि होती है...
गोझरण रगड़ के स्नान करने से पाप नाशिनी उर्जा पैदा होती है....

मन के कहेने में बुध्दी सहायक बन जाती और मन इन्द्रियों के कहेने पे चले तो बुध्दी कमजोर है ..लेकिन विकारी माहोल के समय भी परमात्म प्रसादजा मति है तो बुध्दी मजबूत है....और ऐसी भगवत प्रसाद-जा मति के बिना दुःख नही मिट सकता..!
हजारो वर्ष की तपस्या कर ले , हजारो शीर्षासन कर ले , करोडो अब्जो रूपया इकठ्ठा कर ले... लेकिन दुःख नही मिट सकता...यहाँ तक की भगवान साथ में खड़े है तो भी दुःख नही मिट सकता..... अर्जुन का दुःख नही मिटा था...भगवान के दर्शन हो जाते तो भी दुःख नही मिटता.. ..जब भगवान ने गीता का सत्संग दिया तो अर्जुन का दुःख मिटा..
इसलिए जो सत्संग करता है, करने-कराने में भागीदार होता है , वो अपना और अपने ७ पीढियों का कल्याण कर लेता है...सत्संग में आने के लिए और सत्संग समझने के लिए जीवन में व्रत की आवश्यकता है...
सत्संग को समझने के लिए और सत्संग में जाने के लिए जीवन में कोई न कोई व्रत हो...
व्रत किस को कहेते?
जो शास्त्र अनुरूप , अनुकूल , अपनी शारीरिक , मानसिक, अध्यात्मिक उन्नति से भरपूर कोई बात हो , उस को हर परिस्थिति में पुरा कर लेने का ठान लेने का नाम है व्रत!

व्रत से जीवन में दृढ़ता आती है.

गांधीजी के जीवन में व्रत से सफलता मिली...

...गांधीजी सोमवार को मौन व्रत रखते .....मौन रखने से शक्ति का संचय होता है.....मौन में तंद्रा, निंद्रा अथवा मौन का अंहकार ना हो..मौन में भगवान् को पाने का व्रत हो तो मौन में ४ चाँद लग जाते!
अपनी बुध्दी को भगवत प्राप्ति के इरादे से भर देने से बुध्दी जल्दी भगवत प्रसादजा बनती है...

तामसी बुध्दी पाप को पुण्य और पुण्य को पाप मान लेती है.. ...शुभ को अशुभ और अशुभ को शुभ मान लेती है....बेकार को बढ़िया और बढ़िया को बेकार मानते है...

राजसी बुध्दी खप्पे खप्पे में लगाती और भिकारी बना देती है.... 'और -और' की भूख मिटती नही....चाहे १०० जूते खायेंगे लेकिन फिर भी उसी में घुस के देखेंगे....काम, क्रोध, मोह, संग्रह में राजसी बुध्दी मनुष्य को खपा देती है...
राजसी बुध्दी सूक्ष्मता से वंचित होती , परिणाम का विचार नही होता..बस 'चाहिये चाहिए ' में ही खप्पे....

सात्विक बुध्दी परिणाम का विचार करती है.... "मैं भी भूका ना रहू, साधू ना भूका जाए" ऐसे जीवन चलाते ..सात्विक बुध्दिवाले सत्कर्म भी करे, खा-पि सके इतना कर के बाकि का समय बचाकर भगवान में लगाते..लेकिन सात्विक बुध्दी को सत्संग नही मिले तो उन को अहम् आता है 'हम अच्छे है, ये तो ऐसे है' हम विशेष है ऐसा अहम् आएगा तो रुका रहेगा ..लेकिन सात्विक बुध्दी सत्संग खोज लेती तो अहम् ना रहे ऐसा माहोल मिल ही जाता है....
क्यो कि संतो की चरणों में सभी समान होते. तो अहम् छूटने लगता ...

अपना मूल्य कम कराने की बुध्दी राजसी होती...अपना मूल्य कौन कम करता ? - .जो बाहर से सुख अन्दर भरने कि कोशिशों में लगा रहेता वो अपना मूल्य आप ही कम करता .....जिस को सुखी होने के लिए किसी व्यक्ति , किसी वस्तू , किसी परिस्थिति की आवश्यकता है तभी मैं सुखी हूँ ऐसा सोचता वो आदमी कंगला है..

मनुष्य जीवन में ज्ञान की गंभीरता, प्रेम का सम्पुट और कर्म में भी निपुणता हो...
ज्ञान किस का?
नाक ने सुंघा, आँख ने देखा आदि इन्द्रियों का ज्ञान पंच भौतिक ज्ञान है , ये अंत्यंत तुच्छ ज्ञान है...इस से ऐहिक विज्ञानं बनता है ....विज्ञानी कितना भी आविष्कार कर दे , ये सिध्दांत है की कुछ ही दिनों में सिध्दांत बदल जाएगा... क्यो की प्रकृति में बदलाव है.....

दूसरा होता है अटल , वितल , रसातल, पाताल, भूलोक, भूवर लोक .. आदि तक की ख़बर देनेवाला ज्ञान ..जैसे प्रश्नोपनिषद में आता है की मनुष्य के अन्दर ७२ करोड़ ७२ लाख , १० हजार और १ नाडी है... 'करीब करीब या अबाउट' वाला ज्ञान नही...ऐसे पूर्वजो की तुम संतान हो...!
तो ये अधिदैविक ज्ञान है...लेकिन जिन्हों ने ये ज्ञान पाया वो ऋषी मुनियों ने भी कहा की ,
जिस से ये अधिदैविक ज्ञान प्रकाशित होता वो ब्रम्हज्ञान ही सर्वोपरि है..!

अधिभौतिक साधन अधिदैविक जगत में प्रवेश नही पा सकता..अर्जुन अधिदैविक ज्ञान से स्वर्ग में गया था..फिर भी उस का दुःख नही मिटा था...जब तक गीता का ज्ञान नही मिला..
गीता में 700 श्लोक है....गीता ने तो क्रांति कर दी!!ऐसा नही कि ज्ञान मन्दिर में जाकर ही मिलेगा...गीता में से कुछ श्लोक समझ ले तो भी ब्रम्हज्ञान हो जाए..!

आप अर्जुन नही, भगवान राम नही, मुझे पता है..... लेकिन जो भगवान राम को मिल रहा था और अर्जुन को मिल रहा था , वो आप को मिल रहा है ! इसलिए आप बहोत भाग्यशाली है!!!
अपना -पराया , राग - द्वेष के तरफ़ ले जाए वो कुमंत्र है (जैसे मंथरा ने कैकेयी को दिया) जिस से राग द्वेष मिटे वो सु-मंत्र होता है..
सुमित्रा ने लक्ष्मण को मंत्र दिया ...वो सात्विक माँ अम्बा(सुमित्रा) ने लक्ष्मण ने कहा कि भगवान के नाते सब से व्यवहार करना , अनेक में एक देखना ...
अपना कौन है? अपना तो ये देह भी नही.... अपना बेटा भी अपने कहेने में नही चलते.... जिन को "अपना" मानते वो भी कब कितना काम आते?.... अपने पराये बन जाते!.... पराये अपने बन जाते! तत्वज्ञान तो कहेता है की , जो मरने के बाद भी अपना साथ नही छोड़ता वो ही अपना है ,बाकि सब स्वप्ना है..!!

मंथरा राम जी के दर्शन कर रही लेकिन निंदनीय हो गई...राम जी का दर्शन नही होता ..लेकिन राम जी हनुमान जी को जो खजाना देते, कृष्ण जी अपने प्यारो को जो देते है, वो खजाना हसते खेलते मिल रहा है आप को.... ऐई हैई ....:-)
नारायण नारायण नारायण नारायण

भगवत प्रसादजा बुध्दी से 'जो ठीक है' तो वो ही बुध्दी होगी..
...अधिदैविक शक्तियां सहायता करती है...अधिभौतिक जगत की प्रतिकूलता दब जाती है.....कही प्रतिकूलता आनेवाली होती तो पहेले से ही स्फुरने हो जाते.....ये सभी मंत्र दीक्षित साधको का अनुभव है...

..कोई शादी थी ताज महेल होटल मुंबई में...बेटा(रोहित फ्रॉम दुबई) माँ को बोले 'शादी का टाइम हो गया, जल्दी चलो '....माँ बोली , 'चलते है' .... करते करते काफी देर हो गई....माँ को पता नही की , ताज महेल होटल में बम धडाके वाले घुसे है...वो निकले तो वहा से समाचार आया कि वहा तो भाई "ठ्योव ठ्योव" हो रहा है....तो पूछा कि कैसे बच गए?...बोले हमारी माँ ने रोक दिया था, माँ ने बापू जी से दीक्षा ले रखी है..मैंने कहा, "वाह बापू वाह!!!!!वाह साईं वाह!!!!!"
ऐई है :-) मेरे बापू को , मेरे साईं को मै जानता हूँ...आप का बापू आप जाने :-) ..मेरे साईं आज भले ही साकार रूप से इस जगत में नही , लेकिन ऐसी कोई जगह नही जहा वो नही है !!!!!!

('ऐई हैइ' ये उत्साह का मंत्र है, खुशी का मंत्र है..)... खुशी ,उत्साह , सदभाव से जीवनी शक्ति का विकास होता है ...आप के घर में कोई भी..पति , पत्नी , बुजुर्ग बीमार हो जाए तो उन में उत्साह भरो.....

कर्म के बिना तो कोई रहेगा नही...कर्म ऐसे करो की बंधन ना बने..कर्मो के द्वारा विश्व नियंता को पा लो ..आप को कर्म कोई बांधे नही, आप को कोई सुख बांधे नही , आप को कोई दुःख बांधे नही...अरे मृत्यु का बाप भी तुम्हे बांधे नही ऐसी कर्म की कुशलता बताई है गीता में...!!


... ज्ञान मुद्रा से - अंगूठा और पहेली उंगली को जोड़कर ओपेरटर का "o" बनाया..और बाकि ३ उंगलियाँ सीधी ऐसे बैठे..पढाई करते है, दिमागी शक्ति बढानी हो, स्मृति बढानी हो तो जीभ को तालू में लगा के बैठना चाहिए....जीभ तालू में लगाकर जो कुछ पढ़ते याद रहे जाता है.. ये मुद्रासे अ-निद्रा दूर होगी , क्रोधी-चिडचिडा स्वभाव ठीक होगा, एकाग्रता में वृध्दि कराती है...

खांसी किसी भी प्रकार की हो, दम्मा में आराम, बुखार में आराम , धातु सम्बन्धी दुरबलता गायब, पेट की सभी बीमारियाँ , मासिक धर्म की तकलीफ, सुजन आदि में आराम, पानी पड़ने की बीमारी में आराम....लिख लो...
हरड बरड़(बेहडा ) और आंवला (समभाग पाउडर) इस को त्रिफला बोलते , ये त्रिफला पाउडर+शहेद+काले तिल का तेल समभाग कर के रसायन बना के रखे कांच की बरनी में, (प्लास्टिक की बरनी में नही रखे)...सुबह शाम 10-10gram ले , गुनगुने पानी के साथ ले...कायाकल्प हो जाएगा..उन दिनों में खट्टे, तेल, मिर्च मसालेवाले चीजो से दूर रहे तो 100% फायदा होगा..ये सस्ता सरल कायाकल्प है...शरीर की बेकार कोशिकाएं बाहर और नई कोशिकाओं का निर्माण होगा....


(गीता के दुसरे अध्याय के 49 से 53 वे श्लोक )
(49th श्लोक की व्याख्या)... “ये फायदा होगा, ये फायदा होगा” - ऐसा समझ कर जो कर्म करते , वो तुच्छ फल से आयुष्य नष्ट करते... समता रखकर , समाज के उन्नति के लिए ,ईश्वर के प्रीति के लिए , आत्म उन्नति के लिए कर्म करते तो वो कर्म योग करते... सकाम कर्म करते तो इतना फायदा नही होता...बुध्दियोग का आश्रय लेके कर्म करो ...कर्म कराने से पहेले सोचो :-
Ø इस कर्म से मेरा मन भगवान में लगेगा की भोगवासना में लगेगा..
Ø इस कर्म से किसी की हानी तो नही होगी....
Ø कर्म करने से पहेले 'इस का परिणाम क्या होगा?'.. ये विचार कर के काम करना ये बुध्दी योग का आश्रय लेकर कर्म करना है...
Ø इस से भौतिक लाभ होगा , अधिदैविक लाभ होगा की अध्यात्मिक लाभ होगा
ये सोचकर कर्म करो तो बुध्दियोग होगा...


(50 वे श्लोक की व्याख्या)बुध्दी योग युक्त पुरूष पाप पुण्य को त्याग देता है...पुण्य स्वर्ग का बंधन देता, आदत बिगाड़ता है... पाप नारकीय अग्नि में जलाता है...लोहे की भी जंजीर है और सोने की जंजीर भी जंजीर ही है..... पुण्य करो, लेकिन फल ना चाहो.... पुण्य ऐहिक सुख में बांधता और पाप नारकीय परेशानी में बांधता है...
Ø आप बुध्दी योग के द्वारा ऐसे कर्म करो की पुण्य के फल ना चाहो ..
Ø पाप से बचो , लेकिन 'मैं पाप से बचा और फलाना पापी' इस से बचो....ऐसी नासमझी न आने दे....
Ø बुध्दी में सत्संग की कृपा का योग भर दो.........तो आप के घर की सन्तान दिव्य होगी...पत्नी सुखी पति भी सुखी..लेकिन सुखी रहेना बड़ी बात नही.... सुख और आनंद में बड़ा भारी फर्क है , ये बुध्दी योग के द्वारा समझा जाता है....
सुख और आनंद में क्या फर्क है?
सुख आएगा दुःख को दबाएगा..आनंद दुःख को मिटाता है , ईश्वर से मिलाता है...
समय पाकर फिर दुःख आएगा फिर सुख उस को दबाएगा ...सुख आया क्षीण हुआ फिर दुःख आया ... फिर सुख आया , दुःख दबा.....तो ये 'आना -दबाना- आना' में जिंदगी पुरी होती.... कर्म के संस्कार लेकर जीव मरता है अनाथ हो कर....

Ø ...सुख की अभिलाषा छोडो
Ø ...दुःख से डरना भूल जाओ...
Ø दुखद कर्म करो नही,पहेले का दुखद कर्म गुजरने दो ..
Ø ..बीमारी आई है तो संयम सिखाने के लिए....
Ø निंदा अथवा विरोध आया तो अंहकार मिटने को ...
Ø तो सावधान होते हुए दुःख का सदुपयोग करो और सुख बांटो..तो हो जाएगा बुध्दी योग....!
इस से क्या होगा की आप को आनंद आएगा ... सुख से आनंद कई गुना ज्यादा है, ऊँचा है ... सुख दुःख को दबाता है ...आनंद दुःख को मिटा देता है...!!..दुःख कौन चाहता है....कोई नही...

आनंद दुःख को मिटाता है , भगवान से मिलाता है....सुख भोगो से मिलाता और दुःख को दबाता है......मन को और बुध्दी को कमजोर करता है ..जितने धनि आदमी छापे और इनकम टैक्स से डरते इतने निर्धन नही डरते..
संसार हमें आकर्षित कर के तड़पा तदपा के कंगला कर के मार देता है ...बुध्दियोगी इस संसार की पोल जानकर कर्म तो करता , लेकिन कर्म में ऐहिक कर्म की आकांक्षा छोड़कर ईश्वर की प्रसन्नता और समाज रूपी देवता की सेवा के भाव से कर्म करता है ...सुबह-शाम-मध्यान ईश्वर का आश्रय लेकर कर्म को कर्म योग बना देता है..
Ø बहुजन हिताय कर्म किया तो कर्म योग हो गया ....!
Ø भगवान में प्रीति ये भक्ति योग हो गया...!!
Ø भगवत तत्व के ज्ञान में विश्रांति ये ज्ञानयोग हो गया..!!!
मनुष्य को अपने आप का मित्र बनना चाहिए ..
अपने आप के तुम बंधू हो अगर इन्द्रियों को संयत करते हो मन से ...और मन को संयत करते हो बुध्दी से...बुध्दी को संयत करते हो बुध्दी योग से ... तो आप अपने मित्र हो....!
- अगर बुध्दी योग नही है तो बुध्दी दुरबल है..तो बुध्दी मन के कहेने में मन इन्द्रियों के कहेने में जायेगा .. ..
- फिर न खाने जैसा खा लोगे...
- न भोगने वाले तिथि में भी पतिपत्नी के शरीर का भोग भोग के अपने आप को अकाल मृत्यु में डाल दोगे....
- न सोचने के विचार में सोच सोच के खोपडी ख़राब करेंगे...
बहोत दुखी है विश्वमानव बेचारा!
.... अगर गीता के शरण आ जाए तो दुःख मिट जाए....

जितना फास्ट संसारी चीजो से सुखी होने की कोशिश करते , उतना वो दुखी पाये जायेंगे ..बिल्कुल पक्की बात है.....!


ॐ शान्ति.

हरि ओम!सदगुरुदेव जी भगवान की जय हो!!!!!
गलतियों के लिए प्रभुजी क्षमा करे...

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